23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आईएएस टॉपर इरा सिंघल ने कहा, नेता और नौकरशाह एक-दूसरे को समझें, तो नहीं होगा विवाद

जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, देश सेवा की ललक और जीवन में चुनौतियों से जूझने का जज्बा इरा सिंघल के व्यक्तित्व में बिल्कुल साफ नजर आते हैं. उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा 2014 में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. शारीरिक चुनौतियों से जूझ रही इरा एक पल के लिए भी लाचार नहीं दिखतीं. उनके चेहरे की […]

जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, देश सेवा की ललक और जीवन में चुनौतियों से जूझने का जज्बा इरा सिंघल के व्यक्तित्व में बिल्कुल साफ नजर आते हैं. उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा 2014 में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. शारीरिक चुनौतियों से जूझ रही इरा एक पल के लिए भी लाचार नहीं दिखतीं. उनके चेहरे की मुस्कान और आत्मविश्वास प्रेरणादायी लगते हैं. प्रभात खबर.कॉम की ‘रजनीश आनंद’ ने उनसे लंबी बातचीत की. उनकी सफलता की राह को जानने के साथ यह समझने की कोशिश की कि वे एक आइएएस अफसर के रूप में क्या करना चाहती हैं और आज जब नौकरशाह हमारी राजनीतिक सत्ता के पिछलग्गू भर बन कर रहे गये हैं, वह कैसे कुछ अलग कर पायेंगी.

प्रश्‍न : जब आपको यह पता चला कि आपने सिविल सेवा परीक्षा में टॉप किया है, तो आपको आश्चर्य हुआ या यह अंदाजा पहले से ही था?

उत्तर : मैंने जिस तरह से परीक्षा दी थी और जैसी तैयारी की थी, उससे मुझे यह उम्मीद तो थी कि अच्छी रैंक मिलेगी, लेकिन टॉपर हो जाऊंगी, इसकी मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी. जब मुझे पता चला, तो मुझे एकबारगी विश्वास ही नहीं हुआ. यह मेरे लिए आश्चर्य के समान था. मैंने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है. मैंने लोगों से कहा कि आप इस बारे में पक्का कर लें. फिर मैंने एक-दो बार नहीं, बल्कि कई बार अपने रिजल्ट को देखा और फिर जाकर मुझे यकीन आया. तो मैं यह कहूंगी कि आइएएस टॉपर होना मेरे लिए आश्चर्य के समान था.

प्रश्‍न : इस मंजिल तक पहुंचने का जो सफर था, वह कितना मुश्किल था?

उत्तर : मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैंने अब तक छह बार आइएएस की परीक्षा दी है. जिसमें से दो बार मैं बस यूं ही देखने-समझने के लिए परीक्षा में शामिल हो गयी थी, लेकिन चार बार (वर्ष 2010, 2011, 2013 और 2014 में ) मैंने पूरी तैयारी करके परीक्षा दी. और, चारों ही बार मुझे सफलता मिली. 2010 में मैंने 815वीं रैंक हासिल की और भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) में मेरा चयन हुआ. लेकिन मेरी शारीरिक चुनौतियों के कारण (इरा को रीढ़ की हड्डी में समस्या है) मुझे शारीरिक रूप से इस सेवा के लिए अयोग्य बताया गया.

दरअसल, मुझे आइएएस के अलावा सभी सेवाओं के लिए अयोग्य करार दिया गया था और मेरी रैंक तब आइएएस बनने लायक नहीं थी. इसलिए मैं लगातार परीक्षा देती रही. साथ ही मैंने अपने और अपने जैसे दूसरे लोगों के हक की लड़ाई के लिए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया. इस लड़ाई में मैं इसलिए भी उतरी क्योंकि शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे बहुत से लोग मुझसे ऐसा करने को कह रहे थे. अब सबकी आर्थिक स्थिति या परिस्थितियां ऐसी नहीं होतीं कि वे न्यायालय में जा सकें. अदालत से मुझे राहत मिली. मुझे हैदराबाद में आइआरएस की ट्रेनिंग में ले लिया गया. मैंने अपनी लड़ाई वर्ष 2012 में शुरू की थी और इसका नतीजा मुझे 2014 में मिला. लेकिन मेरी ख्वाहिश थी आइएएस बनने की, इसलिए मैं फिर परीक्षा में बैठी.

प्रश्‍न : आखिर आप आइएएस ही क्यों बनना चाहती थीं? आइआरएस से क्या समस्या थी?

उत्तर : आइआरएस से समस्या कोई नहीं थी, लेकिन मेरी बचपन से ही यह दिली ख्वाहिश थी कि मैं देश की सेवा करूं. मुझे ऐसा महसूस होता है कि देश सेवा के लिए दो ही प्लेटफॉर्म सबसे बढ़िया हैं. या तो आप डॉक्टर बन जायें या फिर आइएएस. लेकिन मेरे पापा ने मुझे आइएएस बनने का सुझाव दिया. उनका मानना था कि मैं अपनी शारीरिक चुनौतियों की वजह से डॉक्टर नहीं बन पाऊंगी. यही कारण था कि उन्होंने मुझे बारहवीं में बायोलॉजी लेने नहीं दिया. सो मेरे लिए आइएएस का प्लेटफॉर्म ही देश सेवा के लिए बेहतर था.

प्रश्‍न : एक आइएएस के रूप में किस तरह से आप देश सेवा करेंगी? इस बारे में कोई खास योजना आपके दिमाग में हो तो बताइए?

उत्तर : देश की सेवा तो करनी है, पर मैं इस बारे में अभी ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा, क्योंकि मैं यह बिलकुल नहीं जानती कि एक आइएएस को क्या काम करने होते हैं. सबसे पहले तो मैं यह समझूंगी कि एक आइएएस की जिम्मेदारियां और भूमिका क्या होती है, उसके बाद ही मैं यह तय कर पाऊंगी कि मुझे क्या और कैसे करना है. अभी मैं भविष्य की योजनाओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगी.

प्रश्‍न : आज के नौकरशाहों को देख कर क्या आपको लगता है कि आप ज्यादा कुछ कर पायेंगी? क्योंकि नौकरशाह अपनी भूमिका को भूल कर नेताओं के पिछलग्गू दिखने लगे हैं. अच्छी पोस्टिंग की चाहत में वे तरह-तरह के समझौते करते हैं. आम तौर पर वे गलत को गलत कहने का साहस भी नहीं जुटा पाते हैं? ऐसे में आप खुद को कैसे स्थापित कर पायेंगी?

उत्तर : मैं ऐसा नहीं मानती कि नौकरशाह कुछ नहीं करते. इतने सालों से यह देश चल रहा है और आज कई देशों से आगे है, तो बिना कुछ किये तो यह स्थिति नहीं है. यह अलग बात है कि नौकरशाह जो करते हैं, वो लाइमलाइट में नहीं आ पाता है, जिसके कारण उसके बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं मिल पाती है. कई ऐसे अधिकारी सामने आये हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से अपना लोहा मनवाया है. जहां तक बात खुद को स्थापित करने की है, तो मैं आपको यह बता हूं कि मैं हमेशा सच का साथ देती हूं. लेकिन मैं किसी को गलत नहीं समझती हूं. मेरा यह मानना है कि हर आदमी का दृष्टिकोण अलग होता है और वह अपने तरीके से अपनी बातों को रखता है. हो सकता है कि एक नेता और नौकरशाह के बीच मतभेद हो, लेकिन इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों का उद्देश्य तो एक ही है, देश सेवा. ऐसे में अगर हम एक दूसरे की बातों को समझेंगे और उसका सम्मान करेंगे, तो विवाद नहीं होगा और देश का काम भी सहजता से होगा. मैं सकारात्मक सोच रखती हूं, और मेरा ऐसा मानना है कि अगर आप कुछ करना चाहते हैं, तो कोई बाधा आपको रोक नहीं सकती है.

प्रश्‍न : पिछले दिनों यूपीएससी की सीसैट परीक्षा (सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट) का काफी विरोध देखने को मिला. इसका विरोध आम तौर पर वो छात्र कर रहे थे जो हिंदी माध्यम से पढ़े हैं और जिनका ताल्लुक प्रबंधन व विज्ञान के विषयों की पृष्ठभूमि से नहीं है. क्या आप भी सीसैट को भेदभावपूर्ण मानती हैं? आपका इस परीक्षा के बारे में क्या नजरिया है?

उत्तर : जी, मैं इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी.

प्रश्‍न : अक्सर यह कहा जाता है कि आइएएस की परीक्षा अंगरेजी माध्यम से पढ़े छात्रों के पक्ष में झुकी हुई है. हिंदी माध्यम के छात्रों को काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. आप इस बारे में क्या कहेंगी?

उत्तर : देखिए मुझे ऐसा लगता है कि भाषा से कुछ नहीं होता है. हां, यह जरूर है कि हिंदीभाषी परीक्षार्थियों को तैयारी के लिए सामग्री कम मिल पाती होगी. इसके अलावा कोई खास परेशानी मेरी समझ से नहीं होती है. हालांकि मैंने हिंदी माध्यम से परीक्षा नहीं दी है, इसलिए मैं इस बारे में ज्यादा नहीं बता पाऊंगी. मेरा मानना है कि परीक्षा के पैटर्न को दोष देने की बजाय अगर हम अपनी तैयारी पर ध्यान दें, तो ज्यादा उचित होगा. अगर हम यह कहते हैं कि पैटर्न सही नहीं है, तो यह तो पल्ला झाड़ने वाली बात हुई. इसबार जिन्हें 13वां रैंक मिला है निशांत, वे हिंदी माध्यम के ही हैं, इसलिए यह कहना कि भाषा के कारण सफलता मिलने में परेशानी होती है, मेरी समझ से सही नहीं होगा.

प्रश्‍न : एक बार फिर कुछ व्यक्तिगत प्रश्नों की ओर लौटते हैं. आप शारीरिक रूप से नि:शक्त हैं और आपने इतनी बड़ी सफलता प्राप्त की है. लेकिन समाज में ऐसे कई लोग हैं, जो नि:शक्तता के कारण सफल नहीं हो पाते हैं. निश्चित रूप से इसके लिए हमारा सिस्टम और हमारा समाज भी कसूरवार है. यह सब बदलने में तो वक्त लगेगा, ऐसे में निजी तौर पर आप क्या सलाह देंगी?

उत्तर : जी मैं यही कहना चाहती हूं कि अगर ईश्वर ने किसी को नि:शक्त बनाया है, तो उसे कोई ना कोई खूबी जरूर दी होगी. जरूरी यह है कि आप उस खूबी को पहचानें और उसे तराशने, विकसित करने में जुट जायें. पूरी मेहनत से अपने लक्ष्य को साधने में जुट जायें. जीवन में असफलता जैसी कोई चीज नहीं होती है. लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाने में जो बाधाएं आती हैं, उनसे हमको नयी सीख ही मिलती है.

प्रश्‍न : आपको जीवन में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

उत्तर : देखिए, मेरा ऐसा मानना है कि बुरी चीजों को भूल जाना चाहिए और मैं ऐसा ही करती हूं. मैं यह मानती हूं कि अगर आपको जीवन में सफल होना है, तो सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाना होगा. निगेटिविटी से कुछ नहीं होगा, इसलिए बुरी बातों को भूल जाना चाहिए. आप यह कह सकते हैं कि अगर मैं आज जीवन में कुछ कर पायी हूं, तो इसी सोच के साथ.

प्रश्‍न : कोई ऐसी बात या घटना जिसने आपको बहुत चोट पहुंचायी हो?

उत्तर : मैं अपने को लेकर बिलकुल भी संवेदनशील नहीं हूं, किसी की बातों का बुरा नहीं मानती और बुरी बातों को भूल जाती हूं. कोई बात मैं दिल से लगा कर नहीं रखती इसलिए मुझे ऐसी कोई घटना याद नहीं है.

प्रश्‍न : नि:शक्तता को लेकर तो आपका रवैया काफी सकारात्मक है. लेकिन, क्या महिला होने के कारण आपको कभी चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

उत्तर : एक महिला होने के नाते मेरी यह सफलता ज्यादा बड़ी है, क्योंकि हमारी सोसाइटी आज भी महिलाओं के प्रति संकुचित नजरिया रखती है. उसकी सोच यह है कि यह लड़की है, इसे तो दूसरे के घर जाना है, इसे पढ़ा-लिखा कर क्या फायदा? मुझे भी कई लोगों ने यह सलाह दी कि तुम यह सब क्यों कर रही हो, तुम लड़की हो. लेकिन मेरे माता-पिता मेरे साथ थे. वे यह चाहते थे कि मैं कुछ करूं. वे हमेशा मेरी प्रेरणा बने और मुझे प्रोत्साहित करते रहे. उन्होंने कभी भी मुझे यह नहीं कहा कि तुम लड़की हो, इसलिए फलां चीज ना करो. पढ़ाई के साथ-साथ मैंने खूब घूमा-फिरा, मौज-मस्ती की, पर मेरे माता-पिता ने कभी रोक-टोक नहीं कि लड़कियों को ऐसा नहीं करना चाहिए. लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं है.

सच्चाई यह है कि आज भी हमारा समाज महिलाओं को दूसरे दरजे का समझता है. लड़के ऐसी सोच रखते हैं कि वे हमसे बेहतर हैं, इसलिए हमें उनकी बात सुननी चाहिए. अगर कोई लड़की अपनी राय रखती है या फिर फैसला लेती है, तो उसके प्रति लोग गलत नजरिया रखते हैं और उसे गलत लड़की करार देते हैं. कहने का आशय यह है कि उसके प्रति लोग नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं. यही कारण है कि आज भी हमारे समाज में लड़कियों को जीवन में सफलता पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे यह सब नहीं झेलना पड़ा.

प्रश्‍न : महिलाओं के आगे बढ़ने की राह में एक बड़ा रोड़ा उनके प्रति होनेवाले अपराध हैं. कई बार तो यह डर इतना ज्यादा होता है कि लड़कियां पढ़ाई तक छोड़ देती हैं. एक आइएएस अधिकारी के रूप में आप महिलाओं के खिलाफ अपराध किस तरह रोकेंगी?

उत्तर : मैं यह कहना चाहती हूं कि मैं जिस जिले में पदस्थापित रहूंगी, मेरी प्राथमिकता यह होगी कि मैं महिलाओं की सुरक्षा के लिए सभी प्रशासनिक बंदोबस्त करूं. उन्होंने सुरक्षा का एहसास करा सकूं, ताकि वे स्वतंत्रता के साथ कहीं भी आ-जा सकें और शिक्षति हो सकें. क्योंकि जब तक सुरक्षा नहीं होगी, कोई अपना विकास नहीं कर सकता है. जब आप सुरिक्षत होंगे, तो अपनी जिंदगी जी पायेंगे और अपनी क्षमता का विस्तार भी कर सकेंगे. लेकिन, मैं साथ में यह भी कहना चाहती हूं कि महिलाओं को प्रताड़ित करने के जो भी मामले मेरे सामने आयेंगे, मैं उनकी तटस्थता के साथ जांच करूंगी, क्योंकि आजकल फरजी मामले भी सामने आते हैं. मैं सच का साथ दूंगी और जो प्रताड़ित होगा उसे न्याय दिलाऊंगी.

प्रश्‍न : जीवन में कोई ऐसी बात जिसने आपको सबसे ज्यादा प्रेरित किया हो?

उत्तर : अभी अचानक से मुझे ऐसी कोई घटना याद नहीं आ रही है. लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि मैं छोटी-छोटी बातों से प्रेरणा लेती हूं. हर पल को सीखने का अवसर मानती हूं. सीखने के लिए कोई बात छोटी नहीं होती. मैं यह मानती हूं इनसान को कर्म करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए. हमेशा सकारात्मक सोच रखना चाहिए. किसी बात को जीवन-मरण का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए. जो कुछ आपको मिलना होगा, वह मिल कर रहेगा.

प्रश्‍न : जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति जो आपका प्रेरणा स्रोत रहा हो?

ऐसे किसी एक व्यक्ति का नाम मैं आपको नहीं बता सकती. मैंने जीवन में अच्छी चीजें किसी से भी सीखने की कोशिश की है, फिर चाहे वह एक रिक्शावाला हो या फिर कोई महापुरुष या नेता. मैं यह मानती हूं कि हर इनसान में कोई ना कोई खूबी होती है, जरूरत इस बात की है कि आप उससे वही बात सीखें. अच्छी चीजों को लें, बाकी को छोड़ दें. मैंने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी से कई बातें सीखीं है, तो रिक्शेवाले से भी कुछ ना कुछ अच्छा सीखा है.

ऐसी हैं इरा

मेरठ-दिल्ली में पढ़ाई

मेरा परिवार उत्तर प्रदेश से है. मेरा जन्म मेरठ में हुआ है. 1995 में दिल्ली आने से पूर्व हमारा परिवार मेरठ में रहता था. मेरे पिता वैल्यूअर हैं और मां इंश्योरेंस कंपनी में काम करती हैं. परिवार में हम तीन लोग हैं. मेरी शिक्षा मेरठ और दिल्ली में हुई है. मैंने मेरठ के सोफिया गर्ल्स स्कूल से पहली से छठवीं तक की पढ़ाई की. वहां से दिल्ली आने के बाद दिल्ली के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल से 10वीं पास की. फिर धौला कुआं स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल से 12वीं की पढ़ाई पूरी की. वर्ष 2006 में नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, द्वारका से पढ़ाई की. वर्ष 2006 से वर्ष 2008 तक दिल्ली विश्वविद्यालय की फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए किया. फिर कैडबरी इंडिया में कस्टमर डेवलपमेंट मैनेजर के पद पर दो साल तक काम किया.

दुनिया घूमना चाहती हैं

मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, इसलिए खाली समय में किताबें पढ़ती हूं. मैं ज्यादातर अंगरेजी की किताबें पढ़ती हूं और जे ऑस्टिन मेरे प्रिय लेखक हैं. इसके अलावा घूमने का भी बहुत शौक है, मैं यह चाहती हूं पूरी दुनिया की सैर करूं. दोस्तों के साथ घूमना चाहती हूं. मेरे बहुत सारे दोस्त हैं, उनसे मिलना चाहती हूं, उनके साथ समय बिताना चाहती हूं. मुझे डांस और गानों का भी शौक है. मुझे हिंदी गाने खास तौर पर पसंद हैं. लता मंगेशकर मेरी प्रिय गायिका हैं. मैं मानती हूं कि उनसे ऊपर कोई नहीं है. मेरा प्रिय गाना दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे से है : ना जाने मेरे दिल को क्या हो गया, अभी तो यहीं था, कहीं खो गया… इस गाने को लता जी और कुमार शानू ने अपनी आवाज दी है.

फिल्में बहुत पसंद हैं

मैं फिल्में देखने की शौकीन हूं. खूब फिल्में देखती हूं. मैं ज्यादातर हॉलीवुड की फिल्में देखती हूं. हालांकि मैं बॉलीवुड की फिल्में भी देखती हूं. लेकिन मेरा कोई पसंदीदा हीरो या हीरोइन नहीं है. जो फिल्म अच्छी होती है मैं देख लेती हूं. मैंने इधर ह्यक्वीनह्ण और ह्यतनु वेड्स मनु रिटर्नह्ण देखी है. मुझे खेल में उतनी रु चि नहीं है. क्रिकेट कुछ खास पसंद नहीं है. लेकिन मैं फुटबॉल की शौकीन हूं. मैं फुटबॉल के कई मैच देखती हूं.

अचार बनाना आता है

मुझे खाना पकाने का काफी शौक है. मैं किचन में काफी समय देती हूं. यहां तक कि घर में अचार वगैरह मैं ही डालती हूं. लेकिन अगर कोई मुझसे यह कहे कि तुम लड़की हो, इसलिए किचन में काम करो, तो मैं कतई कुछ नहीं बनाने वाली. लेकिन मजेदार बात यह है कि मुझे खुद खाने का कुछ ज्यादा शौक नहीं है. मुझे परिवार और दोस्तों के लिए पकाना अच्छा लगता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें