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इमरजेंसी का भय : आडवाणी मुखर तो भाजपा मौन क्यों?

इंटरनेट डेस्क भाजपा के पितृ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की इमरजेंसी के 40 साल पूरे होने पर अंगरेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये इंटरव्यू में देश में एक बार फिर इमरजेंसी के खतरे होने संबंधी बयान ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है. पहले से ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व राजस्थान की मुख्यमंत्री […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 18, 2015 5:41 PM
इंटरनेट डेस्क
भाजपा के पितृ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की इमरजेंसी के 40 साल पूरे होने पर अंगरेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये इंटरव्यू में देश में एक बार फिर इमरजेंसी के खतरे होने संबंधी बयान ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है. पहले से ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पूर्व आइपीएल प्रमुख ललित मोदी से संबंधों को लेकर देश में हंगामा मचा हुआ है और भाजपा उसे लेकर बैकफुट पर है. वहीं, अब आडवाणी के बयान ने इस मुद्दे पर भाजपा के लिए मुश्किलें खडी दी है, वहीं विपक्ष को नरेंद्र मोदी सरकार की घेराबंदी का मौका मिल गया है. भाजपा के किसी प्रमुख नेता ने अबतक इस मुद्दे पर मुंह नहीं खोला है.
दूसरी ओर, कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा है कि यह बात सत्ताधारी पार्टी की ओर से आयी है और वह मोदी के शासनकाल में आपातकाल जैसी स्थिति का संकेत दे रही है.
आडवाणी और इमरजेंसी का उनका खुद का अनुभव
लालकृष्ण आडवाणी इमरजेंसी के दौरान खुद 19 महीने तक जेल में रहे. वे इमरजेंसी के खिलाफ एक प्रमुख लडाके थे. इमरजेंसी के खिलाफ लडाई को देश का एक बडा वर्ग आजादी की दूसरी लडाई मानता है, क्योंकि इस दौरान देश में नागरिक अधिकारों पर रोक लगा दी गयी थी.
लालकृष्ण आडवाणी ने इंडियन एक्सप्रेस के अपने साक्षात्कार में कहा है कि भारतीय राजनीतिक प्रणाली आपातकाल की शब्दावली से अबतक मुक्त नहीं हुई है और भविष्य में नागरिक स्वतंत्रता के हनन की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा है कि संवैधानिक और कानूनी संरक्षण के बावजूद देश में लोकतंत्र को कुचलने वाली ताकतें मजबूत हुई हैं.
लालकृष्ण आडवाणी ने यह भी कहा है कि मैं नहीं समझता कि आपातकाल के दौर के बाद ऐसा कुछ किया गया हो, जिससे यह आश्वासन मिल सके कि नागरिक स्वतंत्रता का फिर से हनन नहीं हो सकता. हालांकि लालकृष्ण आडवाणी ने यह जरूर कहा है कि यह काम कोई आसानी से नहीं कर सकता है, लेकिन यह मुमकिन है.
आडवाणी ने इस सवाल पर कि आपको किन कारणों से लगता है कि आपातकाल जैसे हालाता का खतरा वर्तमान में भी है, के जवाब में कहा है कि देश की राजव्यवस्था में ऐसा कोई संकेत नहीं देखता, जिससे मुझे भरोसा हो सके. लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि मैं यह नहीं कहता कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है, लेकिन कमियों के कारण भरोसा नहीं होता है. आडवाणी ने कहा है कि 2015 में उन्हें इमरजेंसी से बचने के ऐसे उपाय नजर नहीं आते जो फिर से इसे नहीं लगाये जाने को सुनिश्ति करता हो. हालांकि उन्होंने इमरजेंसी से बचाव के लिए लोकतंत्र को मजबूत किये जाने को जरूरी उपाय बताया है. आडवाणी ने इंमरजेंसी के लिए प्राथमिक तौर पर और सर्वाधिक जिम्मेवार इंदिरा गांधी को ही बताया है. उन्होंने बताया है कि कैसे इस दौरान एक लाख दस हजार लोगों को जेल में डाल दिया गया.
भाजपा मौन क्यों?
लालकृष्ण आडवाणी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मजबूत सरकार है. 25 जून को देश में इमरजेंसी लगाने के 40 साल पूरे हो रहे हैं. कांग्रेस विरोधी राजनीति को हमेशा इमरजेंसी के मुद्दे को गर्म कर राजनीतिक उर्जा मिलती रही है, लेकिन अभी जब आडवाणी इस मुद्दे की चर्चा 2015 के संदर्भ में कर रहे हैं, तब नरेंद्र मोदी की सरकार है और मोदी का अप्रत्यक्ष दावा है कि वे दो कार्यकाल यानी दस साल तक देश के प्रधानमंत्री तो कम से कम रहेंगे ही. ऐसे में आडवाणी का यह बयान किन परिस्थितियों पर इंगित करता है, यह मौजूं सवाल है.यह भी दिलचस्प है कि भाजपा के लिए आडवाणी ने ऐसी परिस्थिति पहली बार नहीं बनायी है.

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