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व्यापमं घोटाले व रहस्यमय मौतों की जांच करेगा सीबीआइ, जानिए इस व्यापक घोटाले की पूरी कहानी

इंटरनेट डेस्क नयी दिल्ली : मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की सीबीआइ जांच का आदेश आज सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया. अदालत ने साथ ही इस घोटाले से किसी न किसी रूप में जुडे लोगों की रहस्यमयी मौत की जांच का भी सीबीआइ को आदेश दिया है. अदालत, बाद में इस मामले में विह्स्लब्लोवर की […]

इंटरनेट डेस्क
नयी दिल्ली : मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की सीबीआइ जांच का आदेश आज सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया. अदालत ने साथ ही इस घोटाले से किसी न किसी रूप में जुडे लोगों की रहस्यमयी मौत की जांच का भी सीबीआइ को आदेश दिया है. अदालत, बाद में इस मामले में विह्स्लब्लोवर की याचिका पर अलग से सुनवाई करेगा. उल्लेखनीय है कि बुधवार को शीर्ष अदालत में मामला विचाराधीन होने की बात कहते हुए जबलपुर हाइकोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार की याचिका पर फैसला देने से इनकार कर दियाथा. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह इस मुद्दे पर हमेशा शिवराज सिंह चौहान सरकार पर हमलावर रहे.
ऐसे में व्यापमं की स्थापना से लेकर इस पर बदनामी का धब्बा लगने से लेकर अब जांच के निर्णायक मोड पर खडे इस संस्था और पूरे मामले से जुडे दस महत्वपूर्ण तथ्य जानते हैं :
1. आज जिस संस्था को व्यापमं यानी वाणिज्यिक परीक्षा मंडल के नाम से जाना जाता है. स्थापना के समय वह संस्था सिर्फ मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करता था. यह 1970 की बात है. 12 साल बाद 1982 में इसमें प्रि इंजीनियरिंग टेस्ट लेने वाली संस्था का विलय कर दिया गया और इसे प्रोफेशनल एक्जामिनिशन बोर्ड का नाम दिया गया.
2. बाद में 2007 में मध्यप्रदेश प्रोफेशनल एक्जामिनिशन बोर्ड की स्थापना हुई और यह संस्था कई तरह की परीक्षाएं लेने लगी. इस बीच 2000 से 2012 के बीच इस घोटाले में फर्जी परीक्षार्थी द्वारा परीक्षा देने के 55 केस दर्ज किये गये. इस मामले में नाटकीय मोड आया, सात जुलाई, 2013 को जब इंदौर क्राइम बेंच ने 20 फर्जी परीक्षार्थियों द्वारा परीक्षा देने के मामले में प्राथमिकी दर्ज की. 16 जुलाई 2013 को इस मामले में जगदीश सागर की गिरफ्तारी हुई. फिर अगस्त के अंत तक इसकी जांच एसटीएफ ने ले ली.
3. इस घोटाले के खुलासे व क्राइम ब्रांच द्वारा इसमें एफआइआर दर्ज कराने में विह्सलब्लोवर आशीष चतुर्वेदी की अहम भूमिका है. आशीष चतुर्वेदी ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगायी है. दरअसल, ग्वालियर के रहने वाले आशीष चतुर्वेदी को 2009 में ही इस मामले में घोटाले का संदेह तब हुआ, जब वे अपनी कैंसर पीडित मां का एक सरकारी डॉक्टर के पास इलाज करा रहे थे, तो उन्होंने पाया कि उसे चिकित्सा शास्त्र की बेसिक जानकारी भी नहीं है. उन्हें उसकी योग्यता पर संदेह हुआ कि यह शख्स कैसे डॉक्टर बन गया. आशीष की मां तो मर गयीं. लेकिन, इसके बाद उन्होंने दस्तावेज व जानकारियां जुटाना शुरू कर दिया. इस घोटाले का खुलासा कर एक बेटे के लिए अपनी दिवंगत मां की श्रद्धांजलि भी है.
4. आशीष चतुर्वेदी निजी तौर पर इस घोटाले की जांच में लग गये. इसी दौरान उनकी मुलाकात एक मेडिकल छात्र ब्रिजेंद्र रघुवंशी से हुई. आशीष ने रघुवंशी को साथ अपना केजुअल रिलेशन बनाया, जिसके बाद रघुवंशी ने उन्हें बताया कि उसका नामांकन रिश्वत से हुआ है और वह परीक्षा के समय भोपाल के मॉल में फिल्म देख रहा था और उसकी जगह दूसरा जानकार छात्र परीक्षा दे रहा था. इसी कारण उसका मेडिकल कॉलेज में नामांकन हो पाया.
5. जांच का दायर बढने पर और संदेह गहराने पर अक्तूबर 2013 में व्यापमं के माध्यम से मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सफल हुए 345 छात्रों का परीक्षा परिणाम रद्द कर दिया गया.
6. 2013 के दिसंबर आते-आते इस मामले में मध्यप्रदेश के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का नाम सामने आ गया 2014 के आरंभ में उनकी गिरफ्तारी भी हो गयी. इसके बाद भााजपा की तत्कालीन उपाध्यक्ष उमा भारती ने इसकी सीबीआइ जांच की मांग उठा दी.
7. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 जनवरी, 2014 को विधानसभा में इस मामले में बयान दिया, जिसका वे बार-बार उल्लेख करते हैं. उन्होंने कबूल किया कि 2007 से व्यापमं के माध्यम से हुई 1.47 लाख नियुक्ति में एक लाख नियुक्ति गलत ढंग से हुई है. हालांकि बाद में इस संख्या को कम कर 200 बताया गया. पर, वास्तविक रूप से यह संख्या बहुत अधिक थी. फिलहाल इस मामले में 1700 के लगभग गिरफ्तारियां हुई हैं और 47 रहस्यमय मौत हुई है. पांच नवंबर 2014 को जबलपुर हाइकोर्ट ने इस मामले में तीन सदस्यीय एसआइटी का गठन किया.
8. जैसे-जैसे घोटाले की बजबजाहट सतह पर आ गयी थी, वैसे-वैसे इस मामले से संबंधित लोगों की रहस्यमयी मौतों का सिलसिला भी शुरू हो गया. इंदौर मेडिकल कॉलेज की छात्रा नम्रता डामोर का शव सात जनवरी 2012 को रेल पटरी पर मिला. इसके अलावा, इस मामले में नियुक्ति से संबंधित कई अधिकारियों, बडे राजनेताओं के परिजन व अन्य लोगों की रहस्यमय मौत की खबरें आने लगीं. एमपी के राज्यपाल रामनरेश यादव के परिजन पर इस मामले में आरोप हैं, उनके बेटे की भी मौत हुई. यहां तक इसकी रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार अक्षय सिंह की मौत हो गयी.
9. पत्रकार अक्षय सिंह की मौत के बाद यह मामला बहुत गर्म हो गया. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व पर भी इसके लिए दबाव बनाया जाने लगा कि वह मामले की सीबीआइ जांच कराये. राज्य सरकार इससे इनकार करती रही. छह जुलाई को राज्य के दौरे पर गये केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इसकी सीबीआइ जांच हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही हो सकती है. क्योंकि यह मामला उनके विचाराधीन है.
10. अगले दिन यानी सात जुलाई 2014 को शिवराज सिंह चौहान नाटकीय रूप से मीडिया के समक्ष आये और उन्होंने कहा कि आरोपों से वे आहत हैं और उन्होंने तय किया है कि वे इस मामले की सीबीआइ से जांच कराने के लिए वे हाइकोर्ट से अनुरोध करेंगे. आठ जुलाई को हाइकोर्ट ने चौहान की अपील को यह कहकर ठुकरा दिया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए सीबीआइ जांच संबंधी फैसला वहीं लिया जा सकता है.

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