बिहार चुनाव में भाजपा के गढ़ में चुनौती देगा राजद
नयी दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में दो प्रमुख गठबंधनों में सीट के बंटवारे को लेकर जारी बातचीत के ठोस आकार लेने के बीच लालू प्रसाद के नेतृत्व वाला राजद चुनाव में भाजपा के गढ़ में चुनौती देगा. जबकि भाजपा नीत गठबंधन के सहयोगियों को जदयू के खिलाफ उतारा जाएगा. जदयू-राजद सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री […]
नयी दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में दो प्रमुख गठबंधनों में सीट के बंटवारे को लेकर जारी बातचीत के ठोस आकार लेने के बीच लालू प्रसाद के नेतृत्व वाला राजद चुनाव में भाजपा के गढ़ में चुनौती देगा. जबकि भाजपा नीत गठबंधन के सहयोगियों को जदयू के खिलाफ उतारा जाएगा.
जदयू-राजद सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला दल उन सीटों पर चुनाव लड़ेगा जिन सीटों पर उसने पिछले चुनाव में जीत दर्ज की थी जब वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. राजद को जदयू के समान सीटें मिलने की संभावना है. राजद को वे सीटें मिलेंगी जिस पर भाजपा पिछले चुनाव में विजयी रही. 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू को 112 सीटें मिली थी जबकि भाजपा को 94 सीटें मिली थीं. राजद को 22 सीटों से संतोष करना पड़ा था. इस स्थिति को देखते हुए लालू प्रसाद की पार्टी के समक्ष चुनाव में कड़ी चुनौती है जबकि जदयू को अपनी सीटें बरकरार रखने के लिए जद्दोजहद करनी है.
वहीं, एनडीए सूत्रों ने कहा कि भाजपा उन सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी जिन पर वह पिछले चुनाव में विजयी रही थी जबकि वह 55 से 70 सीटों के बीच अपने सहयोगियों के लिए छोड़ सकती है जिसमें रामविलास पासवान की लोजपा, उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तान आवाम पार्टी शामिल है. भाजपा सूत्रों ने बताया कि चुनाव में वह विकास के मुद्दे के साथ यह दलील देंगे कि अगर नीतीश-लालू गठबंधन सत्ता में आया तो जंगल राज की वापसी होगी.
उल्लेखनीय है कि राजग के 15 वर्षो के शासनकाल के दौरान राज्य में कथित तौर पर कुशासन होने के आरोप लगते रहे थे. भाजपा के एक नेता ने कहा, नीतीश कुमार भी विकास का विषय उठा रहे हैं और वह कुछ हद तक इन दावों के समर्थन में रिकार्ड पेश कर सकते हैं. लालू का अभियान उनके पुराने धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के एजेंडे तक ही सीमित रहेगा जिसका पहले सफलतापूर्वक सामना किया गया है और आगे भी हम ऐसा कर सकते हैं. भाजपा के लिए मुख्य चुनौती लालू के मुख्य समर्थक यादव एवं मुस्लिम समूह से हैं जिसके काफी हद तक उनके साथ होने की बात कही जा रही है. नीतीश कुमार का आधार इसकी तुलना में कम है लेकिन वे सुशासन पर भरोसा कर रहे हैं.