नयी दिल्ली : प्रख्यात विधिवेत्ता राम जेठमलानी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी नये कानून पर केंद्र के बचाव को आडे हाथ लेते हुये आज कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ समझौता करेगा और यह कार्यपालिका को प्रमुखता प्रदान करेगा. न्यायमूर्ति जे एस खेहड की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बहस करते हुये जेठमलानी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कालेजियम व्यवस्था के स्थान पर नयी प्रणाली की आवश्यकता पर सवाल उठाये.
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की दलीलों का जवाब देते हुये उन्होंने इसे ‘अपमानजनक’ और ‘राष्ट्र के लिये कलंक’ बताया. संविधान पीठ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना करने संबंधी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. जेठमलानी ने कहा कि अटार्नी जनरल द्वारा चार खंडों में पेश तर्को से वह हतप्रभ हैं. अटार्नी जनरल को सुनना अपमानजनक है.
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में प्रधान न्यायाधीश की प्रमुखता ही एकमात्र मुद्दा है जो संविधान की बुनियादी विशेषता है. उन्होंने कहा कि यदि इस न्यायालय के समान सदस्यों वाली पीठ अपने पहले के निर्णय में इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि न्यायिक नियुक्तियों के मामले में न्यायपालिका की प्रमुखता है और यह संविधान की बुनियादी विशेषता है तो निश्चित ही इसमें सुधार नहीं किया जा सकता है.
जेठमलानी ने इस कानून के कई प्रावधानों की आलोचना की और कहा कि यही समय है जब संवैधानिक पाठ के संदर्भ में बुनियादी विशेषता का निर्धारण किया जाये. जेठमलानी ने कहा कि इस न्यायालय का पहले का निर्णय बाध्यकारी है और उसे निष्प्रभावी नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि भारत के एक नागरिक के रूप में उन्हें जो नागवार लगा वह यह है कि अटार्नी जनरल ने अपने कथन में कहा है कि देश को पाकिस्तान, सीलोन और आस्ट्रेलिया द्वारा अपनाया गया संवैधानिक माडल अपनाना चाहिए.