आधी रात को भारत-बांग्लादेश के बीच बस्तियों की अदला-बदली
68 मोमबत्तियां जलाकर छोटे द्वीप पर मनाया गया आजादी का जश्न
भारत और बांग्लादेश के बीच शुक्रवार की मध्य रात्रि को बस्तियों का ऐतिहासिक आदान-प्रदान किया गया. इसके साथ ही 162 बस्तियों के 51,000 से अधिक राष्ट्रविहीन लोगों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया. भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित 111 बस्तियां बांग्लादेश में शामिल हो गयीं जबकि 51 भारत में. 68 साल बाद मिली आजादी पर यहां 68 मोमबत्तियां जलायी गयीं. चूंकि देश भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के निधन पर शोक मना रहा है, सरकारी स्तर पर बस्तियों के आदान-प्रदान पर कोई समारोह नहीं हुआ. बस्तियों का आदान-प्रदान इसी साल छह जून को ढाका में भारत और बांग्लादेश के बीच एक करार पर दस्तखत के बाद हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना की मौजूदगी में हुए करार के तहत दोनों देशों ने सीमा से लगी बस्तियों का आदान-प्रदान किया. इन बस्तियों के लोग जन सुविधाओं से वंचित थे और खराब हालत में जी रहे थे.
डीएम का अनोखा अनुभव
कूचबिहार के जिलाधिकारी (डीएम) पी उलागनाथन देश के पहले डीएम बने, जिन्होंने आजादी के बाद सीमा पर बसे गांवों के बंटवारे की पूरी प्रक्रिया में भागीदारी की. शुक्रवार को डीएम ने कहा कि बांग्लादेशी बस्तियों से 980 लोग ही भारत आ रहे हैं. ये घोर अभाव में जी रहे थे. इनके पास अपना कुछ नहीं है. उलागनाथन ने बताया कि उनका पहला काम बस्तियों को नया पता और पिन कोड देना होगा.
चार दशक पहले हुआ था समझौता
मूल रूप से भूमि समझौता 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान के बीच हुआ था.
- वर्ष 1975 में मुजीब की हत्या के बाद लंबे अर्से तक करार पर प्रगति रुकी रही. बाद की सरकारें बस्तियों के आदान-प्रदान पर सहमत नहीं हो पायीं.
- छह जून, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना की मौजूदगी में बस्तियों के आदान-प्रदान का करार हुआ और 31 जुलाई, 2015 को समझौता अमल में आया.
भौगोलिक विसंगति
18वीं सदी में राजाओं के समझौतों के कारण अस्तित्व में आयी बस्तियों की यह विसंगति दो शताब्दी से चली आ रही है. ये बस्तियां एक देश की हैं और लोग रहते हैं दूसरे देश में. भारत, पाकिस्तान और अंत में बांग्लादेश की आजादी के बाद भी इनकी समस्या को किसी ने दूर नहीं किया. अब यह विसंगति दूर हो गयी है.
खत्म होगी जिल्लत भरी जिंदगी
भारत-बांग्लादेश सीमा से सात किलोमीटर दूर पोतूरकुठी चारों ओर भारत से घिरा है. इसलिए लोग अपने देश नहीं जा सकते. उन्हें बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल जैसी सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं. बस्ती से निकलना भी समस्या है. गिरफ्तारी के डर से धोखाधड़ी से दस्तावेज बनवाते थे. नहीं, तो किसी भारतीय को तैयार करते कि उन्हें अपना परिजन बताये. तब बच्चों का स्कूल या अस्पताल में दाखिला होता.
भारत से जुड़े 55 बस्तियां, 14000 परिवार
37000 भारत में रहनेवालों ने बांग्लादेश में रहना चुना
980 बांग्लादेशियों ने माना भारत को अपना देश
फायदे
- लोगों को एक देश की नागरिकता मिल जायेगी
- अब सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलेगा
- बिजली, पानी, अस्पताल और स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलने लगेंगी
- नवंबर, 2015 से स्वच्छंद रूप से आवागमन करने के लिए स्वतंत्र होंगे
बांग्लादेश से भारत के हिस्से आया क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल
पश्चिम बंगाल
बेरुबाड़ी, सिंघपाड़ा-खुदीपाड़ा (पांचागढ़-जलपाईगुड़ी) : 1,374.00
पाकुरिया (खुष्टिया-नदिया) : 576.36
चार महिषकुंडी : 393.33
हरिपाल/एलएन पुर (पटारी) : 53.37
कुल : 2,398.05
मेघालय
पिरडीवाह : 193.516
लिंगखात 1 : 4.793
लिंगखात 2 : 0.758
लिंगखात 3 : 6.940
दावकी/तामाबिल : 1.557
नलजुरी 1 : 6.156
नालजुरी 3 : 26.858
कुल : 240.578
त्रिपुरा
चंदननगर (मौलवी बाजार-उत्तर त्रिपुरा) : 138.41
पश्चिम बंगाल
बोसुमारी-मधुगाड़ी (कुष्टिया-नदिया) : 1,358.25
अंधारकोटा : 338.79
बेरुबाड़ी (पांचागढ़-जलपाईगुड़ी) : 260.55
कुल : 1,957.59
असम
ठाकुरानीबाड़ी-कलाबाड़ी/ बोरोइबाड़ी (कुरिग्राम-धुबरी) : 193.85
पल्लाथल (मौलवी बाजार-करीमगंज) : 74.54
कुल : 268.39 एकड़
बांग्लादेश को भारत से मिले क्षेत्र
कुल : 2,267.682 एकड़
(स्रोत : विदेश मंत्रालय के लैंड बॉर्डर एग्रीमेंट से)
मैंने तीन देशों की आजादी देखी है. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश. लेकिन हम स्वयं कभी स्वतंत्र नहीं रहे. हमें स्वतंत्र होने में 68 साल और लगे. मेरे पूर्वज चले गये. मैं भी चला जाऊंगा. लेकिन, कम से कम ये तो आजाद रहेंगे. इनके पास नागरिकों के सभी अधिकार होंगे. ये एक सम्मानजनक पहचान के साथ जी सकेंगे.
मंसूर अली, एक नागरिक