नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगी तुर्की की अपनी पहली यात्र के दौरान आज सीमा पारीय आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इससे ‘‘व्यक्तिगत और सामूहिक’’ दोनों तरह से निपटने की जरुरत है क्योंकि यह विश्व शांति के लिए खतरा है.राष्ट्रपति ने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने में भारत किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के खिलाफ है.
प्रणब ने कल तुर्की के अपने समकक्ष अब्दुल्ला गुल से मुलाकात और तुर्की के प्रधानमंत्री रेसेप तैयिप एदरेगन से ‘‘सीमित’’ बातचीत की. राष्ट्रपति ने कहा था कि दोनों नेताओं ने उनके साथ इस बात पर सहमति जताई कि आतंकवाद विश्व को खतरा पहुंचा रही बुराई है और इससे ‘‘व्यक्तिगत तथा सामूहिक’’ दोनों तरह निपटे जाने की जरुरत है.
संस्थाओं को अपनी सीमा के भीतर काम करना चाहिए
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि लोकतंत्र में संस्थाओं को संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर रहकर काम करना चाहिए. राष्ट्रपति ने साथ ही कहा कि देश की प्रणाली में किसी भी संकट से निपटने की क्षमता है.प्रणब मुखर्जी ने बेल्जियम और तुर्की के दौरों के लौटते समय अपने विशेष विमान में सवार संवाददाताओं से कहा, ‘‘ मैंने कई बार कहा है कि इन संस्थाओं को संविधान द्वारा निर्धारित की गई अपनी सीमाओं में काम करना चाहिए.’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हर संस्था को संविधान से ही अधिकार मिलता है और वर्तमान, सक्रिय बहु पक्षीय प्रणाली में ऐसा कई बार हो सकता है जब विभिन्न संस्थाएं एक विशेष तरीके से काम करें लेकिन हम में टकराव से निपटने और ऐसे संकटों से बचने की क्षमता और लचीलापन है.’’ राष्ट्रपति ने लोकतंत्र की विभिन्न संस्थाओं के बीच ‘बढते’ टकराव के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में यह बात कही.
प्रश्नकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के दोषी सांसदों एवं विधायकों को छूट देने वाले कानून को निष्प्रभावी करने के आदेश तथा इसके बाद सरकार के इस आदेश को बेअसर करने के लिए एक अध्यादेश लाने का जिक्र किया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दोषी सांसदों और विधायकों की सदस्यता तत्काल रद्द होने से बचाने वाले अध्यादेश को 2 अक्तूबर को वापस ले लिया था.
उच्चतम न्यायालय ने 10 जुलाई को चुनाव कानून के उन प्रावधानों को निष्प्रभावी करने का आदेश दिया था जो दोषी सांसदों एवं विधायकों को उपरी अदालतों में अपील लंबित होने के आधार पर उनकी सदस्यता रद्द होने से बचाते थे. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न्यायालय के इसी आदेश को बेअसर करने के लिए अध्यादेश पारित किया था. राष्ट्रपति ने स्वयं इस अध्यादेश पर कुछ सवाल उठाए थे. उन्होंने तीन मंत्रियों को बुलाकर उनसे इस मुद्दे पर बात की थी.