चेन्नई: ब्रिटेन के पांच उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज से अपने सबसे भारी वाणिज्यिक मिशन की उल्टी गिनती शुरु कर दी है. इसे आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल से 10 जुलाई को भारत के पीएसएलवी-सी28 प्रक्षेपण यान से प्रक्षेपित किया जाएगा.
इसरो के एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया कि साढे बासठ घंटे लंबा यह इंतजार आज सवेरे सात बजकर 28 मिनट से शुरु हुआ और इसकी तैयारियां सुचारु रुप से चल रही हैं. संगठन ने बताया कि इन पांचों उपग्रह का कुल वजन 1440 किलोग्राम है. इसरो और इसकी वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स द्वारा अपने हाथ में लिया गया यह अब तक का सबसे भारी मिशन है.
अधिकारी ने बताया कि मिशन रेडिनेस रिव्यू कमेटी और लॉन्च ऑथोराइजेशन बोर्ड ने कल पीएसएलवी-सी28..डीएमसी3 मिशन को हरी झंडी दे दी थी. ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का यह 30वां मिशन है. यह तीन एक जैसे डीएमसी3 ऑप्टिकल पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को प्रक्षेपित करेगा. इनका निर्माण ब्रिटेन की स्युरे सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड ने किया है. इसके अलावा दो सहायक उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया जाएगा.
तीन डीएमसी3 उपग्रहों में प्रत्येक का वजन का 447 किलोग्राम है और इन्हें 647 किलोमीटर दूर सूर्य-समकालिक (सन-सिंक्रोनस) कक्षा में स्थापित किया जाएगा. इसे प्रक्षेपित करने के लिए पीएसएलवी-एक्सएल के उच्चतम प्रकार का प्रयोग किया जाएगा.
इन तीन डीएमसी3 उपग्रहों के साथ पीएसएलवी-सी28 ब्रिटेन के दो सहायक उपग्रहों सीबीएनटी-1 और डी-ऑर्बिटसेल को भी ले जाएगा. सीबीएनटी-1 एक पृथ्वी अवलोकन का लघु तकनीक प्रदर्शक उपग्रह है और इसका निर्माण भी स्युरे कपंनी ने ही किया है. डी-ऑर्बिटसेल एक सूक्ष्मतम तकनीक प्रदर्शक उपग्रह है और इसका निर्माण स्युरे स्पेस सेंटर ने किया है.
इन पांच अंतरराष्ट्रीय उपग्रहों को डीएमसी अंतरराष्ट्रीय इमेजिंग (डीएमसीआईआई) के बीच में प्रवेश कराने की व्यवस्था के तहत किया जाएगा. डीएमसीआईआई ब्रिटेन की स्युरे सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड और एंट्रिक्स कारपोरेशन लिमिटेड के के पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी है.
डीएमसी3 में तीन आधुनिक छोटे उपग्रह डीएमसी3-1, डीएमसी3-2 और डीएमसी3-3 शामिल हैं. इन्हें पृथ्वी अवलोकन के उच्च आकाशीय विश्लेषण और उच्च लौकिक विश्लेषण के लिए डिजायन किया गया है. यह उपग्रह हर रोज धरती पर किसी भी लक्ष्य की छवि ले सकते हैं. इसका अधिकतर प्रयोग धरती पर संसाधन और पर्यावरण का सर्वेक्षण करने एवं आपदाओं की निगरानी और शहरी ढांचे का प्रबंध करने में किया जा सकता है.