याकूब मेमन की याचिका पर सुनवाई कल, न्यायाधीशों के बीच मतभेद के बाद मामला प्रधान न्यायाधीश के पास पहुंचा
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने आज याकूब अब्दुल रजाक मेमन की उस याचिका पर खंडित निर्णय दिया जिसमें उसने 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में 30 जुलाई को निर्धारित अपनी फांसी पर रोक लगाने का आग्रह किया है. पीठ ने मामला प्रधान न्यायाधीश को भेज दिया. याकूब […]
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने आज याकूब अब्दुल रजाक मेमन की उस याचिका पर खंडित निर्णय दिया जिसमें उसने 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में 30 जुलाई को निर्धारित अपनी फांसी पर रोक लगाने का आग्रह किया है. पीठ ने मामला प्रधान न्यायाधीश को भेज दिया.
याकूब मुंबई बम विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाला एकमात्र दोषी है. न्यायमूर्ति एआर दवे ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 30 जुलाई को फांसी दिए जाने के लिए 30 अप्रैल को जारी डेथ वारंट पर रोक लगा दी.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और मेमन की ओर से पेश हुए राजू रामचंद्रन सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि क्योंकि डेथ वारंट पर रोक लगाने के मुद्दे पर दोनों न्यायाधीशों का अलग-अलग निर्णय है,’ यदि एक न्यायाधीश इस पर रोक लगाता है और दूसरा नहीं, तो फिर कानून में कोई व्यवस्था नहीं रहेगी.’
पीठ ने डेथ वारंट पर खंडित मत के चलते मामला शाम चार बजे त्वरित विचार करने के लिए प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू को भेज दिया. इसने प्रधान न्यायाधीश से यह भी आग्रह किया कि वह एक उचित पीठ गठित करें और मामले को सुनवाई के लिए कल के लिए सूचीबद्ध करें.
न्यायमूर्ति दवे ने मेमन की याचिका खारिज कर दी और कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल को अब उसकी सजा पर अमल के लिये निर्धारित तारीख से पहले उसकी दया याचिका का निबटारा करना होगा.न्यायमूर्ति दवे ने मेमन की याचिका खारिज करते हुये उसकी मौत की सजा पर अमल के लिये मुंबई में टाडा अदालत द्वारा 30 अप्रैल को जारी वारंट पर रोक लगाने के न्यायमूर्ति कुरियन से असहमति व्यक्त की.
न्यायमूर्ति दवे ने इस मसले पर मनु स्मृति का एक श्लोक उद्धृत करते हुये कहा, ह्यह्यखेद है, मैं मौत के फरमान पर रोक लगाने का हिस्सा नहीं बनूंगा. प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने दीजिये. न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि वह न्यायमूर्ति दवे से सहमत होने में असमर्थता व्यक्त करते हैं क्योंकि मेमन की सुधारात्मक याचिका पर फैसला करते समय ‘प्रक्रियात्मक उल्लंघन’ हुआ है.
न्यामयूर्ति कुरियन ने कहा कि एक बार जब यह पता चल गया है कि सुधारात्मक याचिका पर विचार करते समय कानून में प्रतिपादित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है और वह भी ऐसी स्थिति में जब यह एक व्यक्ति की जिंदगी से संबंधित हो और जब यह स्पष्ट हो कि अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है तो इस दोष को दूर करना होगा.
न्यायमूर्ति कुरियन ने मेमन की सुधारात्मक याचिका पर नये सिरे से सुनवाई पर जोर देते हुये कहा कि सुधारात्मक याचिका पर इस न्यायालय द्वारा प्रतिपादित नियमों के अनुसार फैसला नहीं किया गया था. इस दोष को दूर करने की आवश्यकता है और ऐसा नहीं होने पर यह संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन होगा.
न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि इस मामले पर गौर करते समय इसमे निहित तकनीकी बिन्दु न्याय के मार्ग में नहीं आने चाहिए क्योंकि संविधान के तहत यह न्यायालय को एक व्यक्ति की जिंदगी की रक्षा करनी है.