– हरिवंश –
कवि पाश ने कहा था, सबसे खतरनाक होता है, सपनों का मर जाना. क्या इस मुल्क के पास कोई सपना बचा है? अगर है भी, तो उसकी अभिव्यक्ति कहां है? किसी नेता, नायक, राजनीतिक दल, संसद, सरकार या व्यक्ति के पास? 121 करोड़ के मुल्क में इस देश को झकझोरनेवाला, प्रेरित करनेवाला, देश को नये सपनों से भर देनेवाला, उदास मुल्क को उत्साह और ऊर्जा से भर देनेवाला कोई व्यक्ति, दल या संस्था है?
सपने उपजते हैं, चरित्र (कैरेक्टर) और आस्था (कंविक्शन) से. इस देश में चरित्र और आस्था की क्या स्थिति है? इस विषय पर न बोलना ही समय की मांग है. पर, इस मुल्क के साथ यह ऐतिहासिक समस्या है. डॉ के के सिन्हा (उनकी प्रतिभा प्रकृति की देन है. इतने बड़े डॉक्टर, संगीत, इतिहास की इतनी गहरी जानकारी रखें, यह स्तब्ध करता है) से एक इतिहास का प्रसंग सुना. लगभग 200-250 साल पहले की घटना है. पेशवाओं का राज था.
ग्वालियर में पेशवाओं के प्रधानमंत्री रहते थे, जो रिश्ते में पेशवा शासक के चाचा थे. उन्होंने एक जूनियर अंगरेज अफसर से कहा, आपकी मदद हो, तो मैं पेशवा को अपदस्थ कर सत्ता संभाल लूं. वह अंगरेज अफसर स्तब्ध. भारतीयों का यह चरित्र देख कर. उस अफसर ने भारतीयों के बारे में टिप्पणी की, मनी एंड पावर आर लाइफ एंड सोल आफ इंडियंस (पैसा और सत्ता, भारतीयों के जीवन और आत्मा हैं ). यह चरित्र रहा है, इस मुल्क का. गांधी, कबीर और बुद्ध ने इसे संवारने-बदलने की कोशिश की. पर हम बदले नहीं. गिरते ही गये. जयचंद, मीरजाफर, शाहआलम इतिहास में भरे पड़े हैं. अब ये नाम संज्ञा बन गये हैं. दिल्ली से गांव-गांव तक मिल जायेंगे. आज देश जिस मुकाम पर खड़ा है, वहां यही भारतीय चरित्र मुखर रूप में सामने है.
अब नया कोयला घोटाला हुआ है. पावर प्रोजेक्ट आवंटन में भी अविश्वसनीय गड़बड़ी हुई है. उड्डयन मंत्रालय में भी गलत काम हुए हैं. संवैधानिक संस्था कैग की रपट के अनुसार कोयला, बिजली और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में 3.08 लाख करोड़ डूबे हैं. देश के. इससे पहले 2जी घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, इसरो प्रकरण की चर्चा हो चुकी है. हाल में हुए इस मुल्क में घोटालों की लंबी फेहरिस्त है. पर कहीं कोई बेचैनी नहीं, कोई आग नहीं, कोई तड़प नहीं. लगता है देश स्पंदनविहीन हो गया है. जीते जी मर जाने जैसी स्थिति. इसके लिए सिर्फ नेता दोषी नहीं हैं. पूरा मुल्क पैसे और सत्ता की हवस में डूबा है. यही आज देश की मुख्य संस्कृति है, धन और भोग की लिप्सा.
दुनिया के सबसे मशहूर समसामयिक इतिहासकारों में से हैं, नियल फरगुसन. पहले लंदन स्कूल ऑफ इकनामिक्स (एलएसइ) में थे. अब हार्वर्ड में हैं. उन्होंने मशहूर पत्रिका न्यूजवीक में (06.08.2012) लिखा, इंडियाज मैशिव ब्लैक आउट इज जस्ट द बिगनिंग (भारत का बड़ा अंधेरा, तो महज शुरुआत है).
प्रभात खबर ने छापा कि हर भारतीय इस लेख को पढ़े. कहां खड़े हैं हम? देश में बुनियादी सवालों की कहीं चिंता है? भारत किन समस्याओं से घिरा है और कैसी समस्याएं आनेवाली हैं? इस पर कहीं बहस है? संसद से सड़क तक? नियल ने लिखा कि भारत में हुआ ब्लैकआउट (अंधेरा) इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा ‘इलेक्ट्रिसिटी फेल्योर’ (बिजली का गुल होना) है. 64 करोड़ लोगों के जीवन को अंधकारमय बनानेवाला था, यह ब्लैकआउट. दुनिया की महाशक्ति बननेवाले देश का यह हाल है. यही नहीं, कोई पूछे शासकों से, नेताओं से, इन अफसरों से कि मुल्क की चुनौतियां क्या हैं? आज की और आनेवाली? शायद ही कोई बता पाये. क्योंकि सब तो अपनी-अपनी सत्ता और भोग की दुनिया में सिमटे और डूबे हैं.
मेकेंजी की रिपोर्ट के अनुसार भारत की शहरी जनसंख्या 2008 के 34 करोड़ से बढ़ कर, 2030 में 59 करोड़ के लगभग हो जायेगी. तब तक भारत के पास 68 बड़े और छोटे शहर होंगे, जहां की आबादी 10 लाख से ऊपर होगी. छह महानगर होंगे, जिनकी आबादी एक करोड़ से ऊपर होगी. मुंबई और दिल्ली, दुनिया के पांच सबसे बड़े शहरों में होंगे. इस अप्रत्याशित शहरीकरण से निबटने के लिए भारत को अगले बीस वर्षों के लिए, अपने शहरों को सुधारने पर 1.2 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 668.88 खरब रुपये) की पूंजी चाहिए. अकेले मुंबई को 220 बिलियन डॉलर (लगभग 12262.8 अरब रुपये) चाहिए. क्या भारत के पास इतना इंतजाम है? कोई योजना है? कोई सपना है? इसकी चिंता है? इस पर बहस है? देश स्तर पर राष्ट्रीय राजमार्ग पिछले एक साल में कुछेक सौ किलोमीटर नहीं बना पाया है, भारत. यह हमारी कूबत और क्षमता है.
क्या इसी तरह देश चलता है? 1951 के बाद भारतीय पावरग्रिडों में कोई बड़ा विस्तार नहीं हुआ. सड़ी-गली वितरण व्यवस्था है. इसलिए चोरी और लीकेज में 27 फीसदी बिजली गायब होती है. आजादी के 65 वर्षों बाद 30 करोड़ लोग अभी भी अंधेरे में रहते हैं. उन तक बिजली की पहुंच नहीं है.
पर, यह देश नयी महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है? उसकी यह हालत है. इसी तरह 2010 में एक रिपोर्ट आयी, केसरौली ग्रुप की, इंडियाज डेमोग्राफिक सुनामी. इस अध्ययन समूह में दुनिया के अत्यंत पढ़े-लिखे जानकार भारतीय थे. उन्होंने अध्ययन किया कि भारत जिस रास्ते पर है, उसमें कैसा भविष्य दिखता है? उनका निष्कर्ष था कि आनेवाले बीस वर्षों में इसका भूगोल बदल जायेगा. दूसरा निष्कर्ष था कि पूर्व के राज्य हाथ से निकल जायेंगे. बढ़ती आबादी और शहरीकरण से बीस वर्षों बाद जो गंभीर चुनौतियां मिलनेवाली हैं, उनका भी इस रिपोर्ट में तथ्यगत ब्योरा है. नक्सल आंदोलन इस मुल्क को कहां पहुंचा देगा, इसका भी उल्लेख है.
कोई दूसरा मुल्क होता, तो यह राष्ट्रीय बहस का मूल एजेंडा होता, पर इस देश में चिंता ही नहीं है. न शासकों को, न सरकारों को. न संसद में, न राजनीति में. कभी संसद में इन सवालों को गूंजते आपने सुना है. पड़ोसी चीन से एक और खबर है, इंडियाज डॉक्टर्स आर मेड इन चायना. दुनिया के बाजार, अर्थशास्त्र और सत्ता पर तो चीन का प्रभुत्व साफ दिख रहा है. आज वह सबसे ताकतवर महाशक्ति है. सस्ते समान बनानेवाला ही मुल्क नहीं. बहुत कम खर्चे में श्रेष्ठ शिक्षा देने का केंद्र भी बन रहा है, चीन. भारत के लगभग 70 लड़के फिलहाल चीन में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं.
क्योंकि यहां बहुत कम खर्चे में मेडिकल डिग्री उपलब्ध है. चीन में एमबीबीएस करने में कुल 15-20 लाख लगते हैं. पर, भारत के किसी निजी मेडिकल कॉलेज में शिक्षा शुल्क और चंदा (डोनेशन) ही 45-75 लाख लग जाते हैं. भारत में एमबीबीएस बनने के कुल खर्च के 25-50 फीसदी में ही चीन से भारतीय छात्र डॉक्टर (एमबीबीएस) बन कर लौट रहे हैं. वे छात्र कहते हैं कि वहां अंगरेजी में शिक्षा दी जाती है. अत्यंत लेटेस्ट टेक्नोलाजी (आधुनिक तकनीक) है. मेडिकल कॉलेज का कैंपस या संरचना अत्यंत पुख्ता, आरामदायक, साफ -सुथरा और सुंदर है.
कॉलेज के कैंपस, छात्रवास वगैरह की सुविधाएं भारत से कई गुना बेहतर और आरामदेह हैं. चीन के लगभग 50 विश्वविद्यालय, अंगरेजी में मेडिकल की पढ़ाई कराते हैं. पर, वहां यह भी अनिवार्य है कि चीनी भाषा भी विद्यार्थी सीखें, ताकि चीनी मरीजों से चीनी भाषा में बात कर सकें. हाल में उत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा भी है कि भारत के जिन डॉक्टरों ने चीन से पढ़ाई की है. हम उनकी नियुक्ति करेंगे.
उन्हें नौकरी देंगे. कैसे लोग हैं हम? अपने यहां करोड़ों पढ़नेवाले हैं. भविष्य में भारत के युवाओं की ओर दुनिया की ‘शिक्षण संस्थाएं’ देख रही हैं? हमें बेहतर शिक्षा दे कर, दूसरे मुल्क कमायेंगे. लाखों लोगों को रोजगार दे कर नयी शिक्षण संस्थाएं बनायेंगे. कितने अकर्मण्य, काहिल और सपनाविहीन हैं, हम? क्या ऐसे सवाल राष्ट्रीय फलक पर सुनाई देते हैं. हाल में विश्व में सर्वाधिक बिकी एक पुस्तक देखी,‘ह्वेन चाइना रूल्स द वर्ल्ड ’ (जब चीन दुनिया पर शासन करेगा), लेखक मार्टिन जेक्विस, पेंग्विन प्रकाशन. लगभग 800 से अधिक पन्नों की किताब में जिक्र है कि चीन के उत्थान का दुनिया में अर्थ महज आर्थिक महाशक्ति बनना भर नहीं है.
लेखक का निष्कर्ष है कि दुनिया की पुरानी सभ्यता, चीनी सभ्यता-संस्कृति, पश्चिमी प्रभुत्व को खत्म कर देंगे. आधुनिकीकरण की पूरी नयी व्याख्या चीन लिखेगा. विश्व के संदर्भ में. विश्व मशहूर पत्रिका ‘द इकोनोमिस्ट’ ने इस पुस्तक का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की, पश्चिम की यह भ्रांति है कि समय के प्रवाह में, पूंजी, खगोलीकरण और राजनीतिक एकीकरण, चीन का विश्व के अनुरूप ढालेगा, लेखक की निगाह में हकीकत यह है कि पश्चिम और दुनिया के अन्य देश अधिकाधिक चीनी बनेंगे, पश्चिमी नहीं.
राष्ट्रीय हालात के ये महज कुछ उदाहरण हैं. बानगी. इस देश में कशिश ही नहीं बची, जो हमारी पुरानी पीढ़ी के नेताओं में थी. मैथिलीशरण जी ने ठीक ही कहा था- हम कौन थे, क्या हुए और क्या होंगे अभी? क्या इस पर कभी देश मिल कर विचार करेगा.
दिनांक 19.08.2012