नयी दिल्ली: आज दुनिया भर में मनाये जा रहे पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम की कमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां लगभग 35 हजार लोगों के साथ राजपथ को योगपथ में बदलते हुए संभाली और कहा कि योग अभ्यास का यह सूरज ढलता नहीं है. प्रधानमंत्री ने योग को परिभाषित करते हुए कहा कि यह मानव मन को शांति और सौहार्द के लिए उन्मुख करने की एक पारंपरिक कला है. इस कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय के कई लोग पारंपरिक टोपी पहने योग करते देखे गए.
यह पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 192 देशों के 251 से अधिक शहरों में मनाया जा रहा है. यही नहीं दुनिया के सबसे उंचे युद्ध स्थल सियाचिन से लेकर समुद्र में भारतीय युद्धपोतों पर भी योग किया गया.
इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने यहां राजपथ पर वृहद योग कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में कहा, सूरज की पहली किरण जहां जहां पडेगी और 24 घंटे बाद सूरज की किरण जहां समाप्त होगी, ऐसा कोई भी स्थान नहीं होगा और पहली बार दुनिया को यह स्वीकार करना होगा कि यह सूरज योग अभ्यासी लोगों के लिए है और योग अभ्यास का यह सूरज ढलता नहीं है.
मोदी ने कहा, हम केवल इसे एक दिवस के रुप में नहीं मना रहे हैं बल्कि हम मानव के मन को शांति के नये युग की ओर उन्मुख बना रहे हैं. यह कार्यक्रम मानव कल्याण का है और शरीर, मन को संतुलित करने का माध्यम और मानवता, प्रेम, शांति, एकता, सद्भाव के भाव को जीवन में उतारने का कार्यक्रम है.
निर्धारित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री को उपस्थित लोगों को केवल संबोधित करना था और उनका योग करने का कोई कार्यक्रम नहीं था. लेकिन उन्होंने 21 योग आसनों में से अधिकतर में हिस्सा लेकर सबको चौंका दिया. उन्होंने आम लोगों के बीच बैठकर योगासन किया. इस दौरान वह योगासन कर रहे लोगों के बीच भी गए.
योगासन के लिए राजपथ पर भारी संख्या में लोगों के उपस्थित होने पर प्रधानमंत्री ने हर्ष जताते हुए कहा, क्या किसी ने कल्पना की होगी कि राजपथ, योगपथ बन जायेगा.प्रधानमंत्री की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने पिछले वर्ष दिसंबर में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया था और 177 देश इसके सह प्रस्तावक बने थे. यह प्रस्ताव प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने पहले संबोधन के दौरान रखा था.
योग कार्यक्रम को विपक्ष द्वारा निशाना बनाये के बीच प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि इस कार्यक्रम मकसद सिर्फ और सिर्फ मानवता का कल्याण और सद्भावना एवं तनाव से मुक्ति के संदेश का प्रसार है.
प्रधानमंत्री ने कहा, मेरे लिये यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि यह (योग) किस भूमि पर पैदा हुआ, किस भाग में इसका प्रसार हुआ. महत्व इस बात का है कि मानव का आंतरिक विकास होना चाहिए. हम इसे केवल एक दिवस के रुप में नहीं मना रहे हैं बल्कि हम मानव मन को शांति एवं सद्भवना के नये युग की शुरुआत के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. मोदी ने कहा कि दुनिया ने विकास की नई उंचाइयों को हासिल किया है. प्रौद्योगिकी एक प्रकार से जीवन के हर क्षेत्र में प्रवेश कर गया है. बाकी सब चीजे तेज गति से बढ रही हैं. दुनिया में हर प्रकार की क्रांति हो रही है. ह्यलेकिन कहीं ऐसा न हो कि इंसान वहीं का वहीं बना रह जाए और विकास की अन्य सभी व्यवस्थाएं आगे बढ जाएं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर इंसान वहीं का वहीं बना रह जाएगा और विकास की अन्य व्यवस्थाएं आगे बढ जायेंगी तब एक मिसमैच (असंतुलन) हो जायेगा. और इसलिए मानव का भी आंतरिक विकास होना चाहिए. विश्व के पास इसके लिए योग ऐसी ही एक विद्या है.
मोदी ने कहा कि योग का महत्व इस संदर्भ में है कि हम सबके साथ अंतर्मन को कैसे ताकतवर बनाएं और मनुष्य ताकतवर बनकर कैसे शांति का मार्ग प्रशस्त करे.