भूमि अधिग्रहण विधेयक दो महीने में अधिसूचित होगा:रमेश

मुंबई : केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने आज कहा कि 119 साल पुराने कानून का स्थान लेने वाले नए भूमि अधिग्रहण कानून को अगले दो महीने में अधिसूचित किया जाएगा. संसद के मानसून सत्र में भूमि अजर्न, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार विधेयक 2013 पारित हुआ था और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2013 8:48 PM

मुंबई : केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने आज कहा कि 119 साल पुराने कानून का स्थान लेने वाले नए भूमि अधिग्रहण कानून को अगले दो महीने में अधिसूचित किया जाएगा. संसद के मानसून सत्र में भूमि अजर्न, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार विधेयक 2013 पारित हुआ था और राष्ट्रपति ने शुक्रवार को इसे अपनी मंजूरी दे दी.

रमेश ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अगले दो महीनों में अधिसूचना जारी होने के साथ ही यह विधेयक प्रभावी हो जाएगा. इसमें किसानों को उचित मुआवजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भूमि जबरन नहीं अधिग्रहीत की जाए. उन्होंने कहा कि किसानों और आदिवासियों की चिंताओं को दूर करने में नया भूमि अधिग्रहण कानून काफी प्रभावी होगा क्योंकि इसमें पहली बार पुनर्वास के लिए एक नया उपबंध शामिल किया गया है.

पुराने भूमि अधिग्रहण कानून को ‘‘औपनिवेशिक और लोकतंत्र विरोधी’’ करार देते हुए रमेश ने कहा, ‘‘ यह (कानून) उचित समय पर आया है. किसानों के बीच निराशा थी.देश भर में प्रदर्शन देखे जा रहे थे (अनुचित भूमि अधिग्रहण के खिलाफ).अगर नए कानून को गंभीरता से लागू किया गया तो ऐसे प्रदर्शन बंद हो जाएंगे.’’मंत्री ने कहा कि सभी राज्य सरकारें अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उन्हें केंद्र द्वारा बनाए गए कानून को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

रमेश ने कहा कि केंद्र द्वारा बनाए गए कानून में व्यापक आधार दिया गया है और राज्य इस नए कानून में कुछ और जोड़ सकते हैं लेकिन वे इस कानून को नजरअंदाज नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन सुनिश्चित करने के लिए नए कानून में एक नया उपबंध शामिल किया गया है. रमेश ने कहा कि पूर्ववर्ती कानून का अक्सर दुरुपयोग किया गया और अधिकतर राज्यों ने विभिन्न उद्देश्यों के लिए जरुरत से ज्यादा भूमि का अधिग्रहण किया.

उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी किसानों के मुआवजों के बारे में फैसला करते थे और पुराने कानून में पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं था. रमेश ने कहा कि 1894 के कानून में पुनर्वास का प्रावधान नहीं होने के कारण तीन से चार करोड़ आदिवासियों को झारखंड, ओड़िशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के खनिज बहुल क्षेत्रों से विस्थापित होना पड़ा था. उन्होंने कहा कि इससे उन क्षेत्रों में माओवादी विचारधारा के प्रसार का रास्ता प्रशस्त हुआ.

उन्होंने कहा कि नए कानून से उस चलन का अंत होगा जिसमें राज्य भूमि का अधिग्रहण कर 20.25 साल उसका कोई इस्तेमाल नहीं करते थे. इससे आदिवासी और किसान अपने हक से वंचित होते थे. रमेश ने कहा कि किसी भी भूमि का जबरन अधिग्रहण नहीं होगा. अगर निजी कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण किया जाना है तो 80 प्रतिशत किसानों की सहमति आवश्यक होगी. सार्वजनिक.निजी हिस्सेदारी वाली परियोजनाओं के लिए 70 प्रतिशत किसानों से सहमति जरुरी होगी.

Next Article

Exit mobile version