बदलाव के बिंदु
– हरिवंश – व्यवस्था बदलने की पहली सीढ़ी है, चुनाव पद्धति-प्रक्रिया में सुधार. चुनाव में सुधार के क्या रास्ते अपनाये जायें? लगभग सारे सांसद (कुछेक अपवादों को छोड़कर) या विधायक शपथपत्र में खर्च का ब्योरा देते हैं, क्या वे सही हैं? पूरा देश-समाज जानता है कि यह झूठ है. चुनाव के लिए तय खर्च की […]
– हरिवंश –
व्यवस्था बदलने की पहली सीढ़ी है, चुनाव पद्धति-प्रक्रिया में सुधार. चुनाव में सुधार के क्या रास्ते अपनाये जायें? लगभग सारे सांसद (कुछेक अपवादों को छोड़कर) या विधायक शपथपत्र में खर्च का ब्योरा देते हैं, क्या वे सही हैं? पूरा देश-समाज जानता है कि यह झूठ है.
चुनाव के लिए तय खर्च की सीमा भी आज की महंगाई में गैरवाजिब है. झूठ बोलकर लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश करनेवाले कैसे सात्विक और सैंद्धांतिक लोकतंत्र के पक्षधर बनेंगे? चुनाव जीतने के लिए बड़ी पूंजी चाहिए. कालाधन चाहिए.
भारत के मानस में बेचैनी है. इस बेचैनी के प्रतिबिंब हैं, ”अन्ना हजारे”. हजारों वर्षों की गुलामी, इस देश और समाज ने झेली है. इसलिए डॉ राममनोहर लोहिया कहते थे कि वह जिद जो परिवर्तन, बदलाव या क्रांति के लिए जरूरी है, वह भारत में नहीं है. पर 1857 के विद्रोह और स्वतंत्रता की लड़ाई ने स्वाभिमान के साथ जीने की प्रेरणा दी.
लोहिया और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने समाज को झकझोरा. 1974 और 89 में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन ने परिवर्तन की भूख जगायी. पर, परिवर्तन हुआ नहीं. हालांकि दोनों बार सत्ता बदली. दरअसल व्यवस्था परिवर्तन के बिना भारत बदलनेवाला नहीं है.
अन्ना के आंदोलन से भारत जग रहा है. उसकी बेचैनी सार्वजनिक हो रही है, सड़कों पर दिखायी दे रही है. पर, महज बेचैनी के प्रदर्शन से मुल्क नहीं बदलनेवाला. जयप्रकाश नारायण ने 74 में ही कहा था, सत्ता परिवर्तन तो एक पड़ाव है. असल मकसद है, संपूर्ण क्रांति. संपूर्ण क्रांति यानी व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन.
यानी चुनाव पद्धति में परिवर्तन, राजनीतिक दलों के कामकाज में परिवर्तन, राजनीति में सिद्धांत और मुद्दों का प्रवेश, लोकसभा और विधानसभाओं को सार्थक बनाना. इस तरह जीवन और सोच में बदलाव. अगर इन क्षेत्रों में परिवर्तन के कदम नहीं उठाये गये, तो देश में कोई बदलाव नहीं आनेवाला. 74 के असल आंदोलनकारी और 1989 में व्यवस्था परिवर्तन की ल़ड़ाई लड़नेवाले निराश हुए, क्योंकि भ्रष्टाचार बढ़ता ही गया. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि व्यवस्था नहीं बदली.
व्यवस्था बदलने की पहली सीढ़ी है, चुनाव पद्धति-प्रक्रिया में सुधार. चुनाव में सुधार के क्या रास्ते अपनाये जायें? लगभग सारे सांसद (कुछेक अपवादों को छोड़कर) या विधायक शपथपत्र में खर्च का ब्योरा देते हैं, क्या वे सही हैं? पूरा देश-समाज जानता है कि यह झूठ है.
चुनाव के लिए तय खर्च की सीमा भी आज की महंगाई में गैरवाजिब है. झूठ बोलकर लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश करनेवाले कैसे सात्विक और सैंद्धांतिक लोकतंत्र के पक्षधर बनेंगे? चुनाव जीतने के लिए बड़ी पूंजी चाहिए. कालाधन चाहिए. इस तरह सांसद, विधायक या संसद-विधायिका के गठन में सात्विक और पवित्र पूंजी कितनी लगती है? अब कालाधन के गर्भ से निकलते सांसद-विधायक सफेद (ईमानदार) पूंजी के उपासक कैसे बनेंगे?
इसी तरह राजनीतिक दलों में परिवर्तन के बगैर भ्रष्टाचार कैसे दूर होगा? आज दलों के अंदर लोकतंत्र कहां है? क्या दलों के वार्षिक अधिवेशन होते हैं? इन अधिवेशनों में क्या दल के डेलीगेटस पार्टी के पदाधिकारियों का चयन करते हैं? दल के वार्षिक अधिवेशनों में देश के घरेलू और विदेश नीति पर बात होती है? यह सारी प्रक्रिया तो कमोबेश खत्म हो चुकी है.
कुछेक अपवाद है. दलों में आलाकमान हैं. दल पारिवारिक संपत्ति बन गये हैं. एक ही परिवार के लोगों की जेब में हैं दल. बड़े नेताओं की गणेश परिक्रमा कर लोग बड़े पदों पर पहुंचते हैं. टिकट पाते हैं. अपनी प्रतिभा, सिद्धांत, कौशल और विचार के कारण किसी पार्टी का कोई साधारण कार्यकर्ता अब शीर्ष पर पहंुचने का सपना भी नहीं पाल सकता. दल अब प्रतिभाओं से नहीं, दलालों से चलते हैं. प्रतिभा, स्वाभिमान, चरित्र और प्रतिबद्धता की राजनीति में जगह नहीं है. दलों के अंदर टिकट खरीदे-बेचे जाते हैं.
एक ईमानदार कार्यकर्ता आसानी से अपना भविष्य नहीं संवार सकता. उसे पग-पग पर समझौते करने पड़ते हैं. स्वाभिमान का सौदा कर वह आगे बढ़ता है. क्या ऐसे लोग बेहतर जनप्रतिनिधि हो सकते हैं? इसका परिणाम कहां दिखता है? संसद और विधायिकाओं में.
आज संसद, खासतौर से लोकसभा में, महत्वपूर्ण बहसों पर उपस्थिति देखिए. फिर बहसों में भागीदारी का आकलन कीजिए. बोलनेवाले के भाषण की गुणवत्ता परखिए. यानी कंटेंट एनालिसिस (भाषण की समीक्षा). महंगाई, भ्रष्टाचार, विदेश नीति या फिर अन्ना के सवाल पर जब संसद में पूरी उपस्थिति होनी चाहिए, तब कितने लोग दिखते हैं? इसी तरह राज्य विधानसभाओं के क्या हाल हैं? अनर्गल प्रलाप. चीख-पुकार. अभद्र प्रदर्शन.
आरोप-प्रत्यारोप. यही स्तर है, विधायिका का? क्या इन्हें श्रेष्ठ बनाये बिना लोकतंत्र समृद्ध और बेहतर होगा? क्या इससे भ्रष्टाचार मुक्त शासन-समाज या देश संभव है? इस तरह जन लोकपाल का गठन तो हो ही, अन्ना आंदोलन की मांग होनी चाहिए कि चुनाव पद्धति की समीक्षा हो, चुनाव के खर्च के विकल्प पर विचार हो. न्यायपालिका में बदलाव हो. भ्रष्टाचार के मुकदमों की क्या स्थिति है? पशुपालन घोटाले की सुनवाई 16 वर्षों से चल रही है. अगर ये 20-30 वर्षों तक इसी रफ्तार से मामले चलें, तब भी फैसले नहीं आनेवाले. इसमें बड़े-बड़े राजनेता फंसे हैं?
इस तरह भ्रष्टाचार को जन्म देनेवाली व्यवस्था (सिस्टम) को बदलने की शुरुआत हो? यह कौन सी व्यवस्था या अर्थतंत्र हैं, जहां इतनी तेजी से संपत्ति बढ़ती है? दुनिया की किसी आर्थिक प्रणाली में यह चमत्कार संभव है? दरअसल यह राजनीति और सत्ता की लूट प्रणाली में ही संभव है. इसलिए इस लूट प्रणाली को सही और ईमानदार अर्थतंत्र में बदलने की बात हो.
इन सभी क्षेत्रों में व्यवस्थागत बदलाव के बगैर न देश बदलेगा, न व्यवस्था. अन्ना आंदोलन की अग्निपरीक्षा है कि वह इन जरूरी क्षेत्रों में से किसी एक क्षेत्र में भी बदलाव के खूंटे गाड़ पाता है. चुनाव प्रणाली, राजनीतिक दल, समाज-देश का निजी व सार्वजनिक चरित्र, संसद, विधायिका, न्यायपालिका, अर्थतंत्र इन सबमें बदलाव के बिना अन्ना आंदोलन के सपने नहीं साकार होनेवाले?
राजनीतिक दलों के कामकाज पर नयी बहस हो, उनमें बदलाव हो, ताकि हर दल के अंदर प्रतिभावान, सक्षम और बेहतर लोग सामने आयें. चारण, चाटुकार, चापलूस नहीं. अन्ना आंदोलन के लोगों की मांग हो कि राजनीतिक दल पारिवारिक दल और विरासत तैयार करनेवाली संपत्ति न बनें. अन्यथा इसके परिणाम क्या होते हैं? 19 अगस्त की खबर है.सीबीआइ की टीम ने जगनमोहन रेड्डी और आंध्रप्रदेश के गृह सचिव के घर पर छापे डाले.
सात वर्षों में जगन रेड्डी की संपत्ति 11 लाख से बढ़कर 43000 करोड़ हो गयी. हैदराबाद में सीबीआइ ने उनके 60 बेडरूम वाले भव्य मकान पर भी छापे डाले. हैदराबाद के सबसे महंगे इलाके बंजारा हिल्स में. उनकी बहन के घर भी. आंध्र के गृह सचिव जब आंध्र प्रदेश इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रकचर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक थे, तब एक घराने से समझौते के दौरान इस सरकारी कारपोरेशन को 1000 करोड़ रुपये की क्षति हुई. उल्लेखनीय है कि जगनमोहन रेड्डी आंध्रप्रदेश के दिवगंत पूर्व मुख्यमंत्री वाइएस राजशेखर रेड्डी के पुत्र हैं.
राजशेखर रेड्डी के मुख्यमंत्री रहते ही यह संपत्ति अर्जित हुई है. चूंकि जगन रेड्डी ने कांग्रेस से विद्रोह कर दिया, इसलिए उन पर कार्रवाई चल रही है. ऐसा उनके समर्थकों का आरोप है. पर जगन रेड्डी की तरह कमोबेश अनेक नेताओं के राजकुमार हैं. तमिलनाडु के कई ऐसे नेताओं के राज सामने आये हैं. 2जी मामले में ही देख लीजिए. यही हालत महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में भी हैं. क्या इन राजनीतिक दलों के अंदर सफाई के बिना भ्रष्टाचार मुक्त शासन संभव है?
दिनांक : 21.08.2011