18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कहां है असल सवाल ?

– हरिवंश – देश गंभीर अर्थसंकट से घिरा है. मॉनसून में कमी के दूरगामी असर होनेवाले हैं. नये रोजगारों का सृजन नहीं हो रहा. राजसत्ता का भय या प्रताप खत्म हो रहा है. वोट बैंक की राजनीति में कोई समूह कानून-व्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर सकता है. चीन, अलग चुनौती बन गया है. पड़ोसी देश, […]

– हरिवंश –
देश गंभीर अर्थसंकट से घिरा है. मॉनसून में कमी के दूरगामी असर होनेवाले हैं. नये रोजगारों का सृजन नहीं हो रहा. राजसत्ता का भय या प्रताप खत्म हो रहा है. वोट बैंक की राजनीति में कोई समूह कानून-व्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर सकता है.
चीन, अलग चुनौती बन गया है. पड़ोसी देश, चीन की शह पर भारत को घेर रहे हैं. और भारत के अंदर के क्या हाल हैं? क्या एक भी गंभीर सवाल पर देश में आत्ममंथन हो रहा है? महज तीन झलकियां. नमूने के तौर पर.
अब इन खबरों पर गौर करें!
– रामदेव जी के सहयोगी बालकृष्ण को एक मामले में जमानत मिली, अब मनी लाउंड्रिंग का नया मामला. फिर गिरफ्तार करने की तैयारी.
– बाबा रामदेव के हरिद्वार आश्रम में राज्य सरकार के खाद्य और आपूर्ति विभाग का छापा.
– बाबा के आश्रम के खिलाफ कस्टम की कार्रवाई.
– टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसोदिया के एनजीओ, कबीर की जांच. उनके दिल्ली स्थित घर पर दो दिनों तक गृह मंत्रालय के लोगों ने छानबीन की. सिसोदिया ने जांच का स्वागत किया. पर यह भी कहा, भारत की सभी जांच एजेंसियां हम सबके खिलाफ जांच करे, पर एक नागरिक के तौर पर मेरा सवाल है कि देश में जो असंख्य बड़े घोटाले हुए हैं, उनके सूत्रधार कब पकड़े जायेंगे? इन मामलों की जांच कब होगी?
– कॉमनवेल्थ खेल घोटाले की जांच रिपोर्ट में कलमाडी का नाम नहीं.
– नाल्को के एक सहायक महाप्रबंधक, आर सी पाधे ने ह्विसल ब्लोअर (भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करनेवाले) का काम किया.
सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर (सीवीसी) के अनुसार. पर, उन्हें नालको मैनेजमेंट और सीबीआइ के अधिकारियों ने एक डीए मामले में फंसा दिया. 2011 में कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी किया. आरसी पाधे ने सीबीआइ के जांच अधिकारी, श्रीकांत बेहरा का कैमरे पर यह कन्फेशन (आत्मस्वीकारोक्ति) सार्वजनिक किया है कि दिल्ली और भुवनेश्वर, यानी ऊपर से आदेश था कि उन्हें फंसाया जाये. नाल्को के अंदर के गुनहगार के भंडाफोड़ के बदले श्री पाधे को यह सजा मिली.
गुजरे सप्ताह (20.08.12 से 25.08.12) की ये चंद घटनाएं हैं. ये घटनाएं क्या संकेत करती हैं? यह कि मुल्क किधर जा रहा है? कहने को हम लोकतंत्र हैं, पर जहां भी व्यवस्था विरोध की आवाज उठती है, उसे हम किसी तरह कुचल देने पर आमादा हैं. पहले लोकतंत्र में विरोध का भी एक आदर था.
सवाल यह नहीं है कि बाबा रामदेव, मनीष सिसोदिया, बालकृष्ण बेकसूर हैं या अपराधी? जब तक बाबा रामदेव या मनीष सिसोदिया इस सरकार, व्यवस्था और तंत्र के खिलाफ नहीं बोलते थे, तब तक उनका बड़ा आदर था. कद्र थी. सरकार की नजर में. उनके सौ पाप माफ थे.
नाल्को के आरसी पाधे भी बेकसूर थे. बाबा रामदेव का, इस देश के सबसे ताकतवर मंत्री (तब कैबिनेट में नंबर दो का स्थान रखनेवाले) समेत केंद्र सरकार के पांच-पांच मंत्री छह-छह घंटे इंतजार करते थे. अगर बाबा, उनके सहयोगी या मनीष सिसोदिया गलत थे, तो वे इस व्यवस्था के विरोध करने के पहले भी गलत रहे होंगे.
उनके जिन कामों के खिलाफ अब कार्रवाई हो रही है, वे काम ये लोग पिछले कई दशकों से कर रहे हैं. तब उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? अब ये व्यवस्था से बागी बन गये हैं. व्यवस्था के खिलाफ अप्रिय सवाल उठा रहे हैं. क्या इसलिए इनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है? अगर यह कार्रवाई सही भी है, तो फिलहाल इस कार्रवाई में बदले की बू नजर आ रही है. खिलाफ में उठती हर आवाज को दबा देने की प्रवृति झलक रही है.
भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बाबा रामदेव के खिलाफ जिस नये मामले में केंद्र के एक विभाग से नोटिस हुई है, वह अत्यंत मामूली मामला है. उस अफसर के अनुसार ऐसे मामलों को आधार माना जाये, तो आयात-निर्यात के काम करनेवालों में शायद ही कोई बचेगा, जिसके खिलाफ कार्रवाई न हो? पर कार्रवाई सिर्फ बाबा रामदेव के खिलाफ शुरू हुई.
राजसत्ता के करीबियों का संदेश साफ है कि व्यवस्था (या राजा) नंगी है, तो उसे नंगी कहना बंद करो. कहो, वह सर्वश्रेष्ठ कपड़ों में दमक रही है. यानी अपनी आवाज या अंतरात्मा को मार डालने का भय या खौफ पैदा करना, यह इसका संदेश है. आपातकाल में फैज की एक बड़ी सुंदर नज्म लोग गुनगुनाते थे कि- ‘चली है रस्म यहां कि कोई न सर उठा के चले’. क्या ऐसा माहौल आ रहा है, किसी समाज के लिए?
और तो और केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों की अलग-अलग कार्रवाई ऐसे विक्षुब्धों के खिलाफ चल रही है. इधर उत्तराखंड राज्य सरकार ने भी अनेक कानूनी अभियान बाबा रामदेव के खिलाफ शुरू कर दिया है. सामान्य सवाल है कि बाबा रामदेव एंड कंपनी पहले से गलत थी, तो युद्ध स्तर पर यह कार्रवाई तब क्यों नहीं हुई? अब क्यों यह शुरू हो रही है?
क्या कांग्रेस के खिलाफ उनकी आवाज की यह सजा है? संभव है कांग्रेस के बड़े नेता इस अभियान में शामिल न हों, पर देश में संदेश यही जायेगा कि यह सब कांग्रेस के इशारे हो रहा है. क्या कुछ कांग्रेसियों के बदले की इस भावना की कीमत पूरी कांग्रेस चुकायेगी? यह कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिए?
मुरझाती उम्मीद!
उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री, अखिलेश यादव ने एक नयी उम्मीद पैदा की थी. न सिर्फ उत्तर प्रदेश में, बल्कि पूरे देश में. पर उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था लगातार बद से बदतर होती जा रही है. ताजा मामला है कि समाजवादी विधायक, विजय मिश्र (21.08.12 को) नैनी केंद्रीय जेल से रिहा हुए. वह डेढ़ वर्ष जेल में थे, बसपा के मंत्री गोपाल नंदी पर हमले के कारण.
उनके खिलाफ साठ आपराधिक मामले दर्ज हैं. वह जेल से निकले, तो वहां मौजूद सिपाहियों को पांच-पांच सौ रुपये का नोट बांटा. यह दृश्य कैमरे में कैद हुआ. सबने देखा. पिछले महीने जेल में बंद अपराधी विधायक, मुख्तार अंसारी को मुख्यमंत्री ने दोपहर के भोज में बुलाया. विधायक विजय मिश्र भी जेल से बुलाये गये थे. प्रणब मुखर्जी के सम्मान में आयोजित दावत में. वह राष्ट्रपति प्रत्याशी के रूप में समर्थन पाने के लिए उत्तर प्रदेश आये थे.
अब ऐसे विधायक अगर मुख्यमंत्री के यहां आमंत्रित हों, जहां देश के भावी सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के चयन की बात होनी हो, तो क्या संदेश जायेगा? राज्य में अपराध थम नहीं रहे. उधर म्यांमार (बर्मा) और असम के मामले पर लखनऊ, इलाहाबाद वगैरह में हिंसक प्रदर्शन हुए, पुलिस तमाशबीन बनी रही, बुद्ध की मूर्ति तोड़ी गयी और बेकसूर लोगों पर हमले हुए, उससे भी राज्य में असुरक्षा का बोध फैला है. इससे भी बड़ी बात हुई है कि एक नयी उम्मीद के रूप में जिस अखिलेश यादव को लोग, उत्तर प्रदेश और देश में, देख रहे थे, उसे गहरा झटका लगा है.
उत्तर प्रदेश की सियासत पर नजर रखनेवालों का कहना है कि इन बातों से बेखबर सपा की तैयारी है कि अगले लोकसभा चुनावों तक अपने वोट बैंक को इतना पुख्ता कर लिया जाये कि लोकसभा की अधिकाधिक सीटें जीत कर देश चलाने की स्थिति में समाजवादी पार्टी पहुंच जायें. ताकि मुलायम सिंह देश की बागडोर संभाल सकें, पर मुलायम समर्थक अल्पसंख्यकों के समूह में बड़े नेताओं का आपसी झगड़ा क्या रंग दिखायेगा, आंकना मुश्किल है? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के यहां इफ्तार पार्टी का आयोजन था.
उनके सरकारी आवास पर. पर उस दिन शहरी विकास और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री आजम खां लखनऊ से बाहर अपने क्षेत्र रामपुर चले गये. संयोगवश मौलाना सैयद अहमद बुखारी (जामा मसजिद के शाही इमाम), जिनको मुलायम सिंह, आजम खां के विकल्प के रूप में उभारना चाहते हैं, वह भी इफ्तार में नहीं आये. दरअसल, आजम खां और बुखारी के बीच लड़ाई है.
खान की नाराजगी है कि सपा से वसीम रिजवी क्यों हटाये गये? शिया वक्फ बोर्ड से भी उन्हें क्यों हटाया गया? दूसरी ओर बुखारी इसलिए नाराज हैं कि खान से अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय लेकर उनके दामाद उमर अली को क्यों नहीं दे दिया गया? अल्पसंख्यकों का युवा तबका इस तरह की परिवारवादी सियासत से ऊब रहा है. वह नयी राजनीति का पक्षधर है.
क्या इस तरह देश चलता है? कानून- व्यवस्था का भय खत्म करके कोई मुल्क चल सका है? क्या इस मुल्क के लोग कभी इन सवालों पर भी गौर करेंगे?
एयर इंडिया :अंदर की जांच
द कंपट्रोलर एंड आडिटर जनरल (सीएजी) की रिपोर्ट पर संसद नहीं चली. कैग की रिपोर्ट को कांग्रेसी सही नहीं मानते. यह अलग बात है कि उनके पक्ष की रिपोर्ट होती, तो वह इस संवैधानिक संस्था को खूब उछालते. पर एयर इंडिया कीआंतरिक निगरानी विभाग ने जांच की है. इस जांच के तहत यह पाया गया है कि घाटेवाले एयर इंडिया के रूट पर (2005-2010 के बीच) सोलह हवाई जहाज लीज पर चलाये गये. इसलिए 4,234.28 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
इसके ब्योरे प्रमाण सहित ‘द हिंदू’ में छपे हैं. इस साल एयर इंडिया को 13,835 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. बिना अध्ययन कराये हवाई जहाज खरीदने से, कैग के अनुसार 68,000 करोड़ का अलग से नुकसान हुआ है. सरकार क्या कार्रवाई कर रही है? खुद एयर इंडिया का निगरानी विभाग अपनी जांच रिपोर्ट में एक से एक गंभीर गड़बड़ियों से जुड़े तथ्यों का उल्लेख करता है, पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती, कैसे माना जाये कि यह सरकार भ्रष्टाचार को, अनियमितता को, देश लूटने की प्रक्रिया को खत्म करना चाहती है?
सरकार अगर कुछ कठोर कार्रवाई करती, इस देश और मुल्क लूटनेवालों को पंडित नेहरू के सपनों के अनुसार चौराहों पर फांसी न भी देती, पर सख्त सजा देती, तो संसद में किसको मौका मिलता कि वह सरकार को घेरता? कौन सरकार की नीयत पर सवाल उठाता? सरकार के अनेक विभागों समेत देश के कुछ अन्य राज्यों में हुए बड़े घोटालों की फेहरिस्त बना लीजिए, निष्कर्ष निकलता है कि बड़े व संगीन एक-एक मामलों से मुख्य दोषी या मुख्य अभियुक्त मुक्त हो रहे हैं. जांच में लगे अधिकारी बदले जा रहे हैं.
जांच रिपोर्टों से महत्वपूर्ण लोगों के नाम निकाले जा रहे हैं. आज देश में ऐसा माहौल हो गया है कि ईमानदार और सही लोग बचाव की मुद्रा में हैं. भयभीत हैं. और भ्रष्टाचार करनेवाले ताल ठोक कर अपने को निर्दोष बता रहे हैं. दरअसल, भारतीय मानस में काल के महत्व का बखान है, समय होत बलवान. यह दौर या समय या काल गलत करनेवालों के पक्ष का है, इसलिए यह हाल है.
दिनांक 26.08.2012

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें