1993 मुंबई बम ब्‍लास्‍ट का पूरा घटनाक्रम, यहां पढें

मुंबई : करीब 22 साल पहले मुंबई को हिलाकर रख देने वाले एक के बाद एक हुए 12 सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मामले में मौत की सजा पाने वाले दोषी याकूब मेमन को उच्चतम न्यायालय द्वारा फांसी पर रोक लगाने की उसकी याचिका खारिज किये जाने के बाद आज सुबह फांसी दे दी गई. इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 30, 2015 12:24 PM

मुंबई : करीब 22 साल पहले मुंबई को हिलाकर रख देने वाले एक के बाद एक हुए 12 सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मामले में मौत की सजा पाने वाले दोषी याकूब मेमन को उच्चतम न्यायालय द्वारा फांसी पर रोक लगाने की उसकी याचिका खारिज किये जाने के बाद आज सुबह फांसी दे दी गई. इस सिलसिलेवार बम धमाकों में 257 लोग मारे गये थे और 700 से अधिक घायल हुये थे.

देश पर हुए अब तक के इस भीषणतम आतंकवादी हमले के कई षड्यंत्रकारियों और साजिशकर्ताओं में शामिल अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम, उसका बेहद करीबी छोटा शकील और याकूब मेमन का बडा भाई टाइगर मेमन अभी तक फरार हैं और समझा जाता है कि ये सभी पाकिस्तान में शरण लिये हुये हैं. करीब 22 साल पुराने मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है : –

12 मार्च 1993 : एक के बाद एक हुए 12 बम धमाकों ने मुंबई को दहलाया, जिसमें 257 लोग मारे गये और 713 अन्य जख्मी हुए.

19 अप्रैल 1993 : अभिनेता संजय दत्त (आरोपी संख्या-117) गिरफ्तार.

04 नवंबर 1993 : दत्त सहित 189 आरोपियों के खिलाफ 10,000 से ज्यादा पन्ने का प्राथमिक आरोप-पत्र दाखिल किया गया.

19 नवंबर 1993 : मामला सीबीआई को सौंपा गया.

01 अप्रैल 1994 : टाडा अदालत ने शहर की सत्र एवं दीवानी अदालत से आर्थर रोड सेंट्रल जेल परिसर के भीतर एक अलग इमारत में काम करना शुरू किया.

10 अप्रैल 1995 : टाडा अदालत ने 26 आरोपियों को आरोप-मुक्त किया. बाकी आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर. उच्चतम न्यायालय ने दो और आरोपियों – ट्रेवल एजेंट अबु आसिम आजमी (अब समाजवादी पार्टी के विधायक) और अमजद मेहर बक्श को आरोप-मुक्त किया.

19 अप्रैल 1995 : सुनवाई की शुरुआत.

अप्रैल-जून 1995 : आरोपियों के खिलाफ आरोप तय.

30 जून 1995 : दो आरोपी – मोहम्मद जमील और उस्मान झनकनन इस मामले में सरकारी गवाह बने.

14 अक्तूबर 1995 : उच्चतम न्यायालय ने दत्त को जमानत दी.

23 मार्च 1996 : न्यायमूर्ति जे एन पटेल का तबादला. उन्हें उच्च न्यायालय के जज के तौर पर तरक्की दी गई.

29 मार्च 1996 : पी डी कोडे को इस मामले की सुनवाई के लिए टाडा की विशेष अदालत का न्यायाधीश नामित किया गया.

अक्तूबर 2000 : 684 सरकारी गवाहों से जिरह संपन्न.

09 मार्च-18 जुलाई 2001 : अभियुक्तों ने अपने बयान दर्ज कराये.

09 अगस्त 2001 : अभियोजन ने बहस की शुरुआत की.

18 अक्तूबर 2001 : अभियोजन ने अपनी बहस पूरी की.

09 नवंबर 2001 : बचाव पक्ष ने बहस की शुरुआत की.

22 अगस्त 2002 : बचाव पक्ष ने अपनी बहस पूरी की.

20 फरवरी 2003 : दाउद के गिरोह के सदस्य एजाज पठान को अदालत में पेश किया गया.

20 मार्च 2003 : मुस्तफा दोसा की रिमांड कार्यवाही और सुनवाई को अलग कर दिया गया.

सितंबर 2003 : सुनवाई संपन्न. अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.

13 जून 2006 : गैंगस्टर अबु सलेम की सुनवाई अलग से हुई.

10 अगस्त 2006 : न्यायाधीश पी डी कोडे ने कहा कि 12 सितंबर को फैसला सुनाया जाएगा.

12 सितंबर 2006 : अदालत ने फैसला देना शुरू किया. मेमन परिवार के चार सदस्यों को दोषी करार दिया गया और तीन को बरी किया गया. 12 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

01 नवंबर 2011 : 100 दोषियों के साथ-साथ राज्य की ओर से दाखिल अपीलों पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की.

29 अगस्त 2012 : उच्चतम न्यायालय ने अपीलों पर अपना आदेश सुरक्षित रखा.

21 मार्च 2013 : उच्चतम न्यायालय ने टाइगर मेमन के भाई याकूब मेमन को सुनायी गयी मौत की सजा बरकरार रखी और 10 दोषियों की मौत की सजा उम्रकैद में बदल दी. 18 में से 16 दोषियों की उम्रकैद बरकरार रखी गई.

मई 2014 : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने याकूब की दया याचिका खारिज की.

02 जून 2014 : उच्चतम न्यायालय ने उस अर्जी पर सुनवाई करते हुए याकूब को मौत की सजा देने पर रोक लगाई जिसमें मांग की गई थी कि मौत की सजा के मामलों में दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई चेंबरों की बजाय खुली अदालत में की जाए.

09 अप्रैल 2015 : उच्चतम न्यायालय ने याकूब की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने शीर्ष न्यायालय की ओर से बरकरार रखी गई मौत की सजा पर फिर से विचार करने की मांग की थी.

21 जुलाई 2015 : उच्चतम न्यायालय ने याकूब की सुधारात्मक याचिका खारिज की, जो मौत की सजा पर रोक लगवाने का उसका आखिरी कानूनी उपाय था.

21 जुलाई 2015 : उच्चतम न्यायालय के याकूब की याचिका खारिज किये जाने के कुछ ही घंटे बाद उसने महाराष्ट्र सरकार में दया याचिका दायर की.

23 जुलाई 2015 : याकूब ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर 30 जुलाई को तय उसकी फांसी पर रोक लगाने की मांग की.

27 जुलाई 2015 : उच्चतम न्यायालय ने फांसी पर रोक की मांग वाली याकूब की याचिका पर सुनवाई की, मामला 28 जुलाई तक स्थगित कर दिया.

28 जुलाई 2015 : दो सदस्यीय पीठ के याकूब की अर्जी पर बटा हुआ फैसला देने के बाद उच्चतम न्यायालय ने 29 जुलाई को सुनवाई के लिए यह मामला एक बडी पीठ को भेज दिया.

29 जुलाई 2015 : उच्चतम न्यायालय ने याकूब की मौत की सजा पर रोक लगाने की मांग वाली अर्जी खारिज की, सुधारात्मक याचिका को खारिज करने को बरकरार रखा.

29 जुलाई 2015 : उसने राष्ट्रपति के समक्ष नयी दया याचिका दायर की.

29 जुलाई 2015 : महाराष्ट्र के राज्यपाल ने दया याचिका खारिज की, राष्ट्रपति ने भी इसे खारिज किया.

30 जुलाई 2015 : याकूब ने उच्चतम न्यायालय में फांसी पर रोक की मांग वाली नयी याचिका दायर की. उच्चतम न्यायालय ने तडके इस विषय पर सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया.

30 जुलाई 2015 : याकूब को फांसी दे दी गई.

Next Article

Exit mobile version