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बड़े सवालों पर अब नहीं आता उबाल

– हरिवंश – भारत में आज 153, 000 करोड़पति हैं. वर्ष 2010 में इस क्लब में शरीक लोगों की संख्या के आधार पर करोड़पति वृद्धि दर में भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रहा. 20.8 फीसदी की दर से वर्ष 2010 में भारतीय करोड़पति (एच एन आइ क्लब) बढ़े. दूसरे नंबर पर कनाडा है, 12.4 फीसदी वृद्धि […]

– हरिवंश –

भारत में आज 153, 000 करोड़पति हैं. वर्ष 2010 में इस क्लब में शरीक लोगों की संख्या के आधार पर करोड़पति वृद्धि दर में भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रहा. 20.8 फीसदी की दर से वर्ष 2010 में भारतीय करोड़पति (एच एन आइ क्लब) बढ़े. दूसरे नंबर पर कनाडा है, 12.4 फीसदी वृद्धि दर के साथ. एचएनआइ पद्धति से भारत दुनिया में 12 वें नंबर पर है. करोड़पतियों की दृष्टि से. इस तरह एशिया समूह, करोड़पति क्लब संख्या के आधार पर यूरोप से आगे बढ़ गया है.
राजनीति और राजनीतिज्ञों से नफरत क्यों बढ़ रही है? जबकि स्थापित सच यही है कि राजनीति और राजनीतिज्ञ ही हालात सुधार सकते हैं. राजनीति से परहेज-दुराव के अनेक कारण हैं. पर असल कारण है कि राजनीति ने अपनी मूल भूमिका छोड़ दी है. देश, समाज और जनता के सपनों, आकांक्षाओं और जरूरत को राजनीति ही स्वर देती है. साकार करती है. दशकों से भ्रष्टाचार, देश की सबसे बड़ी चुनौती है. लगातार यह चुनौती, गंभीर, व्यापक और कैंसर बनती गयी है.
पर, सत्ता पक्ष-विपक्ष किसी ने इस कैंसर के इलाज के लिए अपनी पूरी ताकत या ऊर्जा झोंकी? इसी तरह विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों का काला धन है. दशकों से यह सब जान रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में भी यह मामला उठा, पर क्या ठोस कदम उठाये गये? क्यों सरकार या शासक दल को अन्ना हजारे या बाबा रामदेव के आंदोलनों की प्रतीक्षा करनी पड़ी? ये दोनों सक्रिय या सत्ता राजनीति में नहीं हैं, इसलिए इन मुद्दों पर कारगर कदम उठाने का मूल दायित्व यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी का था. अगर ये दोनों विफल थे, तो विपक्ष की भूमिका होती. पर, ऐसे मूल सवाल, जो देश का भविष्य तय कर रहे हैं.
गवर्नेंस चौपट कर रहे हैं. सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक असर डाल रहे हैं, उन पर सत्तारूढ़ दल, सरकार और विपक्ष खामोश, निष्क्रिय और मूकदर्शक रहें, तो फिर राजनीति से नफरत ही होगी. राजनीतिज्ञों के प्रति घृणा ही पैदा होगी.
ऐसा ही एक और मुद्दा पढ़ा. हाल में. पर राजनीति के किसी कोने से इस मुद्दे को लेकर आवाज नहीं सुनी. 20 वर्ष पहले की राजनीति होती, तो अब तक यह सवाल देश की राजनीति में गूंज रहा होता. वह सवाल क्या है?
24.6.11 के ‘बिजनेस लाइन’ में दो खबरें पढ़ीं. पहली खबर थी कि भारत के कुछ राज्य, अफ्रीकी देशों की तरह गरीब हैं. दूसरी खबर थी कि ‘करोड़पति क्लब’ में अधिकाधिक भारतीय शामिल. ये दोनों खबरें दो रिपोर्टों पर आधारित हैं. पहली रिपोर्ट ‘द इकानामिस्ट’ पत्रिका के अध्ययन विश्लेषण पर आधारित है. इस पत्रिका ने जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) और स्थानीय क्रय शक्ति (लोकल परचेजिंग पावर) के आधार पर 32 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों की प्रति व्यक्ति आय का अध्ययन किया. फिर इन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना, दुनिया के दूसरे देशों की प्रति व्यक्ति आय से की. इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष हैं.
1. भारत के आठ राज्यों में प्रति व्यक्ति जीडीपी 2000 डॉलर (अमेरिकी) से कम है.
2. बिहार में प्रति व्यक्ति जीडीपी 1019 डॉलर है. अफ्रीका के गरीबतम देशों में से एक इरीट्रिया से भी एक डॉलर कम. उल्लेखनीय है कि यह अफ्रीकी मुल्क दशकों से अपने पड़ोसी देश इथियोपिया से खूनी संघर्ष-जंग में रहा है.
3. मणिपुर भी गरीबतम लेसोथो देश के बराबर है. 1440 डॉलर पर. उसके बाद मध्यप्रदेश की स्थिति है. पश्चिमी अफ्रीका के बेनिन मुल्क की तरह. भ्रष्टाचार और पिछड़ेपन के लिए दुनिया में मशहूर. इसके बाद उत्तरप्रदेश की स्थिति है. आबादी लगभग 20 करोड़ (195.8 मिलियन). ब्राजील से अधिक जनसंख्या. समग्र जीडीपी की दृष्टि से भारत का दूसरे नंबर का राज्य. पर प्रति व्यक्ति जीडीपी दृष्टि से अफ्रीका के कीनिया मुल्क के बराबर. इस रिपोर्ट की अन्य बातें या निष्कर्ष भी महत्वपूर्ण हैं, पर उन्हें फिलहाल छोड़ दें.
दूसरी रिपोर्ट क्या कहती है?
23 जून को मुंबई में कैपजेमिनी और मेरील लिंच ने ‘वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट’ (संसार संपदा रिपोर्ट) 2011 जारी की. ये दोनों दुनिया की मशहूर इन्वेस्टमेंट-बैंकिंग कंपनियां हैं. इस रिपोर्ट में ‘हाइ नेटवर्थ आफ इंडिविजुअल्स’ (एक व्यक्ति की निवेश-खर्च करने की अधिकतम संपदा) का अध्ययन है. एचएनआइ (हाइ नेट वर्थ आफ इंडिविजुअल्स) इन दिनों, बिजनेस-व्यापार या अर्थ की दुनिया में बड़ा ही लोकप्रिय शब्द है. सामान्य अर्थ में कहें, तो एक व्यक्ति के पास खर्च या निवेश करने की कितनी क्षमता, संपत्ति या सामर्थ्य है, उस हैसियत-क्षमता या आर्थिक स्थिति का आकलन या अध्ययन. आमतौर से एक व्यक्ति जो एक मिलियन डॉलर (4.5 करोड़) निवेश कर सकने की स्थिति में है, वह एच एन आइ क्लब में माना जायेगा.
इस रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
वर्ष 2010 में 26300 भारतीय इस क्लब में शरीक हुए. भारत में आज 153, 000 करोड़पति हैं. वर्ष 2010 में इस क्लब में शरीक लोगों की संख्या के आधार पर करोड़पति वृद्धि दर में भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रहा. 20.8 फीसदी की दर से वर्ष 2010 में भारतीय करोड़पति (एच एन आइ क्लब) बढ़े. दूसरे नंबर पर कनाडा है, 12.4 फीसदी वृद्धि दर के साथ.
एचएनआइ पद्धति से भारत दुनिया में 12 वें नंबर पर है. करोड़पतियों की दृष्टि से. इस तरह एशिया समूह, करोड़पति क्लब संख्या के आधार पर यूरोप से आगे बढ़ गया है.
रिपोर्ट में कई अन्य तथ्य हैं, पर उन्हें छोड़ दें. आज विश्व बैंक कहता है कि 42 फीसदी भारतीय रोजाना 1.25 डॉलर से कम कमा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के अध्ययन के अनुसार, प्रतिव्यक्ति आमद की दृष्टि से भारत 138 वें स्थान पर है. संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से भारत 119 वें स्थान पर है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, दुनिया के भ्रष्टतम देशों में से है, भारत. इस सवाल पर भी विवाद नहीं हो सकता कि संपदा न बढ़े या करोड़पतियों की संख्या न बढ़े? बिना पूंजी निर्माण या संपदा सृजन के न कोई व्यक्ति आगे जा सकता है, न समाज और न देश.
पर राजनीति के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि वह कौन सी अर्थनीति है कि दुनिया में सबसे तेज गति से भारत में करोड़पतियों की संख्या बढ़ रही है, पर गरीबों की संख्या तेजी से नहीं घट रही? करोड़पति बढ़ें, इसमें विवाद नहीं, पर गरीबों की संख्या घटे, यह पहली प्राथमिकता है. भारत सरकार की अर्थनीति, इन दोनों रपटों से साफ होती है. क्या विषमता बढ़ाने वाली इस अर्थनीति पर राजनीति के किसी कोने में आपने आवाज सुनी? क्यों न हो राजनीति से नफरत?
बिहार, दुनिया के सबसे गरीब देशों के समकक्ष है. यह अंतरराष्ट्रीय रपट कह रही है. बिहार का यह पिछड़ापन 60 वर्षों की केंद्रीय नीतियों की देन है. वह बिना विशेष पैकेज या राहत के आगे बढ़ ही नहीं सकता? क्या कर रहा है केंद्र ऐसी स्थिति में? उदारीकरण की नीतियों ने पिछड़े राज्यों को और गरीब बनाया है.
क्यों राजनीति और राजनीतिज्ञ ऐसे सवालों पर चुप हैं. शायद 1974 का प्रसंग है. योजना आयोग के एक सदस्य प्रो मिन्हास ने गरीबी रेखा और गरीबों की संख्या पर सवाल उठा दिया. इंदिराजी की पूरी सरकार इस बहस में घिर गयी. संसद के अंदर और बाहर. राजनीति में गरीबी का सवाल सबसे अहम मुद्दे के रूप में गूंजा. आज की राजनीति इन सवालों पर क्यों चुप है?
यह फर्क है ’74 और 2011′ में.
दिनांक : 03.07.2011

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