मौत की सजा के विरोधी थे एपीजे अब्दुल कलाम

नयी दिल्ली : मुंबई बम धमाकों के कसूरवार याकूब मेमन को मौत की सजा देने या न देने के मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच दिवंगत ए पी जे अब्दुल कलाम ने मौत की सजा का प्रावधान खत्म करने का समर्थन करते हुए हाल ही में कहा था कि भारत के राष्ट्रपति के तौर पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2015 6:08 PM

नयी दिल्ली : मुंबई बम धमाकों के कसूरवार याकूब मेमन को मौत की सजा देने या न देने के मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच दिवंगत ए पी जे अब्दुल कलाम ने मौत की सजा का प्रावधान खत्म करने का समर्थन करते हुए हाल ही में कहा था कि भारत के राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें ऐसे मामलों पर फैसला करने में दुख का अनुभव होता था क्योंकि उनमें से ज्यादातर के ‘सामाजिक एवं आर्थिक पूर्वाग्रह’ होते हैं.

कलाम ने हाल ही में मौत की सजा पर विधि आयोग के एक विमर्श-पत्र पर अपनी राय दी थी और वह उन चंद लोगों में से एक थे, जिन्होंने मौत की सजा का प्रावधान खत्म करने का समर्थन किया था. करीब 400 से ज्यादा लोगों ने इस मुद्दे पर अपनी राय दी थी जिसमें ज्यादातर लोगों ने मौत की सजा का प्रावधान बनाए रखने का समर्थन किया था.

विमर्श-पत्र पर अपनी राय में कलाम ने कहा था कि राष्ट्रपति के तौर पर उनके लिए सबसे मुश्किल काम मौत की सजा पर फैसला करना होता था. उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय एक पीठ ने आज याकूब मेमन की उस अर्जी पर बंटा हुआ फैसला दिया जिसमें 30 जुलाई को निर्धारित उसकी फांसी पर रोक लगाने की मांग की गई थी. पीठ ने इस मुद्दे को विचार के लिए एक बडी पीठ के पास भेजने के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के हवाले कर दिया.

न्यायमूर्ति ए आर दवे ने जहां याकूब की अर्जी खारिज कर दी, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 30 अप्रैल को जारी उस डेथ वॉरंट पर रोक लगा दी जिसके तहत उसे 30 जुलाई को फांसी दी जानी है. अपनी किताब टर्निंग प्वॉइंट्स का हवाला देते हुए कलाम ने कहा था, राष्ट्रपति के तौर पर मेरे लिए सबसे ज्यादा मुश्किल कामों में अदालतों की ओर से दी गई मौत की सजा की पुष्टि के मुद्दे पर फैसला करना शामिल था…..मुझे आश्चर्य होता था कि…..जो भी मामले लंबित होते थे उनमें कमोबेश सभी के अपने सामाजिक एवं आर्थिक पूर्वाग्रह होते थे.

कलाम ने कहा था, इससे मुझे ऐसा लगता था कि हम ऐसे शख्स को सजा दे रहे हैं जो दुश्मनी में सबसे कम शामिल था और जिसकी अपराध करने की कोई सीधी मंशा नहीं थी. बहरहाल, पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि निश्चित तौर पर एक मामला ऐसा था जिसमें उन्होंने पाया कि लिफ्ट ऑपरेटर ने वाकई लडकी से बलात्कार कर उसकी हत्या करने का अपराध किया था. उन्होंने कहा, उस मामले में मैंने सजा की पुष्टि कर दी.

कलाम धनंजय चटर्जी के मामले का हवाला दे रहे थे जिसने पांच मार्च 1990 को 18 साल की एक लड़की से बलात्कार और उसकी हत्या का जुर्म किया था. इसी मामले में धनंजय को मौत की सजा दी गई थी. विधि आयोग ने इस महीने की शुरुआत में मौत की सजा पर विमर्श प्रक्रिया संपन्न करने के लिए एक दिन की बैठक बुलाई थी. लिखित सुझावों और विमर्श के आधार पर इससे जुडी अंतिम रिपोर्ट अगले महीने उच्चतम न्यायालय को सौंपी जाएगी. पिछले साल 22 मई को जारी एक विमर्श पत्र में विधि आयोग ने कहा था कि अभी इस विषय पर गहन अध्ययन इस मुद्दे पर चल रही सार्वजनिक बहस में एक लाभदायक और हितकर योगदान होगा.

Next Article

Exit mobile version