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-हरिवंश- हम अकृतज्ञ लोग, गोविंद वल्लभ पंत को भूल चुके. वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख खान प्रकरण देख कर पंत जी की याद आयी. वह उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री तो रहे ही, देश के गृह मंत्री भी हुए. पर इन सबसे भी बड़े पद पर वह रहे, देश की आजादी की लड़ाई के बड़े योद्धा. […]

-हरिवंश-
हम अकृतज्ञ लोग, गोविंद वल्लभ पंत को भूल चुके. वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख खान प्रकरण देख कर पंत जी की याद आयी. वह उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री तो रहे ही, देश के गृह मंत्री भी हुए. पर इन सबसे भी बड़े पद पर वह रहे, देश की आजादी की लड़ाई के बड़े योद्धा.
पंडित नेहरू के साथी. एक बार लखनऊ में अवध के किसानों के साथ लड़ते हुए उन्हें पुलिस ने इतना पीटा कि जीवन भर उनका हाथ कांपता रहा. वह उस हाथ से फिर कभी लिख नहीं पाये, किसी तरह कांपती गलियों से दस्तखत कर लेते थे. पंत जी जब गृह मंत्री बने, तो उसी पुलिस अफसर की फाइल, प्रोन्नति के लिए उनके पास आयी, जिसके आदेश पर वे पीटे गये थे. बताते हैं, पंडित नेहरू पर पुलिस लाठी बरसा रही थी. पंत जी हट्टे-कट्टे थे. वह पंडित नेहरू को ढंक कर सो गये. इसलिए पुलिस की लाठियां इनके बाजुओं पर बरसीं. लोग बताते हैं कि उस दिन पंत जी मारे जाते, पर किसी तरह बचे.
जीवन भर का रोग लेकर. पंत जी को उसी कांपते हुए हाथ से खुद को पिटवानेवाले और अपने हाथ की दुर्गति करनेवाले (अंगरेजी राज में) अफसर के भविष्य का फैसला लेना था. उन्होंने काम, ईमानदारी और इंटीग्रिटी की रिपोर्ट देखी. वह अफसर अव्वल था. उन्होंने उसी कांपते हाथ से पंडित नेहरू और खुद की पिटाई करानेवाले को प्रोन्नति दी. याद रखिए, उस अफसर से लाठी खानेवाले कौन थे? एक देश के प्रधानमंत्री, पंडित नेहरू. दूसरे गृह मंत्री और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री पंत जी. इस देश को ऐसे नेताओं ने बनाया है.
आज के नेता कैसे हैं? वानखेड़े स्टेडियम में, जो कुछ हुआ, उसके सभी साक्ष्य देखने के बाद, मुंबई एमसीए की प्रबंध समिति की आपात बैठक में, विलासराव देशमुख के नेतृत्व में शाहरुख खान पर पांच साल का प्रतिबंध लगा. पर लालू प्रसाद और ममता बनर्जी दूर बैठे दूरबीन से देख चुके हैं कि अन्याय हो रहा है.
प्रशंसा करिए फारूक अब्दुल्ला की, जिन्होंने शाहरुख को संयम में रहने का सुझाव दिया है. मामला क्या है? आमतौर से टीवी से परहेज है, पर ‘स्टार’ पर कल एक दिलचस्प कार्यक्रम देखा. शाहरुख बनाम वानखेड़े स्टेडियम का प्रकरण. मामूली सुरक्षाकर्मी विकास बालकृष्णा दलवी और किंग खान के बीच का दृश्य. उक्त चैनल ने पूरे फुटेज को बार-बार दिखाया. उस सुरक्षाकर्मी विकास बालकृष्णा दलवी के चाल को भी दिखाया, जिसमें वह रहते हैं. (अगर देश बचाना है, समाज ठीक करना है, तो ऐसे ही लोगों का सम्मान करिए). वह लगभग प्राइवेट सुरक्षाकर्मी है.
उस व्यक्ति की सालाना आमद लगभग दो लाख रुपये है. तकरीबन 16-17 हजार प्रतिमाह. मुंबई में यह राशि क्या है, बताने की जरूरत नहीं है? असुरक्षित नौकरी, चाल की कठिन जिंदगी. दूसरी ओर शाहरुख खान हैं. जो किंग खान भी हैं. यह इस घटना में उनके आचरण से या टीवी के फुटेज से परिलक्षित-प्रमाणित भी होता है. उनकी घोषित आय (उक्त चैनल के अनुसार) दो सौ करोड़ सालाना है. लगभग आधे एकड़ में उनका आलीशान सातमंजिला भवन है.
टीवी ने दोनों के घरों के दृश्य, आर्थिक हैसियत, दोनों के जीवन संसार को जोड़ कर दिखाया. तुलनात्मक रूप से विकास बालकृष्णा दलवी की कोई तुलना नहीं है, शाहरुख खान से. पर फर्ज और निष्ठा की बात सोचें, तो शाहरुख खान, विकास दलवी के पासंग में भी नहीं हैं. अपनी ड्यूटी और फर्ज के शिखर पर शाहरुख खान की भूमिका में, उस विवाद में विकास बालकृष्णा दलवी नजर आये.
एकदम नायक की तरह. असली जीवन का सही नायक. फिल्म की कृत्रिम दुनिया का दिखावटी नायक तो उस दृश्य में विलेन था.
यह गरीब गार्ड भारत की अंतरात्मा और विवेक की आवाज बन कर उभरा. विकास दलवी पूरे प्रकरण में बिल्कुल संतुलित. पूरे फुटेज में उनकी जुबान से एक शब्द नहीं सुन सकते, न चेहरे पर उत्तेजना. न बेचैनी, न भय, न शिकन. वह सिर्फ सीटी बजा कर इशारे में अपना काम कर रहे थे. दूसरी और पूरे प्रकरण में शाहरुख खान किस भूमिका में थे? वे शुरू से ही चीखते-चिल्लाते दिखाई दिये.
उनके गले से लेकर दोनों हाथों की तनी नसें साफ -साफ दिखायी दे रही थीं. सुरक्षाकर्मी, अविचलित और शांत था. शाहरुख उतने ही उत्तेजित. उनकी नस-नस फड़फड़ाती दिख रही थी. वह चीख-चिल्ला रहे थे. लगता है, उनके अहम को चोट पहुंची थी कि किंग खान को एक मामूली सुरक्षाकर्मी नियम-कानून बताये? किंग खान के सत्ता, ग्लैमर पर कहीं चोट लगी थी. वह घायल शेर की भूमिका में थे. यह आक्रामकता क्यों? पर शायद उन्हें एहसास है कि वह कानून और सारी सीमाओं से ऊपर हैं.
शायद उनको यह एहसास देश के सत्ताधीशों ने कराया है. अमेरिका में अगर उनकी सुरक्षा की चेकिंग होती है, तो भारत के सत्ताधीशों पर वज्रपात होता है. पूरा देश ऐसे बेचैन होता है, मानो देश के स्वाभिमान पर चोट लग गयी. पर उसी अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति, डॉ कलाम के साथ ऐसा ही व्यवहार होता है, पूर्व रक्षा मंत्री, जॉर्ज फर्नाडीस के साथ यही सुलूक होता है, तब भारत के शासकवर्ग में यह बेचैनी दिखायी नहीं देती. आखिर क्यों?
जैसे अमेरिका अपनी सुरक्षा पर समझौता नहीं करता, तो इसका एक सबक हमारे लिए यह भी है कि हममें दम है, तो हम भी अपनी सुरक्षा के लिए सख्त हो जायें, पर हम हो नहीं सकते. क्योंकि हम गुलाम-कमजोर लोग हैं. हाल ही में अमेरिका ने तय किया है कि उसके जो नागरिक पाकिस्तान में मारे गये हैं, उनमें से वह एक-एक का हर्जाना वसूलेगा. पर आज हम भारतीयों के साथ दुनिया में जो हो रहा है, उसको लेकर न कोई बेचैन है, न परेशान. पर एक शाहरुख को अमेरिकी सुरक्षा जांच में अधिक समय लगता है, तो हम बेचैन हो जाते हैं. यह देश की मानसिक गुलामी, बौद्धिक दरिद्रता, व्यक्ति पूजा और उसके ग्लैमर के सामने समर्पण का मानस है.
उस गरीब गार्ड विकास बालकृष्णा दलवी ने दो दिन बाद भी अत्यंत संतुलित बयान दिया है. कहा, शाहरुख खान ने हमको मारा-पीटा नहीं. उन्होंने गालियां दी. उनके साथ के लोगों ने बदसलूकी की. पर देखिए शाहरूख खान के साथ आये लोगों का अहंकार. एक ने सुरक्षा गार्ड को कहा कि उन्होंने स्टेडियम को ही खरीद लिया है. ऐसा अहंकार देश-समाज को कहां ले जायेगा?
आज कोई दूसरा मुल्क होता, तो सुरक्षाकर्मी, विकास बालकृष्णा दलवी को पूजा जाता. लोग उसकी जय-जयकार करते. उसके साहस की धूम होती. गलत करनेवालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई होती, पर धन्य है, यह देश!
देश की संस्कृति की जड़ खोदनेवाले आइपीएल जैसे कार्यक्रमों को हमारे नेता सिर पर बिठाते हैं. गलत करनेवाले शाहरुख खान की तरफदारी करते हैं. गरीब गार्ड का मनोबल तोड़ते हैं.आइपीएल में किस तरह की घटनाएं रोज होती हैं. स्पॉट फिक्सिंग. पहले देह व्यापार की बातें हवा में गूंजती थीं. अब तो जबरदस्ती छेड़छाड़ एवं मारपीट में एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी, ल्यूक को पुलिस ने पकड़ा भी. खास हाल में उसे जमानत मिली.
उस पर भारतीय मूल की एक अमेरिकी महिला के साथ छेड़छाड़ करने, जबरदस्ती अभद्रता करने, उसके मंगेतर को पीटने का आरोप है. उसका मंगेतर दिल्ली के एक अस्पताल में आइसीयू में है. इलाज कर रहे डॉक्टर के अनुसार उसके सिर व जबड़े में गंभीर चोट है. महिला का आरोप है कि ल्यूक उसके साथ जबरदस्ती करना चाहता था.
पहली बार आइपीएल के सिलसिले में चीयर्स गर्ल्स का नाम सुना. सुना है, जहां यह मैच होता है, वहां ढाई से तीन हजार लड़कियां साथ घूमती-चलती हैं. नाचती हैं, अर्धनग्न. अश्लील हरकत के साथ खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने और रात की पार्टियों में शरीक होने का काम इन पर है.
इसी क्रम में रेव पार्टी का नाम भी पहली बार सुना. रोज आइपीएल जैसे मैच के बाद रेव पार्टियां होती हैं. मुंबई के एक मित्र ने इस पार्टी का दर्शन समझाया. ड्रग्स, प्रेम, सेक्स, धोखा, धन अर्जन, वगैरह-वगैरह. ये मनोरंजन के आधुनिक तरीके हैं. इसी तरह की रेव पार्टी में इस अमेरिकी महिला के साथ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ल्यूक ने बदतमीजी की है.
इस प्रकरण में बीयर सम्राट विजय माल्या के बेटे सिद्धार्थ माल्या का रंग भी कल पूरे देश ने टीवी पर देखा. उन्होंने कहा, यह लड़की (ल्यूक के खिलाफ शिकायत करनेवाली अमेरिकी लड़की) कल रात मेरे साथ थी. मेरा नंबर मांग रही थी. इन बयानों के क्या अर्थ निकलते हैं? सिद्धार्थ माल्या युवा हैं. वह इन बयानों का अर्थ भी समझते होंगे.
जब टीवी पत्रकार उनसे और पूछने लगे, तब वे झल्ला गये और गाली-गलौज पर उतर आये. कल संसद भी चिंतित थी. कीर्ति आजाद ने संसद में कहा कि कैसे एक नामी बॉलीवुड स्टार ने शराब पीकर हंगामा किया? रेव पार्टी चल रही है? स्पॉट फिक्सिंग हो रही है? उन्होंने अनशन की बातें कीं.
लालू प्रसाद ने कहा, आइपीएल बंद करो. यशवंत सिन्हा ने कहा कि आयकर और आर्थिक नियमों की अनदेखी कर, जो हो रहा है, वह क्रिकेट नहीं है. हर चौके के बाद अर्धनग्न औरतें नाचेंगी और मैच के बाद रेव पार्टी होगी, तो इसी तरह की घटनाएं ही होंगी. और तो और, खेल मंत्री अजय माकन ने भी माना कि आइपीएल में ब्लैकमनी का कारोबार हो रहा है. अब सवाल यह है कि पक्ष और विपक्ष दोनों यह मानते हैं, तो कानून काम क्यों नहीं कर रहा है? क्यों सख्त कदम नहीं उठाये जा रहे हैं? क्यों ललित मोदी आज तक बाहर हैं?
क्योंकि इसके पीछे धन है, भोग है, सेक्स है, जो इस देश के कानून से भी ताकतवर हैं. पीछे सत्ता में बैठे महत्वपूर्ण लोग हैं. देश के सबसे धनी और प्रभावी लोग इसके प्रायोजक हैं. जब सत्ता, सेक्स, सौंदर्य और पैसे मिल जायें, तो देश में और क्या हो सकता है? कहीं कोई गरिमा, कोई अंतरात्मा देश में बची है, तो इस मुल्क में ऐसी चीजों पर तुरंत बैन (प्रतिबंध) लगना चाहिए.
आइपीएल में मैच फिक्सिंग की भी खबरें आ रही हैं. यह भी खबर है कि यह सब दाऊद इब्राहिम के इशारे पर हो रहा है. दाऊद इब्राहिम बार-बार देश पर आतंकवादी हमले कराने का आरोपी है. जब सरकार कह रही है कि आइपीएल में ब्लैकमनी का इस्तेमाल हो रहा है. इसमें मैच फिक्सिंग से लेकर दाऊद इब्राहिम के इशारे पर अनैतिक कार्य हो रहे हैं, तो आपीएल को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जाता?
पर यह बैन लगेगा नहीं. क्योंकि इसके पीछे एक कारण और है. देश भारी मुसीबत में है. आर्थिक विकास का सपना दरक गया है. भारत की नयी आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने सत्ताधीशों के सौजन्य से चूर-चूर होते दिखायी दे रहे हैं. आर्थिक विकास दर, दस से नौ फीसदी, नौ से आठ फीसदी और आठ से सात फीसदी पर घट कर आ गयी है.
आगे भगवान जाने क्या होगा? डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत सबसे नीचे है. महंगाई चरम पर है. तेल-गैस के भाव बेलगाम होनेवाले हैं. भ्रष्टाचार पर किसी का अंकुश नहीं रह गया. शासन में संपूर्ण अराजकता दिखती है. किसी बड़े नेता या दल का प्रताप नहीं रह गया कि देश उसकी बात सुने. इस तरह देश, कुशासन और अराजकता में लगातार फिसल रहा है.
देश के कई राज्यों में ऐसे छत्रप आ गये हैं, जो खुद को ही मुख्तार और सर्वेसर्वा मानते हैं. उनके एजेंडे पर भारतीय संघ की एकता या देश नहीं है.
ऐसे माहौल में आइपीएल जैसे आयोजन क्या करते हैं? वे ग्लैमर, भोग का छद्म संसार रचते हैं. इस उपभोक्तावादी संसार में, इस ग्लैमर या इंद्रिय सुख कल्पना में युवा समेत सब डूब कर आनंद-मौज उठाना चाहते हैं.
जहां की जनता ऐसे इंद्रिय सुखों से जुड़े आइपीएल जैसे ख्वाबों में डूबने लगे, उस देश का भविष्य क्या होगा? इसका प्रमाण तो भारत के इतिहास में पग-पग पर है. जो रजवाड़े या शासकवर्ग, राजकाज छोड़ भोग में डूब गये, वे देश को तबाह कर गये. शायद ही कोई देश आर्थिक तबाही से अतीत बना हो. पहले नैतिक पतन होता है, फिर आर्थिक-सामाजिक तबाही आती है. अराजकता आती है. भारत इसी राह पर है.
एक और कारण है, जिससे आइपीएल जैसी चीजें चलती रहेंगी. क्योंकि इस पर पाबंदी लग जाये, तो लोगों की निगाह देश के असल सवालों पर जायेगी. असल सवाल को लेकर जनता बेचैन होगी, तो उसका ताप तो राजनेताओं तक पहुंचेगा ही. इसलिए राजनेता या व्यवस्था तो चाहेंगे ही कि ऐसे कार्यक्रम हों. निर्बाध चलते रहें, ताकि लोग भोग, सौंदर्य, सत्ता, सेक्स और धन के कृत्रिम संसार में गोते लगाते रहें.
कितना दुर्भाग्य है कि जहां आज देश का राष्ट्रीय एजेंडा होना चाहिए था- विकास दर, डॉलर के मुकाबले रुपये की अधोगति, भ्रष्टाचार, अराजकता, बढ़ती क्षेत्रीयता, बढ़ती विषमता, वगैरह-वगैरह. वहां आज राष्ट्रीय बहस के एजेंडे बन रहे हैं, आइपीएल की सट्टेबाजी, रेव पार्टी और शाहरुख खान का मिजाज, वगैरह-वगैरह. धन्य हैं, हम!
दिनांक 20.05.2012

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