वे काबिल, हम नाकाबिल!
– हरिवंश – ब्रिटेन और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के फर्क साफ दिखाई देते हैं. 1000 वर्ष की अलिखित परंपराओं से संचालित है. ब्रिटेन ने भारत पर दो सौ वर्षों से अधिक शासन किया. मनमोहन सिंह ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारत को सभ्य, सुशासित और आधुनिक बनाने में ब्रिटेन की भूमिका का […]
– हरिवंश –
ब्रिटेन और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के फर्क साफ दिखाई देते हैं. 1000 वर्ष की अलिखित परंपराओं से संचालित है. ब्रिटेन ने भारत पर दो सौ वर्षों से अधिक शासन किया. मनमोहन सिंह ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारत को सभ्य, सुशासित और आधुनिक बनाने में ब्रिटेन की भूमिका का उल्लेख किया था. तब बड़ी प्रतिक्रिया हुई थी. पर भारत को आधुनिक और लोकतांत्रिक बनाने में ब्रिटेन की भूमिका तो रही ही है.
पर हमने उनसे क्या सीखा? गुलाम रह कर भी उनकी काबिलियत-शासन चलाने का कौशल, राजकाज और बेहतर गवर्नेंस का हुनर सीखा? आजादी के 64 वर्षों बाद भी हम शासन चलाने के काबिल हैं? दुनिया में आगे बढ़ने का सूत्र साफ और सीधा है. काबिल बनना. आज मुकाबला है, काबिल बनाम नाकाबिल के बीच. अक्षम बनाम कुशल के बीच. डिसिसिव बनाम इनडिसिसिव के बीच. एक्शन (कर्म) बनाम नान-एक्शन(अकर्म) के बीच.
ब्रिटेन में दंगे हुए, तो सांसद छुट्टी पर थे. समर वेकेशन (गर्मी की छुट्टी) थी. तुरत सबने छुट्टी रद्द की. पार्लियामेंट बैठी. मिलीजुली सरकार है. सरकार में शामिल महत्वपूर्ण घटक दल के नेता हैं, उपप्रधानमंत्री निक क्लेग. ब्रिटेन के उभरते भावी राजनेता के रूप में वह जाने जाते हैं. पर सरकार में अद्भुत तालमेल है.
प्रधानमंत्री कैमरून का पार्लियामेंट के असाधारण सेशन में दिया गया भाषण, हर भारतीय को पढ़ना चाहिए. लोकतंत्र और गवर्नेंस, कैसे चलें या चलने चाहिए, यह जानने के लिए. विपक्ष के नेता भी युवा हैं, उनकी भूमिका या पूरी पार्लियामेंट की भूमिका, बहस और बातचीत को हमें जानना चाहिए. यह जानने से यह गुत्थी सुलझेगी कि ब्रिटिश शासन में, क्यों दुनिया में सूर्यास्त नहीं होता था? यानी उनकी सफलता के कारण क्या थे? या पश्चिम हमसे आगे क्यों है?
वहां प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता सभी युवा हैं. पर भारत के सत्ताधीशों की उम्र मत पूछिए. यूपीए के फेज वन में एक केंद्रीय मंत्री थे, बैठे-बैठे पॉटी कर देते थे. मंत्री की कुरसी पर ही या मीटिंग में ही. उधर ब्रिटेन की पार्लियामेंट में युवा नेतृत्व देश को संभालने का ठोस कदम उठा रहा था, एक स्वर, सुर और लय में.
विपक्ष के नेता के एक सुझाव को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने तुरंत वहीं स्वीकार किया और अच्छे ‘हल’ बताने के लिए धन्यवाद भी दिया. उसी दिन भारत की राज्यसभा का एक दृश्य. विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने पाकिस्तानी डॉक्टर मोहम्मद खलील चिश्ती को पाकिस्तान के जेल में बंद बताया, जबकि वह राजस्थान जेल में बंद हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हस्तक्षेप कर सही तथ्य बताना पड़ा. विदेश मंत्री की उम्र 70 के पार है. उम्र अधिक होने पर मन, मस्तिष्क और शरीर पर असर पड़ना तय है. शरीर का यह प्राकृतिक क्षय है. पर उम्र अधिक होने पर देश पर लोग क्यों बोझ बने रहें? आज दुनिया के बड़े देशों में नेतृत्व युवाओं के हाथ है, भारत को छोड़कर. यहां नेताओं के पांव कब्र में हैं, पर दमित इच्छाएं राजभोगने की है.
बहरहाल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने कहा कि अब पुलिस को नये अधिकार मिलेंगे. असामाजिक तत्वों के गैंगों पर प्रहार-कार्रवाई अब राष्ट्रीय प्राथमिकता है. दंगाइयों को, अपराधियों को, कानून न मानने वाले उच्छृंखल लोगों को घर-घर से, उनकी मांद से निकाल कर सजा देंगे.
आगे कहा ‘वी विल ट्रैक यू डाउन, वी विल फाइंड यू. वी विल चार्ज यू. वी विल पनिश यू. यू विल पे फारफ्राट यू हैव डन'(हम आप अपराधियों को धर दबोचेंगे. हम आपको भीड़ से खोज निकालेंगे. हम आपका पता ढूंढ़ लेंगे. हम आपके ऊपर आरोप तय करेंगे. आपको सजा-दंड देंगे. आपने जो किया है, उसकी कीमत आपको चुकानी ही पड़ेगी.)
प्रधानमंत्री का स्वर, साफ, सधा और कठोर था. कहीं लागलपेट नहीं और आप जानते हैं, पुलिस ने पांच दिनों में 1200 दंगाइयों को पकड़ लिया. इतना ही नहीं लगभग 371 लोगों पर चार्ज तय हो गये हैं.
कोर्ट की प्रोसिडिंग शुरू हो गयी है. अगर भारत में ऐसा दंगा होगा, तो क्या संसद या विधायिका की आपात बैठक होगी? सबके स्वर सधे, एकमत और साफ होंगे? एक्शन प्लान तय होगा?
एक चार्जशीट तय होने में कोर्ट से अपराधी छूट जाते हैं. संसद और मुंबई पर हमला करनेवाले अब तक दंड नहीं पा सके हैं? दूसरी ओर ब्रिटेन का यह दृश्य है. कहां है हमारा लोकतंत्र उनके मुकाबले? ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि अपराधियों से निबटने में उलजुलूल बातें हमें नहीं रोकेगी. न मानवाधिकार के सवाल ही (उनके शब्द हैं- नो फोनी, ह्यूमन राइटस इश्यू वुड प्रिवेंट अथॉरिटीज) रोड़े अटकायेंगे.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके. वे दंगाइयों के चरित्र पर भी बोले. कहा कि ये अनैतिक लोग हैं. मां-बाप ने इनका पालन-पोषण सही ढंग से नहीं किया. (लैक आफ पैरेंटिंग) ब्रिटेन में भी सवाल उठा कि दंगाई कौन हैं? भाष्यकारों और मानवाधिकार के पैरवीकारों ने कहना शुरू किया कि ये बेरोजगार लुंपेंस हैं. पर जब कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ, तो उसमें अरबपति परिवार की लड़की भी पकड़ी गयी. अब तक जिन पर चार्ज फ्रेम हुआ है, वे नौकरीपेशा हैं. काम-धंधे में लगे लोग. एक 11 साल की लड़की भी पकड़ी गयी. पुलिस रात-रातभर जग कर चार्जशीट तैयार कर रही है.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वो अमेरिका के श्रेष्ठ अमेरिकन ला इनर्फोसमेंट आफिस से भी मदद लेंगे. स्काटलैंड की पुलिस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव पर, स्काटलैंड आफिस की राय अलग थी. पर स्थिति संभालने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय करने के सवाल पर सब तैयार दिखे. यह है राष्ट्रीय मिजाज और स्पिरिट.
भारत में हाल में मुंबई में आंतकवादी विस्फोट हुए. गृहमंत्री ने फरमाया, तीन वर्ष बाद हमले हुए हैं. सब साक्ष्य बता रहे हैं कि इसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का हाथ है. दाउद की भूमिका है.
पर गृहमंत्री अलग ही सुर अलाप रहे हैं. सरकार को आज तक यह नहीं पता चल पाया है कि कौन-सा गुट इसके पीछे है? यह है हमारा लोकतंत्र? हमारी शासन-प्रशासन की कार्यशैली? यहां महंगाई पर लोकसभा में बहस होती है, तो सांसदों की उपस्थिति नहीं रहती. कहां पहुंच गयी है अपनी संसद?
इस बारे में अशोक मित्र ने 12.8.11 -(बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री और जाने-माने राजनेता) के द टेलीग्राफ में एक लेख लिखा है- हाउ डिड द ग्रेट लीडर्स आफ द पास्ट फेल टू बिल्ड ए ग्रेट नेशन? इसकी हेडिंग थी- ग्रेटनेस बी हैंग्ड. (इतिहास के महान नेता, देश को महान क्यों नहीं बना सके? महानता को सूली पर लटका दो). इसमें एक अंश है-
द लोकसभा वाज वंस द कैटवाक आफ जायंट्स, इट इज नाउ द हंटिंग ग्राउंड आफ कोअर्स, इलिटिरेट पिगमिज हू ट्रांजएक्ट लिटिल सीरियस बिजनेस, पार्लियामेंट्स टाइम इज टेकेन अप बाइ साउटिंग बाउटस एंड एक्सएसपेरेंटिंग एक्सचेंज आफ इनसेंटिव्स. इन सच ए मिलेयू, एडमिनिस्ट्रेशन हैज नेचुरली गौन टू द डाग्स एंड करप्शन इज रैंपेटंट. व्हाट ए फाल दिस इज, फे्रंड्स, इंडियंस, कंट्रीमेन. (कभी लोकसभा की गलियों में महान हस्तियां चहलकदमी करती थीं.
अब यह अनपढ़ और अपरिष्कृत लोगों का अड्डा बन गया है, जो थोड़ा भी गंभीर होकर बहस, विमर्श या संवाद नहीं करते. केवल चिल्लाने, उत्तेजक भाषण देने और आपस में आरोप-प्रत्यारोप में संसद का समय बरबाद किया जाता है. ऐसे वातावरण में प्रशासन खत्म होता गया और भ्रष्टाचार बढ़ता ही गया है. मेरे दोस्तों, भारतीयों और देशवासियों, यह कैसी गिरावट है!)
पत्रकारों के लिए: ब्रिटेन के दंगों के लिए वहां की मीडिया ने ‘यूके रायट्स’ शब्द इस्तेमाल किया. स्काटलैंड के एक मंत्री ने आपत्ति की कि इससे मेरे इलाके या उन इलाकों की छवि भी खराब हो रही है, जो दंगों से प्रभावित नहीं हैं. तुरत बीबीसी ने इसे इंग्लैंड रायट्स कहना शुरू किया. यह है, ब्रिटेन की मीडिया की संवेदनशीलता.
दिनांक 14.08.2011