नयी दिल्ली : सोवियत संघ में निर्मित मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) की जगह दूसरे टैंकों को अपने बेडे में शामिल करने की मंशा से सेना ने घरेलू और विदेशी कंपनियों से ‘फ्यूचर रेडी कांबैट वेहिकल’ के निर्माण के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किये हैं. यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब डीआरडीओ पहले से ही इस आशय की एक परियोजना पर काम कर रहा है. सरकारी सूत्रों ने बताया कि सेना ने विभिन्न कंपनियों से 31 जुलाई तक नये टैंकों के निर्माण के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किये हैं ताकि इन नये टैंकों को टी 72 टैंकों के स्थान पर तैनात किया जा सके.
इसके लिए घरेलू और विदेशी दोनों प्रकार की कंपनियां आवेदन कर सकती हैं. सेना के अनुसार आने वाले आवेदनों में से सर्वश्रेष्ठ डिजाइन का चयन किया जाएगा और फिर इस प्रोटोटाइप को उत्पादन के लिए नामित एजेंसी को दिया जाएगा. यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है कि देश की शीर्ष रक्षा अनुसंधान एजेंसी डीआरडीओ पहले ही इस फ्यूचरिस्टिक टैंक ‘फ्यूचर मेन बैटल टैंक’ की योजना पर काम कर रही है. डीआरडीओ द्वारा निर्मित अर्जुन टैंक को लेकर सेना और इस एजेंसी के बीच पहले भी गतिरोध उत्पन्न हो चुका है.
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सेना किसी विदेशी टैंक को चुनती है तो देश में पिछले 30 साल से जारी स्वदेशी डिजाइनिंग और निर्माण कार्य बेकार हो जाएगा जिसके तहत अर्जुन टैंक का अगली पीढी का टैंक तैयार करने की योजना है. सेना के इस कदम पर प्रतिक्रिया पूछे जाने पर डीआरडीओ के कांबेट वेहिकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट के निदेशक ने कहा, ‘हमारे पास सेना के लिए दीर्घावधि संभावित योजना है. हम प्रौद्योगिकी विकास पर काम कर रहे हैं और इसे जारी रखेंगे.’
डीआरडीओ के अधिकारी सेना के इस कदम से स्तब्ध हैं और उन्होंने आश्चर्य जताया है कि जब वे इस योजना पर पहले ही काम कर रहे हैं तो यह कदम क्यों उठाया गया. उन्होंने उम्मीद जताई कि ‘मेक इन इंडिया’ को आगे बढाने का इच्छुक रक्षा मंत्रालय इस मुद्दे पर विचार करेगा. संस्थान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डीआरडीओ वायुसेना और नौसेना के साथ काफी अच्छी तरह काम कर रहा है लेकिन जब भी थलसेना का मामला आता है तो उसमें कोई न कोई अडचन आ जाती है. उधर, थलसेना सूत्रों ने कहा कि प्रस्ताव कोई भी दे सकता है यहां तक कि डीआरडीओ भी यह कर सकता है.