Haryana Elections 2024: हरियाणा चुनाव के नतीजों ने एग्जिट पोल की सारी भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया. BJP ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की है और वह लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. पिछले चुनाव में BJP को 40 सीटें मिली थीं, और तब उसे सरकार बनाने के लिए गठबंधन करना पड़ा था. इस बार, सभी एग्जिट पोल कांग्रेस की बड़ी जीत का अनुमान लगा रहे थे, लेकिन परिणाम इसके बिल्कुल विपरीत रहे. अब BJP की इस बड़ी जीत के कारणों पर चर्चा हो रही है. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और पार्टी की मजबूत रणनीति जैसे कई पहलुओं पर विचार किया जा रहा है. आइए जानते हैं, BJP की इस ऐतिहासिक जीत के 5 प्रमुख कारण कारण के साथ-साथ कांग्रेस के हारने के 5 बड़े फैक्टर क्या रहे?
BJP के काम आई गैर-जाट वोटों का ध्रुवीकरण
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, BJP की रणनीति 2014 से ही हरियाणा में स्पष्ट रही है. उस चुनाव में BJP ने अपनी सीटों की संख्या 4 से बढ़ाकर 47 कर ली थी. पार्टी ने पंजाबी खत्री मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर ओबीसी वोटों को सुरक्षित करने पर ध्यान दिया, जो कि हरियाणा की कुल आबादी का लगभग 40% हैं. इस साल मार्च में BJP ने खट्टर की जगह ओबीसी समुदाय से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. हरियाणा की राजनीति में अब तक मुख्यमंत्री अक्सर जाट समुदाय से होते थे, जिसकी राज्य में सिर्फ 25% आबादी है. BJP ने 75% गैर-जाट मतदाताओं को आकर्षित कर अपनी जीत सुनिश्चित की. इसके साथ ही, BJP ने अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं को भी अपना समर्थन दिलाने के लिए कई कदम उठाए. पार्टी ने गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से दलित परिवारों तक पहुंच बनाई, जिसमें ‘लखपति ड्रोन दीदी’ अभियान ने अहम भूमिका निभाई. प्रधानमंत्री मोदी ने इन समूहों से जुड़े कई महिलाओं को व्यक्तिगत रूप से सम्मानित भी किया.
हरियाणा में BJP कैंडिडेट्स का चयन
जहां कांग्रेस के नेताओं, जैसे भूपेंद्र हुड्डा, ने अपने खेमे के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी, वहीं BJP ने इससे अलग रणनीति अपनाई. सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए BJP ने 60 नए चेहरों को मैदान में उतारा और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी हटा दिया, जिन पर घमंडी होने के आरोप थे. उनकी जगह पार्टी ने अधिक मिलनसार छवि वाले नायब सिंह सैनी को उम्मीदवार बनाया. इसके विपरीत, कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष उदयभान सहित 17 ऐसे उम्मीदवारों को दोबारा टिकट दिया, जो पहले चुनाव हार चुके थे.
डीबीटी और विकास से बीजेपी को चुनाव में मिला फायदा
BJP ने अपना चुनावी अभियान काफी पहले से शुरू कर दिया था, और जनवरी की शुरुआत में इसे तेज कर दिया. पार्टी ने गांवों में मोदी की गारंटी वैन का दौरा आयोजित किया, जिनका उद्देश्य सरकारी योजनाओं के बारे में लोगों को जानकारी देना था. इन वैन ने ग्रामीणों को उनके परिवार पहचान पत्र में सुधार करने में मदद की. BJP ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की सफलताओं को भी प्रमुखता से पेश किया. इसके बाद, चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद तक कल्याणकारी घोषणाओं की झड़ी लगाई गई. अंबाला से दिल्ली तक फैले जीटी रोड के निर्वाचन क्षेत्रों में विकास एक महत्वपूर्ण मुद्दा था. यहां के छह जिलों और 25 सीटों पर कई विकास कार्य किए गए. मतदाताओं ने इन प्रयासों का जवाब ईवीएम के माध्यम से दिया. इसके साथ ही, BJP ने अपराध को कम करने के अपने प्रयासों पर भी जोर दिया.
हरियाणा में बिखरे विपक्ष से बीजेपी को फायदा
लोकसभा चुनावों के विपरीत, इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. भारतीय राष्ट्रीय लोकदल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया, जबकि जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने आज़ाद समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाया. इस तरह, विपक्षी खेमे में काफी बिखराव था. इसके अलावा, कई स्वतंत्र उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतरे, जिससे BJP के खिलाफ वोट बंट गए. नतीजों पर इस बिखराव का असर कई सीटों पर स्पष्ट रूप से देखा गया.
BJP ने चुनाव में झोंक दी अपनी पूरी मशीनरी
BJP ने चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकी और 150 से अधिक रैलियों का आयोजन किया. कई सीटों पर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी संबोधित किया. दूसरी ओर, कांग्रेस ने लगभग 70 रैलियों का आयोजन किया. BJP का चुनावी संदेश कांग्रेस से पूरी तरह अलग था. राहुल गांधी ने अपने भाषणों में किसानों पर जोर दिया और उन्हें उद्योगपतियों जैसे अंबानी और अडानी के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की. उनकी समाजवादी दृष्टिकोण शायद व्यापारिक समुदाय और विकास की ओर अग्रसर मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाया.
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हरियाणा में कांग्रेस की हार के 5 बड़े कारण (5 big reasons for Congress defeat in Haryana)
कांग्रेस की आपसी आंतरिक कलह और गुटबाजी
चुनाव के आखिरी क्षणों में कांग्रेस पार्टी आंतरिक कलह से परेशान रही. पार्टी में भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे विभिन्न गुट उभरकर सामने आए. स्थिति इतनी खराब थी कि कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला ने चुनाव प्रचार में काफी देर से भाग लिया. राहुल गांधी भी एक रैली में भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच हाथ मिलवाते हुए दिखाई दिए.
कांग्रेस का पूरी तरह से भूपेंद्र हुड्डा पर निर्भर होना
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने पूरी तरह से भूपेंद्र हुड्डा पर निर्भरता दिखाई. टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार तक, भूपेंद्र हुड्डा का ही वर्चस्व रहा. जब विधानसभा चुनाव के लिए टिकटों का वितरण किया गया, तो अधिकांश टिकट हुड्डा गुट के विधायकों को ही दिए गए.
कांग्रेस के द्वारा पहलवानों के आंदोलन का राजनीतिकरण करना
कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा चुनाव में पहलवानों के आंदोलन को राजनीतिक रंग देने का प्रयास भी भारी पड़ा. शुरू में लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर रहा यह आंदोलन, कांग्रेस की सक्रियता के साथ ही राजनीतिक रूप ले लिया. इसके बाद, पार्टी ने पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को कांग्रेस में शामिल कर लिया, जिससे पहलवानों के आंदोलन पर राजनीतिक हितों की ओर इशारा करने के आरोप लगे.
कांग्रेस पार्टी का अत्यधिक आत्मविश्वास की स्थिति में आना
लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पार्टी ने 2014 और 2019 के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया और हरियाणा की 10 में से 5 सीटें जीतीं. लेकिन, हरियाणा विधानसभा चुनाव में ऐसा प्रतीत हुआ कि कांग्रेस इस सफलता के बाद अत्यधिक आत्मविश्वास में आ गई. पार्टी ने BJP को कमतर आंकने की गलती की, जिसका नतीजा चुनाव परिणाम में भुगतना पड़ा.
कांग्रेस का केवल जाति-आरक्षण के साथ चुनावी रणनीति
हरियाणा में कांग्रेस और राहुल गांधी का चुनावी अभियान मुख्य रूप से जाति और आरक्षण के मुद्दों के चारों ओर केंद्रित रहा. वहीं, BJP ने अपने पिछले 10 वर्षों के कार्यों को आधार बनाकर प्रचार किया. BJP ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों की भी तीखी आलोचना की. इसके अतिरिक्त, BJP ने राहुल गांधी द्वारा अमेरिका में आरक्षण खत्म करने की बात करने को चुनावी मुद्दा बनाया.