निजी स्वामित्व का साम्यवादी दर्शन फेल! अब ””पूंजीवादी मालिकाना”” हक का नया दौर!
– हरिवंश – हालांकि दुनिया के ‘रेड कॉडर’ (प्रतिबद्ध साम्यवादी या धुर वामपंथी) गुजरे शुक्रवार (18 मार्च) को ‘ब्लैक फ्राइडे’ के रूप में ही याद करेंगे, पर उदार वामपंथी आत्मविश्लेषण करेंगे. चीन के ऐतिहासिक ‘बीजिंग ग्रेट हाल आफ द पीपुल’ (चीनी संसद) में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस अधिवेशन ने निजी संपत्ति को कानूनी मान्यता दे दी. […]
– हरिवंश –
हालांकि दुनिया के ‘रेड कॉडर’ (प्रतिबद्ध साम्यवादी या धुर वामपंथी) गुजरे शुक्रवार (18 मार्च) को ‘ब्लैक फ्राइडे’ के रूप में ही याद करेंगे, पर उदार वामपंथी आत्मविश्लेषण करेंगे. चीन के ऐतिहासिक ‘बीजिंग ग्रेट हाल आफ द पीपुल’ (चीनी संसद) में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस अधिवेशन ने निजी संपत्ति को कानूनी मान्यता दे दी.
कुल 2799 सदस्योंवाली कांग्रेस में, इस दूरगामी प्रस्ताव के खिलाफ 52 आवाजें थीं. 37 अनुपस्थित थे. शेष समर्थक. सात संशोधनों के बाद ‘निजी संपत्ति कानून’ को चीनी संसद से मान्यता मिली. इस कानून में 247 अनुच्छेद (क्लाज) हैं और यह अक्तूबर 2007 से लागू होगा.
चीन की राजधानी बीजिंग के इसी ‘ग्रेट हाल आफ द पीपुल’ में, 1949 में इसी पाट कांग्रेस ने ‘कलेक्टिविज्म इन प्रापट ओनरशिप’ (सामूहिक संपत्ति) तय की थी. मार्क्स, लेनिन और माओ के सिद्धांतों के अनुरूप जीवन, समाज, संपत्ति और सत्ता चलाने के विधान भी यहीं बने थे.
याद करिए, जिस रूस की संसद (ड्यूमा) में 1917 की क्रांति से लेकर साम्यवादी आदर्शों, विचारों-कानूनों के स्वर गूंजे थे, वहीं 1990 में, उसी रूसी संसद ने ‘ग्लासनोत’ और पेरोस्त्रोइका (खुलापन, उदारीकरण) वगैरह के नारे दिये. कानून बदले. 2006 की रूस यात्रा में इस ड्यूमा को देख न जाने कितनी चीजें, दिमाग में एक साथ कौंधी. यहीं साम्यवाद के नये दर्शन, नयी विचारधारा से नया तंत्र खड़ा करने की कोशिश हई, जिसे पूरी दुनिया सांस रोक देख रही थी. 70 वषा में ही वह ध्वस्त हुआ. इसी ड्यूमा हाल में. यकीनन मार्क्स को एहसास नहीं रहा होगा कि इतिहास की पुनरावृत्ति की शैली यह होती है.
गीता के ‘निष्काम, तटस्थ और निरपेक्ष’ भाव-गति के रूप में. महाभारत के संदेश कि ‘काल’ (टाइम) ही निर्णायक हैं, के तौर-तरीके से. व्यक्ति, विचारधारा और इतिहास शायद गौण पात्र हैं. महाभारत का ही प्रसंग है, वही अर्जुन, वही गांडीव और वही तीर, पर भीलों ने पल भर में बाजी पलट दी.
चीन के इस कदम को पूरी दुनिया गौर से देख रही है. निजी संपत्ति को मान्यता देने का कानून वर्ष भर पहले बनना था. पर टला. चीनी शासक मानते हैं कि चीन की विकास गति (ग्रोथ रेट) से दुनिया स्तब्ध है. 30 वषा से इसी रफ्तार या विकास दर से, चीन बढ़ रहा है.
चीनी शासक मानते हैं कि अब चुनौती है कि आगे 30 वर्षोंके लिए यही, या इससे अधिक विकास दर कैसे हासिल हो? यह सूचना है कि ग्रामीण चीन अशांत है. जबरन जमीन लेने के खिलाफ लोग आवाज उठाते हैं. हालांकि वहां जमीन ‘कलेक्टिव ओनरशीप’ (सामूहिक स्वामित्व) के तहत है, या सरकार का मालिकत्व है.
उद्योग, धंधा या कारोबार के लिए सरकार अपनी जमीन जबरन लेती है. न पुनर्वास की चिंता है, न विस्थापन की गूंज है. पर चीनी शासकों ने माना कि ग्रामीण इलाकों में मालिकाना हक मिलने से, विस्थापन का यह स्वरूप नहीं रहेगा. लोग, बसे जमीन पर या खेती जमीन पर हक पा कर खुश होंगे. ग्रामीण इलाकों की अशांति खत्म होगी.
गुजरे तीन दशकों में चीनी अर्थव्यवस्था के विकास, बड़े मध्यवर्ग के उदय और गरीबी रेखा से नीचे रहनेवालों की संख्या में भारी कमी, को पश्चिम स्तब्ध होकर देख रहा है. इस बड़े मध्य वर्ग को चीन खुश रखना चाहता है, क्योंकि यह वर्ग ‘ग्रोथ इंजन’ (विकास हरावल दस्ता) माना जा रहा है.
2002 में चीनी साम्यवादी पाट ने पहला बड़ा कदम उठाया था. उद्योगपतियों-पूंजीपतियों को साम्यवादी पाट में शामिल करने का फैसला कर. साम्यवादी विचारक मान रहे हैं कि चीन एक दूसरी क्रांति के द्वार पर है.
नये उभरे मध्य वर्ग या संपत्तिधारी मध्य वर्ग, के नेतृत्व में ‘बुर्जूआ रिवोल्यूशन’ की प्रतीक्षा में. पिछले चार वर्षों से दहाई विकास दर हासिल करनेवाले चीन ने, इस निजी संपत्ति कानून की पृष्ठभूमि में वैचारिक द्वंद्व भी देखा. ‘फ्री माकटियर्स’ (बाजारवादी) और ‘लेफ्ट विंगर्स’ (वामपंथी) के बीच. शायद, तेंग सियाओ पेंग का दर्शन ‘टू बी रिच इज ग्लोरियस’ (धनवान होना गौरवमय है) का यह जादू है. शहरी चीन में तो 90 के दशक से ही घर के स्वामित्व का प्रावधान हो गया था.
अब चीन का नया नारा है, ‘न्यू सोशलिस्ट कंट्रीसाइड’ (नया समाजवादी ग्रामीण चीन). स्वास्थ्य और शिक्षा पर इस वर्ष के बजट में चीन ने भारी वृद्धि की है.
स्वास्थ्य पर 87 फीसदी अधिक खर्च और शिक्षा पर 39 फीसदी की वृद्धि से, ग्रामीण चीन बदलेगा, यह अर्थशास्त्री मानते हैं. पर भारत समेत दुनिया चिंतित है कि अप्रत्याशित रफ्तार से अमीर बन रहा चीन, इस वर्ष रक्षा बजट पर 18 फीसदी अधिक खर्च करेगा.
हालांकि दुनिया के शीर्ष रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन रक्षा बजट के बारे में जो बताता है, उससे बहत अधिक खर्च करता है. नयी आर्थिक महाशक्ति और नयी सामरिक महाशक्ति, के रूप में उभरते चीन को दुनिया भय की दृष्टि से भी देख रही है.
बाजारवाद, उदारीकरण और ग्लोबलाइजेशन के दौर के कुछ विचारक मानते हैं कि यह विचारों, वादों या सिद्धांतों का अंत का दौर है. ‘एंड आफ हिस्ट्री’ (इतिहास अंत) की भी बात होती है. पर सबसे बड़ा सवाल आज भी वही है, जो चीनी-रूसी क्रांति के पहले मानव समाज के सामने था.
सदियों पहले था या कहें हजारों वर्षों से था. शायद सही तो यह कहना होगा कि मनुष्य या मानव सभ्यता के जन्म से ही यह सवाल जुड़ा रहा है कि मनुष्य का मन अहिंसा से या बुद्ध की करुणा से या गांधी की नीतियों से बदलेगा? पूंजीवाद, समाजवाद, अराजकवाद, फासीवाद या साम्यवाद से परिवर्तित होगा? या पूंजीवाद (बाजारवाद या उपभोक्तावाद) के नये रूप से?
दिनांक : 20-03-07