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आतंकवाद पर दुनिया चीन के स्टैंड से हो गया रू-ब-रू, UNO में 26/11 के दोषी आतंकी जकी उर रहमान लखवी को बचाया

इंटरनेट डेस्क हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही जिस देश से दोस्ती के लिए सबसे आत्मीय तरीके से हाथ बढाया था, वह चीन है. प्रधानमंत्री मोदी ने पदभार संभालने के कुछ ही महीनों में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अपने जन्मदिन 17 सितंबर पर, अपने गृहनगर अहमदाबाद में जोरदार […]

इंटरनेट डेस्क
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही जिस देश से दोस्ती के लिए सबसे आत्मीय तरीके से हाथ बढाया था, वह चीन है. प्रधानमंत्री मोदी ने पदभार संभालने के कुछ ही महीनों में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अपने जन्मदिन 17 सितंबर पर, अपने गृहनगर अहमदाबाद में जोरदार स्वागत किया था. उस अभिभूत कर देने वाले अभिनंदन के बाद भी चीन ऐसी हरकतें करता है, जो भारत के लिए पीडा दायक होती हैं. अब उसने खूंखार आतंकी जकी उर रहमान लखवी को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर दिया है. उसकी दलील है कि भारत के पास जकी उर रहमान लखवी के खिलाफ पर्याप्त सूचनाएं नहीं हैं. हालांकि चीन के इस कदम पर प्रधानमंत्री मोदी व भारत सरकार ने चीन शासन के शिखर स्तर तक अपना विरोध जता दिया है.
लखवी की रिहाई और संयुक्त राष्ट्र में अपील
इसी साल नौ अप्रैल को जकी उर रहमान लखवी को अदालत से बेल मिलने के बाद पाकिस्तान की जेल से रिहा कर दिया गया था. संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि अशोक मुखर्जी ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा समिति के सामने यह मामला उठाया था. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव संख्या 1267 के आधार पर भी गुजारिश की थी कि लखवी जैसे आतंकी पर प्रतिबंध लगना चाहिए. भारत के इस प्रस्ताव को स्वीकृत किये जाने की स्थिति में लखवी की संपत्ति जब्त कर ली जाती और उसकी यात्राओं पर रोक लग जाता है. आतंकवाद के खिलाफ यह भारत की निजी कूटनीतिक जीत तो होती ही, साथ ही इससे दुनिया भर के आतंकी संगठनों व आतंकवादियों को भी ठोस संदेश मिला जाता.
पर, चीन ने कथित रूप से अपने भाई पाकिस्तान के प्रति प्रेम दिखाया और कहा कि इसके लिए भारत के पास पर्याप्त सूचनाएं नहीं हैं और ऐसा नहीं किया जा सकता. दरअसल, लखवी के खिलाफ काफी डोजियर भारत पाकिस्तान को भी सौंप चुका है और इस बारे में भारत सरकार की ओर से भी बयान आया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संसद में बयान दे चुके हैं. भारत की आपत्ति के कारण लखवी की जेल से रिहाई पहले टली भी है. यानी यह प्रमाण है कि भारत की आपत्तियों को पाकिस्तान भी दबी जुबान ही सही सच मानता है.
कौन है जकी उर रहमान लखवी
जकी उर रहमान लखवी खूंखार आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा की जनरल काउंसिल का मेंबर है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के ओकारा में उसका जन्म हुआ था. उसके रिश्ते पाकिस्तान सेना व खुफिया संगठन आइएसआइ से भी है. वह भारतीय आतंकवाद निरोधी एजेंसी एनआइए का मोस्ट वांटेड है. उस पर आरोप है कि उसने ही गरीब युवा अजमल कसाब को डेढ लाख रुपये देकर मुंबई हमले के लिए उकसाया व तैयार किया था. वह चेचन्या, बोसनिया, इराक व दक्षिण एशिया में लश्कर के ऑपरेशन को देखता है. वह आतंकियों का ट्रेनर हैं और उसके कैंप में भरती होने वाले युवा उसे चाचू के नाम से पुकारते हैं.
मणिपुर हमला, म्यांमार और चीन
हाल में भारतीय सेना पर मणिपुर में हुए हमले के बाद ऐसी मीडिया रिपोर्टें आयी थीं कि पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के संगठन ने चीन में ही बैठक कर एक साझा मंच तैयार किया और अपने ऑपरेशन को धार देने का संकल्प लिया. इस हमले के तार चीन से जुडे होने की खबर मीडिया में जब अधिक गर्म हुई तो चीन के ओर से इसका खंडन आया कि उसकी इसमें भूमिका नहीं है. लेकिन, पूर्वोत्तर के आतंकी समूह और उसके नेता चीन में बैठक करते हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आने के बाद भारत ने अपने छोटे पडोसी देशों से रिश्तों को मजबूत बनाने पर जोर दिया है. म्यांमार ने उग्रवादियों के खिलाफ भारत के हाल के ऑपरेशन में पूरा सहयोग दिया, लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसा सहयोग चीन भी करेगा? यह सवाल ही भारत के लिए एक सबक की तरह है.
शी जिनपिंग का पाकिस्तान दौरा
इसी साल अप्रैल में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान के दौरे पर गये तो उन्हें अपनी यात्रा को अपने भाई के घर आने जैसा बताया. पाकिस्तान भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से भारत अमेरिका की बढती मित्रता का विकल्प खुद की ओर से अपनी चीन की मित्रता को बताता है. इस दौरे पर दोनोें देशों में 46 बिलियन डॉलर के इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बात हुई. इसके तहत पाकिस्तान व चीन के बीच बनने वाले आर्थिक गलियारे में आधारभूत संरचना, उर्जा, फोर्ट, हवाई पट्टी व औद्योगिक संरचना शामिल होगी. दरअसल, यह कॉरिडोर भारत की घेराबंदी का एक माध्यम है, नहीं तो इसमें भारत की भी अहम भूमिका हो सकती थी. इसके अलावा 51 एमओयू भी हुए थे.

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