सीमा भूमि समझौता : 40,000 बांग्लादेशियों को मिलेगी भारत की नागरिकता, रुकेगा घुसपैठ
आज से जमीन की होगी अदला-बदली छींटमहल के लोगों में देश की नागरिकता मिलने की खुशी सिलीगुड़ी/नयी दिल्ली : चार दशक से अधिक समय तक इंतजार के बाद भारत और बांग्लादेश अपने ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते का क्रियान्वयन करने के साथ शुक्रवार से 162 एन्क्लेवों (छींटमहल) का आदान-प्रदान शुरू करेंगे. भारत जहां 7,110 एकड़ जमीन […]
आज से जमीन की होगी अदला-बदली
छींटमहल के लोगों में देश की नागरिकता मिलने की खुशी
सिलीगुड़ी/नयी दिल्ली : चार दशक से अधिक समय तक इंतजार के बाद भारत और बांग्लादेश अपने ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते का क्रियान्वयन करने के साथ शुक्रवार से 162 एन्क्लेवों (छींटमहल) का आदान-प्रदान शुरू करेंगे.
भारत जहां 7,110 एकड़ जमीन में फैले 51 एन्क्लेव बांग्लादेश को हस्तांतरित करेगा, वहीं पड़ोसी देश करीब 17,160 एकड़ में फैले 111 एन्क्लेवों को भारत को सौंपेंगा. बांग्लादेश और भारत 1974 के एलबीए करार को लागू करेंगे और सितंबर, 2011 के प्रोटोकॉल को अगले 11 महीने में चरणबद्ध तरीके से लागू करेंगे.
एक अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश में भारतीय एन्क्लेवों में करीब 37,000 लोग रह रहे हैं, वहीं भारत में बांग्लादेशी एन्क्लेवों में 14,000 लोग रहते हैं. भारत और बांग्लादेश एन्क्लेवों में रहनेवाले लोगों से यह पता लगाने के लिए जुलाई में कवायद पूरी कर चुके हैं कि वे भारतीय नागरिकता चाहते हैं या बांग्लादेश की. एक संयुक्त सर्वेक्षण के अनुसार भारत में बांग्लादेशी एन्क्लेवों में रहनेवाला कोई नागरिक उस देश में नहीं जाना चाहता. हालांकि, अनुमानित 997 लोग भारत आना चाहते हैं. अब इन एन्क्लेवों (छींटमहल) का अस्तित्व खत्म हो जायेगा.
सीमा पर जश्न का माहौल : कूचबिहार और जलपाईगुड़ी जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसे लोगों के बीच जश्न का माहौल है. दोनों देशों के छींटमहल में रहने वाले लोगों को अपनी पहचान मिल जायेगी. इस ऐतिहासिक समझौते को यादगार बनाने के लिए भारतीय सीमा क्षेत्र में जोर-शोर से तैयारी चल रही है.
कूचबिहार जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर विभिन्न छींटमहलों में उत्सव मनाने की तैयारी की जा रही है.शुक्रवार को समझौते के लागू हो जाने के बाद से भारत और बांग्लादेश के बीच छींटमहल की समस्या खत्म हो जायेगी. दोनों ही देशों में स्थित छींटमहलों में जनगणना का काम संपन्न हो गया है. सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भारत सीमा क्षेत्र में स्थित बांग्लादेशी छींटमहल का एक भी व्यक्ति बांग्लादेश नहीं जा रहा है. यह लोग भारत में ही रहना चाहते हैं.
इन छींटमहलों में रहने वाले परिवारों का कहना है कि उन्होंने अपनी तीन पीढ़ी यहां गुजार दी है. वह भले ही अब तक कानूनी रूप से बांग्लादेशी नागरिक थे, लेकिन भारत के मुख्य भूभाग में रहने के कारण वह लोग अपने आप को भारतीय ही मानते हैं.
वह लोग अब बांग्लादेश के मुख्य भूभाग में नहीं जाना चाहते. हाल में जो जनगणना करायी गयी थी उसमें भी इन लोगों ने भारतीय नागरिकता लेने की इच्छा जतायी है. 31 जुलाई के बाद से यह लोग भारतीय नागरिक कहलायेंगे. दूसरी तरफ, बांग्लादेशी भूभाग में स्थित भारतीय छींटमहलों से करीब 200 परिवार भारत के मुख्य भूभाग में शामिल होना चाहते हैं. बांग्लादेशी सीमा क्षेत्र में भारतीय छींटमहल के अधिकांश लोग बांग्लादेश के साथ रहना चाहते हैं.
यह लोग 31 जुलाई के बाद से बांग्लादेशी नागरिक माने जायेंगे. मात्र 997 व्यक्ति ही भारतीय सीमा क्षेत्र में आ रहे हैं और यह लोग भारतीय नागरिक कहलायेंगे. छींटमहल की समस्या को लेकर काम कर रहे चेंगराबांधा के समाजसेवी तथा पत्रकार संतोष शर्मा का कहना है कि छींटमहल विनिमय समझौता भारतीय लिहाज से पूरी तरह से घाटे का सौदा है. इसमें एक तो अपनी जमीन ज्यादा बांग्लादेश में जा रही है, ऊपर से बांग्लादेशी नागरिकों का बोझ भी भारत को सहना होगा. भारतीय सीमा क्षेत्र में स्थित छींटमहल में रहने वाला एक भी बांग्लादेशी बांग्लादेश नहीं जा रहा है.
ऊपर से बांग्लादेशी भूभाग में रहने वाले 997 लोगों का अतिरिक्त बोझ भी भारत को ही वहन करना पड़ेगा. दोनों देशों के बीच जो सीमा समझौता हुआ है, उसके अनुसार दोनों ही देशों को अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले छींटमहल वासियों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी पड़ेगी.
स्वाभाविक तौर पर करीब 40 हजार बांग्लादेशी भारत के नागरिक होंगे और इन लोगों के पुनर्वास पर राज्य तथा केंद्र सरकार को करोड़ों रुपये खर्च करने होंगे. दूसरी ओर बांग्लादेश की स्थिति भारत के मुकाबले काफी अच्छी है. वहां से जहां 997 लोग भारत में आ गये, वहीं वहां की आबादी भी करीब 18 हजार के आसपास रहेगी. भारत को जहां 40 हजार से अधिक लोगों के पुनर्वास के लिए कदम उठाना होगा, वहीं बांग्लादेश को सिर्फ 18 हजार लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी होगी.
इस संबंध में छींटमहल विनिमय समन्वय समिति के अध्यक्ष दिप्तीमान सेनगुप्ता का कहना है कि भारत-बांग्लादेश के बीच संपन्न सीमा समझौते में स्पष्ट रूप से अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले छींटमहल वासियों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था किये जाने की बात कही गयी है. दोनों देशों को इस समझौते पर अमल करना होगा. उन्होंने कहा कि यह समझौता अपने आप में ऐतिहासिक है और अभी इसको लेकर नफा-नुकसान देखने का वक्त नहीं है.
आज होगा दस्तावेजों का आदान-प्रदान
छींटमहल विनिमय को लेकर दोनों देशों के अधिकारियों की अंतिम बैठक कल शुक्रवार को कूचबिहार जिले के चेंगराबांधा में होगी.यहां दोनों देशों के बीच विनिमय संबंधी दस्तावेजों का आदान प्रदान होगा.
कुछ चौंकाने वाले आंकड़े
– भारत अपने सीमा क्षेत्र में स्थित 111 छींटमहल बांग्लादेश को सौंपेगा.बदले में भारत को 51 छींटमहल मिलेंगे.
– कुल 111 छींटमहलों को लेकर भारत को 17160.63 एकड़ जमीन बांग्लादेश को देनी पड़ रही है. बदले में भारत को बांग्लादेश की ओर से मात्र 7110.02 एकड़ ही जमीन मिलेगी.
– भारतीय सीमा क्षेत्र में स्थिति बांग्लादेशी छींटमहल का एक भी आदमी बांग्लादेश नहीं जा रहा है. करीब 40 हजार बंग्लादेशी नागरिक अब भारतीय नागरिक हो जायेंगे.यह स्थिति उधर की भी है.बांग्लादेशी सीमा क्षेत्र में स्थित करीब 20 हजार भारतीय नागरिक में से 977 ही भारत आ रहे हैं.यानी यह लोग अब बांग्लादेशी नागरिक हो जायेंगे.
– कुल मिलाकर कहें तो भारत को अधिक नागरिकों का भी बोझ उठाना पड़ेगा.