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निठारी कांड: न्यायालय ने उप्र सरकार की याचिका पर सुरेन्द्र कोली से मांगा जवाब

नयी दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने निठारी कांड के मुजरिम सुरेन्द्र कोली की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उप्र सरकार की याचिका पर आज इस सजायाफ्ता कैदी से जवाब तलब किया. प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने उप्र सरकार की […]

नयी दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने निठारी कांड के मुजरिम सुरेन्द्र कोली की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उप्र सरकार की याचिका पर आज इस सजायाफ्ता कैदी से जवाब तलब किया.

प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने उप्र सरकार की याचिका पर सुरेन्द्र कोली को नोटिस जारी किया. उच्च न्यायालय ने कोली की दया याचिका के निबटारे में अत्यधिक विलंब को देखते हुए राज्य सरकार को आड़े हाथ लिया था.उच्च न्यायालय ने 14 वर्षीय रंपा हलदर की हत्या के जुर्म में कोली की मौत की सजा को इस साल 28 जनवरी में उम्र कैद में तब्दील कर दिया था. कोली को गाजियाबाद में सीबीआई की विशेष अदालत ने 13 फरवरी, 2009 को मौत की सजा सुनायी थी.
उच्च न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की जनहित याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया था. अदालत ने कोली की याचिका को भी इसके साथ ही संलग्न कर दिया था. दोनों ही याचिकाओं में कोली के सात साल से भी अधिक समय तक जेल में रहने के आधार पर उसकी मौत की सजा पर अमल की संवैधानिकता पर सवाल उठाये गये थे.
रिंपा की हत्या का मामला दिसंबर, 2006 में प्रकाश में आया था जब निठारी के अनेक बच्चे एक एक करके लापता हो गये थे और नोएडा स्थित कारोबारी मोनिन्दर सिंह पंढेर के कर्मचारी कोली के निवास के पास से कंकाल मिले थे.
उच्च न्यायालय ने उप्र सरकार की कडी आलोचना करते हुये कहा था कि कोली की दया याचिका पर फैसला लेने में तीन साल तीन महीने का वक्त लगा जिसमें से 26 महीने तो राज्य सरकार ने ही ले लिये थे जो अनावश्यक और अनुचित था. अदालत ने कहा था कि मौत की सजा पर अमल के लिये लंबे समय तक हिरासत में रखना अमानवीय है और इससे संविधान के अनुच्छेद 21 का हनन होता है.
कोली ने राज्यपाल के पास सात मई, 2011 को दया याचिका दायर की थी जिसे दो अप्रैल, 2013 को अस्वीकार किया गया और फिर इसे करीब तीन महीने बाद 19 जुलाई, 2013 को केंद्रीय गृह मंत्रलय के पास भेजा गया. कोली और पंढेर दोनों ही अनेक हत्याओं के आरोपी हैं और रिंपा हलदर मामले में उन्हें मौत की सजा सुनायी गयी थी.
हालांकि 11 सितंबर, 2009 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पंढेर को बरी करते हुये कोली की सजा बरकरार रखी थी. अदालत ने स्पष्ट किया था कि इस फैसले का दूसरे संबंधित मामलों पर कोई असर नहीं होगा. कोली ने उच्चतम न्यायालय में अपील की लेकिन उसे वहां सफलता नहीं मिली. इसके बाद उसने दया याचिका दायर की थी.
दया याचिका खारिज होने के बाद कोली ने उच्चतम न्यायालय में एक अर्जी दायर की थी. यह अर्जी अस्वीकार होने के तीन बाद 31 अक्तूबर, 2014 को पीयूडीआर ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी.

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