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अन्ना की घेराबंदी

– हरिवंश – अन्ना क्या कर रहे हैं? वह देश की नब्ज छू रहे हैं. भ्रष्टाचार के मुख्य स्रोत तो राजनीति, व्यवस्था और सरकार ही हैं. इनके द्वारा ही पोषित बड़े घराने हैं. गंगोत्री अवरुद्ध न हो, तो गंगा का प्रवाह शायद ठीक रहे. अगर शिखर पर बैठे लोग अपने उद्देश्यों में साफ और स्पष्ट […]

– हरिवंश –
अन्ना क्या कर रहे हैं? वह देश की नब्ज छू रहे हैं. भ्रष्टाचार के मुख्य स्रोत तो राजनीति, व्यवस्था और सरकार ही हैं. इनके द्वारा ही पोषित बड़े घराने हैं. गंगोत्री अवरुद्ध न हो, तो गंगा का प्रवाह शायद ठीक रहे. अगर शिखर पर बैठे लोग अपने उद्देश्यों में साफ और स्पष्ट हैं, तो भ्रष्टाचार के लाइलाज होने का सवाल कहां है? पर मूल दिक्कत है कि इस देश का शासक वर्ग (राजनीति, सरकार, नौकरशाह, उद्यमी) नहीं चाहता कि व्यवस्था से भ्रष्टाचार खत्म हो.
आज सबसे कठिन है, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना. गांव से लेकर दिल्ली तक, जो भी इसके खिलाफ तन कर खड़ा होना चाहता है, उसे अभिमन्यु की तरह वध करने के लिए सारी ताकतें एकजुट हैं. विचार और दल का चोंगा उतार कर. इसके पीछे का दर्शन है कि सफेद कपड़े वालों पर भी इतने छीटें मारो कि वह भी काली भीड़ का हिस्सा बन जाये. यह शासकों का पुराना सियासी खेल और शगल है.
पर गुजरे 20 वर्षों में हालात और बदतर हुए हैं. वीपी सिंह ने 1987 में बोफोर्स के खिलाफ आंदोलन चलाया, तो उन पर कई आरोप लगाये गये. इसके पहले तक वह सबसे अच्छे बताये गये. सेंट किट्स में विदेशी बैंक खाते होने के आरोप लगे. दइया ट्रस्ट जमीन घोटाले के आरोप वीपी सिंह पर लगे, ये सब झूठे आरोप थे. पर इन आरोपों के खारिज या झूठ साबित होने में दशकों लगे.
इससे पीछे लौटें, तो जेपी को सीआइए का एजेंट कहा गया. जब तक जेपी भ्रष्टाचार के खिलाफ चुप रहे, उन्हें शासक वर्ग महान कह कर पूजता रहा. जैसे ही, 74 में वह बोले, उन पर चौतरफा प्रहार शुरू हुआ. उनके गांधी शांति प्रतिष्ठान की जांच के लिए कुदाल आयोग बैठा. कई अन्य तरह की जांच हुई. इन झूठे आरोपों का क्या हश्र हुआ? लक्ष्मीचंद जैन (प्रमुख गांधीवादी और योजना आयोग के पूर्व सदस्य) की हाल में आयी संस्मरणात्मक पुस्तक में दर्ज है. जेपी के गुजरने के बाद तक जांच चलती रही. राजीव गांधी के जमाने में जब बार-बार सदन में रिपोर्ट रखने की मांग हुई, तब पता चला कि कुछ भी नहीं मिला.
1974,1989 और 2011 में फर्क है. पहले गलत करने वालों को थोड़ी शर्म थी. समाज उन्हें हिकारत या अवमानना की नजर से देखता था. आज ईमानदार लोग, शासकों के लिए सिरदर्द हैं. समाज भी ऐसे लोगों को समय के साथ व्यावहारिक नहीं मानता. आज एक ईमानदार आदमी, सिर छुपा कर जीने के लिए विवश है. पता नहीं कब कौन, क्या आरोप लगा दे. जांच तो कई दशकों बाद होगी. अधिक प्रभावशाली लोग अगर दुश्मन हैं, तो वे अपने रसूख और प्रभाव का इस्तेमाल कर सरकारी एजेंसियों से कई कार्रवाई शुरू करा देंगे. ईमानदार इंसान के लिए जीते जी नरक की स्थिति. इस तरह आज भ्रष्टाचार के खिलाफ तनना सबसे कठिन है.
ताजा उदाहरण हैं, अन्ना. अन्ना की घेराबंदी शुरू हो गयी है. खबर है कि महाराष्ट्र का सत्तारूढ़ गठबंधन कांग्रेस और एनसीपी, अब अन्ना के खिलाफ एक पुराने जांच मामले को उठा रहा है. यह प्रसंग 2005 का है. पूछा जाना चाहिए कि अन्ना पर कोई गंभीर आरोप किसी आयोग ने 2005 में लगाया, तो 2011 में उसे क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है? तब अन्ना गलत थे, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या महाराष्ट्र सरकार अब अन्ना को ब्लैकमेल करना चाहती है? अन्ना घूस विरोधी आंदोलन से, जब पूरी दुनिया में चर्चित हो गये, तब यह मामला क्यों उठ रहा है? इसके पहले क्यों नहीं उठा?
इसी तरह शांतिभूषण से संबंधित सीडी का मामला है. इन दिनों आपसी और निजी बातचीत के पुराने सीडी रिलीज करने की होड़ लग गयी है. सार्वजनिक आचरण में पतन का प्रतीक. यह सीडी भी उस वक्त रिलीज की गयी, जब लोकपाल विधेयक को लेकर दिल्ली में बैठक होने वाली थी.
अब शांतिभूषण ने इस संबंध में अमर सिंह के खिलाफ मामला दायर किया है. दो विशेषज्ञों ने भी कहा है कि सीडी से छेड़छाड़ की गयी है.
पर सबसे महत्वपूर्ण सवाल भिन्न है. अगर शांतिभूषण या अन्ना या कोई अन्य, वर्षों पहले बातचीत में या काम में गलत पाया गया, तो वह सीडी बना कर किन लोगों ने, किस उद्देश्य से रखा? अगर सीडी बनाने वाले सही लोग थे, तो उन्होंने उसी वक्त इसे क्यों नहीं उजागर किया? क्या राजसत्ता भी अपने नागरिकों को ब्लैकमेल करेगी? क्या सीडी निर्माण के पीछे ब्लैकमेलिंग नहीं है? अगर वर्षों पहले महत्वपूर्ण लोगों के खिलाफ सीडी बनी है, तो उन्हें एक खास समय पर क्यों जारी किया जा रहा है? इस पर पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
अन्ना और उनके साथियों का जीवन, साफ-सुथरा, खुला और पारदर्शी है. ये प्रभावशाली और लोकप्रिय भी हैं, तब इन्हें तरह-तरह से घेरने की कोशिश हो रही है. यदि गांव का एक ईमानदार और सीधा-साधा आदमी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना चाहता है, तो क्या आज वह सफल हो सकता है? उसे इस कदर व्यवस्था घेर लेगी कि या तो वह आत्महत्या कर लेगा या दयनीय पात्र बन जायेगा.
अन्ना को घेरने वाले (अन्ना के उठाये मुद्दे), भ्रष्टाचार नियंत्रण की बात क्यों नहीं कर रहे? पुराने उदाहरणों को छोड़ दें. 16 अप्रैल की खबर है. वाईएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन रेड्डी ने अपनी संपत्ति की घोषणा की. वह कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी से उपचुनाव लड़ रहे हैं. वह 366 करोड़ के मालिक हैं. अगर वह जीत गये, तो सबसे समृद्ध सांसद होंगे.
एक या दो पीढ़ी पहले इस परिवार की क्या संपत्ति थी? इसी तरह तमिलनाडु, केरल, बंगाल, असम चुनाव में आयकर ने न जाने कितने करोड़ ब्लैकमनी जब्त किया, जो चुनाव लड़ने के लिए छुपा कर इधर-उधर किये जा रहे थे. क्या कहीं आपने इन खबरों को सुना? किसी ने ऐसे सवालों पर मुंह खोला है? राजनीतिज्ञों के पास कहां से धन आ रहे हैं? क्यों इन सवालों पर अन्ना को गाली देने वाले मौन हैं?
11 अप्रैल की खबर है. हर दिन एक फर्जीधारी पायलट पकड़ा जा रहा है. चालीस फ्लाईंग स्कूल हैं, जहां पायलटों की ट्रेनिंग होती है. सभी जांच के घेरे में हैं. इन पर फर्जी ढंग से लाइसेंस देने का आरोप है. अब आप बतायें कि लाखों यात्रियों के जीवन से खेलने के लिए जो लोग भ्रष्टाचार कर फर्जी पायलट बना रहे हैं, क्या उन्हें फांसी की सजा नहीं होनी चाहिए?
सूचना यह है कि कुल 4500 पायलटों में से कई सौ फर्जी लाइसेंसधारी हैं. सरकार के डीजीसीए (डायरेक्टरेट जेनरल ऑफ सिविल एविएशन) से फर्जी लाइसेंस दिलाने के लिए बिचौलियों ने 15-15 लाख वसूले. क्या किसी नेता ने यह भी पूछा है कि भ्रष्टाचार की सजा इस देश में क्या है? क्या हुआ हर्षद मेहता का, कहां गये केतन पारिख? वित्त मंत्रालय से जारी आंकड़ों के मुताबिक 30000 करोड़ रुपये बैंकों में डूबने की स्थिति में है. बैड एंड डाउटफुल अकाउंट में दिसंबर 2010 तक. क्या ऐसे सवाल भी हमारे दलों के एजेंडे पर हैं?
अन्ना क्या कर रहे हैं? वह देश की नब्ज छू रहे हैं. भ्रष्टाचार के मुख्य स्रोत तो राजनीति, व्यवस्था और सरकार ही हैं. इनके द्वारा ही पोषित बड़े घराने हैं. गंगोत्री अवरुद्ध न हो, तो गंगा का प्रवाह शायद ठीक रहे. अगर शिखर पर बैठे लोग अपने उद्देश्यों में साफ और स्पष्ट हैं, तो भ्रष्टाचार के लाइलाज होने का सवाल कहां है? पर मूल दिक्कत है कि इस देश का शासक वर्ग (राजनीति, सरकार, नौकरशाह, उद्यमी) नहीं चाहता कि व्यवस्था से भ्रष्टाचार खत्म हो.
इसलिए पंडित नेहरू ने कहा था कि आजाद भारत में मेरी ख्वाहिश है कि भ्रष्टाचारी को लैंपपोस्ट पर लटका दिया जाये. फांसी के तख्ते पर. सार्वजनिक चौराहे पर. राजीव गांधी ने 1984 के कांग्रेस अधिवेशन में कहा कि दिल्ली से चला एक रुपया, आम आदमी तक पहुंचने पर 15 पैसे हो जाता है. ये पैसे बीच में आखिर कहां जाते हैं? शांति निकेतन में राहुल गांधी ने कहा कि भ्रष्टाचार सबसे गंभीर सवाल है.
अब भ्रष्टाचार देश का गंभीर कैंसर है, तो नेता बतायें कि इसका इलाज क्या है? क्या अन्ना के भूख हड़ताल के इंतजार में थी, केंद्र सरकार? क्यों नहीं खुद सरकार और संसद ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून बनाया? किसने रोका है? अगर सरकार व संसद इस सवाल पर कठोर रुख अपना लें, तो क्या अन्ना जैसे लोगों के सत्याग्रह का असर होगा? पर दुर्भाग्य देखिए कि लड़ना है भ्रष्टाचार के कैंसर से, तो लड़ाई हो रही है गांधीवादी अन्ना के खिलाफ !
दिनांक : 24.04.2011

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