नयी दिल्ली: देशों के दिवालिया होने और सरकारों के काम-काज ठप्प होने के घटनाक्रम से औद्योगिक पूंजीवाद की थकान बिल्कुल साफ होने लगी है और ऐसे में गांधी का सर्वोदय ही एकमात्र विकल्प है. यह बात ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति ने कही है.भूदान जैसे आंदोलनों में सक्रिय रहे अनंतमूर्ति ने कहा ‘‘पूरी वैश्विक प्रणाली पूंजीवाद की गिरफ्त में है लेकिन जिस तरह यह भरभरा कर ढह रही है उसमें जरुरी है कि महात्मा गांधी के सर्वोदय पर नई बहस हो.’’ गांधी को नैतिक द्रष्टा मानने वाले अनंतमूर्ति ने कहा ‘‘गांधी के लिए अर्थशास्त्र और नैतिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
सर्वोदय विशुद्ध रुप से आर्थिक सिद्धांत है जिसका लक्ष्य है विकास (हर तरह के) को समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाना.’’ उन्होंने कहा कि कुछ लोगों की सीमित समृद्धि तब तक साधनविहीनों तक नहीं पहुंचती किसी भी दौर में विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता. वृद्धि की थमती गति को प्रोत्साहित करने के लिए कभी दबंगई, कभी हिंसा और कभी युद्ध का सहारा लेना जारी रहेगा. यहां सबसे अधिक आत्म विश्लेषण और नैतिक जागृति की जरुरत है.
81 वर्षीय कन्नड़ साहित्यकार ने कहा गांधी पूंजीवाद के खिलाफ इसलिए खड़े हैं कि यहां मुनाफा मनुष्य को बौना बना रहा है, मशीनों का मूल्य मनुष्य से अधिक है, मानवता की जगह मशीनीकरण को तरजीह दी जाती है.
अनंतमूर्ति ने कहा कि आज की कंप्यूटर प्रौद्योगिकी चरखे की तरह विकेंद्रीकृत प्रौद्योगिकी है. उनकी राय में गांधी होते तो इस प्रौद्योगिकी के विकेंद्रण के पहलू की प्रशंसा करते. जिस तरह चरखे से घर बैठ कर अपनी जरुरत और कारोबार के लिए कपड़ा बुन सकते थे वैसा ही इस्तेमाल इस प्रौद्योगिकी का हो सकता है.
उन्होंने कहा कि गांधी ने नैतिक जिम्मेदारी को जो तवज्जोह दी है वह आज बेहद महत्वपूर्ण हो गई. गांधीजी ने सर्वोदय की अपनी अवधारणा को सबसे पहले ‘हिंद स्वराज’ में पेश किया था जो अपनी संपूर्णता में पूंजीवाद की प्रत्यालोचना है. अनंतमूर्ति ने कहा ‘‘मैं हिंद स्वराज को क्लासिक मानता हूं. यह हमारे लिए जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स के ‘दास कैपिटल’ की तरह ही महत्वपूर्ण है हालांकि इसकी सीमा है कि यह यूरोपीय अवधारणाओं और अनुभवों पर केंद्रित है.’’