राजीव के हत्यारों को नहीं दी जाएगी फांसी, केंद्र की सुधारात्मक याचिका खारिज

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तीन हत्यारों की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने के खिलाफ केंद्र की ओर से दाखिल सुधारात्मक याचिका को आज खारिज कर दिया. प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, हमने सुधारात्मक याचिकाओं और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 29, 2015 10:02 PM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तीन हत्यारों की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने के खिलाफ केंद्र की ओर से दाखिल सुधारात्मक याचिका को आज खारिज कर दिया. प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, हमने सुधारात्मक याचिकाओं और संबंधित दस्तावेजों पर गौर किया है. हमारी राय में ये उन मापदंडों के भीतर नहीं आते हैं जिनका रुपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य के मामले में इस अदालत के फैसले में संकेत दिया गया था.

उन्होंने कहा, ऐसे में सुधारात्मक याचिका को खारिज किया जाता है. पीठ में न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति ए आर दवे, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह भी थे. देश की सबसे बड़ी अदालत का यह फैसला तत्कालीन संप्रग सरकार की ओर से दायर सुधारात्मक याचिकाओं पर आया है. ये याचिकाएं पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किए जाने के बाद दायर की गई थी.

राजीव गांधी के हत्यारों संतन, मुरुगन और पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने को चुनौती देते हुए दायर पुनर्विचार याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल फरवरी में इस आधार पर खारिज किया था कि उनकी दया याचिकाओं पर फैसला करने में 11 साल का विलंब हुआ है. ये तीनों दोषी वेल्लोर की जेल में बंद हैं. राजीव गांधी की 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरमबदूर में हत्या हुई थी.
उधर, उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ केंद्र की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें इस बहुचर्चित मामले के सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है. राज्य सरकार की ओर से वी श्रीहरन उर्फ मुरुगन, संथन, रॉबर्ट पिओस, जया कुमार, नलिनी, रविचंद्रन और आरिवू को रिहा करने का फैसला किया गया है.
हाल ही में अदालत ने राज्य सरकार को दोषियों को रिहा करने की अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी, हालांकि यह शर्त लगाई थी कि यह सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों की जांच वाले और टाडा जैसे केंद्रीय कानूनों के तहत आने वाले मामलों पर लागू नहीं होगा.

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