नयी दिल्ली : पिछले तीन सालों में आइआइटी और एनआइटी से लगभग 4400 विद्यार्थियों ने पढाई बीच में ही छोड़ दी है. इसके साथ ही पिछले चार सालों में जो आंकड़ा सामने आया है उसके आधार पर आइआइटी और एनआइटी से ड्रॉपआउट विद्यार्थियों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है. सरकार की ओर से इसका मुख्य कारण एकेडेमिक तनाव बताया जा रहा है. वहीं विद्यार्थियों की मानें तो पढाई के स्तर में गिरावट के कारण वे पढाई बीच में छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में कैरियर तलाश रहे हैं. हालांकि अभीतक ऐसा कोई भी मामला प्रकाश में नहीं आया है कि कोई भी छात्र पढाई की गुणवत्ता को लेकर ड्रॉपआउट नहीं हुआ है. इन सब के बीच देश के सबसे बड़ा एजुकेशन संस्थान से इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को ड्रॉपआउट होना चिंता कारण माना जा रहा है.
क्या कहना है सरकार का
सरकार का कहना है कि पिछले तीन वर्षो में एकेडेमिक तनाव समेत विविध कारणों से 4400 से अधिक छात्रों ने आइआइटी-एनआइटी की पढाई बीच में ही छोड दी. सरकार ने आश्वासन दिया कि इस दिशा में सुधारात्मक उपाए किये जा रहे हैं. लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि 2012-13 से 2014-15 के बीच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) से 2060 छात्रों ने बीच में ही पढाई छोड दी. उन्होंने कहा कि इस अवधि में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी से 2,352 छात्रों ने बीच में पढाई छोडी. स्मृति ने इस सवाल के लिखित जवाब में कहा, ‘इन संस्थाओं से बीच में पढाई छोडने के कारणों में व्यक्तिगत कारण, स्वास्थ्य समस्या, पीजी कोर्स के दौरान नौकरी मिलना और अकादमिक तनाव नहीं झेल पाना आदि शामिल है.’
2014-15 में 757 छात्रों ने आइआइटी में बीच में पढाई छोडी जबकि 2013-14 में यह संख्या 697 थी तथा 2012-13 में यह 606 दर्ज की गई. इस अवधि में आइआइटी रुडकी में सबसे अधिक 228 छात्रों ने बीच में पढाई छोड दी जबकि आइआइटी दिल्ली में 169 और आइआइटी खडगपुर में 209 छात्रों ने पढाई छोड दी. 2014-15 में आइआइटी मंडी, जोधपुर, कानपुर, मद्रा और रोपड में किसी छात्र ने बीच में पढाई नहीं छोडी. 2014-15 में 717 छात्रों ने एनआइटी में बीच में पढाई छोडी जबकि 2013-14 में यह संख्या 785 थी तथा 2012-13 में यह 850 दर्ज की गई. देश में 16 आइआइटी और 30 एनआइटी हैं. मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि ऐसे छात्रों की मदद के लिए एक तंत्र है और सरकार अकादमिक तनाव से जुडे मुद्दों को दूर करने को प्रतिबद्ध है.
ड्रॉपआउट के क्या हो सकते हैं और कारण
छात्रों के आइआइटी और एनआइटी से ड्रॉपआउट का एक मुख्य कारण पीजी कोर्स के दौरान नौकरी मिल जाना या अपना व्यापार शुरू कर लेना माना जा रहा है. संस्थानों की ओर से अभीतक कोई भी बयान नहीं दिया गया है जिसमें ड्रॉपआउट के कारणों को स्पष्ट किया गया हो. हालांकि गैरआधिकारिक रूप से एकेडेमिक तनाव को ही ड्रॉपआउट का कारण माना जा रहा है. आम तौर पर आइआइटी और एनआइटी में नामांकन किसी भी छात्र के लिए एक गौरव की बात है. इसके बावजूद छात्रों का ड्रॉपआउट होने की बए़ती संख्या से सरकार चिंतित है. एक और कारण सिविल सेवा में छात्रों का चयन भी ड्रॉपआउट का कारण हो सकता है.
सिविल सेवा के अलावे विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में आइआइटी और एनआइटी के छात्रों की सफलता की दर पिछले तीन-चार सालों से काफी बढ़ी है. यह भी एक वजह हो सकता है पढाई बीच में छोड़ने का. ड्रॉपआउट हुए अधिकतर छात्रों द्वारा यही कहा जाता है कि कैरियर बनाने के लिए और व्यक्तिगत कारणों से पढाई बीच में छोड़नी पड़ी. इसके अलावे निजी संस्थानों की ओर से छात्रों को कैंपस में बेहतरीन कंपनियों में नौकरी की पेशकश भी उन्हें निजी संस्थानों की ओर झुका रही है. छात्र आइआइटी प्रतियोगिता परीक्षा निकालकर आइआइटी-एनआइटी में एडमिशन तो ले लेते हैं, बाद में निजी कंपनियों के प्रलोभन में फंसकर वे पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं और फिर निजी कंपनियों के पास चले जाते हैं.
ड्रॉपआउट छात्रों की फीस होगी वापस
छात्र अगर सीट छोडते हैं तो आइआइटी और एनआइटी शुल्क वापस करेगा. छात्रों को बडी राहत देते हुए आइआइटी और एनआइटी आवंटित सीट छोडने पर निजी सहित किसी भी अन्य संस्थानों में दाखिला लेने वाले छात्रों की न्यूनतम प्रक्रिया शुल्क कटौती करने के बाद उन्हें शुल्क वापस कर देंगे. मौजूदा नियम के मुताबिक, नामांकन के इच्छुक छात्रों को गैर रिफंडेबल सीट मंजूरी शुल्क के तौर पर सामान्य श्रेणी में 45,000 रुपये और एससी-एसटी श्रेणी में 20,000 रुपये देने पडते हैं. छात्र अगर शैक्षिक सत्र शुरू होने के बाद अपनी सीट पर दाखिला नहीं लेना चाहता तो उसे प्रक्रिया शुल्क की कटौती के बाद रकम वापस मिल जाएंगे.
इंटर्नशिप की पेशकश में 50 फीसदी का हुआ इजाफा
प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) , खडगपुर में इस बार इंटर्नशिप की पेशकश में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. आइआइटी के अधिकारियों ने बताया कि सत्र 2015-16 एक अगस्त से शुरू हुआ और पिछले साल की तुलना में इस साल पेशकश की संख्या 50 फीसदी तक बढ गई. वहीं, संस्थान परिसर में आने वाली कंपनियों की संख्या भी 33 फीसदी पहुंच गई. गोल्डमैन सैश, ड्यूश बैंक, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स और नोमूरा जैसी शीर्ष वैश्विक ब्रांड की कंपनियों के अलावा एफएमसीजी की दिग्गज कंपनी आइटीसी, हिंदुस्तान यूनीलिवर और रेकिट बेंकिसर ने भी परिसर का दौरा किया. आइआइटी खडगपुर के कॅरियर विकास केंद्र के अध्यक्ष प्रोफेसर एस. के. बराई ने बताया कि शीर्ष ब्रांड कंपनियों के इंटर्नशिप का मौका देने से इसके प्री प्लेसमेंट ऑफर्स (पीपीओ) में बदलने की संभावना अधिक है और इस तरह से ये कंपनियां खुद ही उन्हें अंतिम रूप से नौकरी की पेशकश कर देंगी.
71 निकाले गये छात्रों को आइआइटी रुड़की ने लिया वापस
पिछले दिनों कम मार्क्स के कारण अगले सत्र में प्रवेश नहीं देने और वैसे छात्रों को निकालने के बाद आइआइटी रुड़की ने सभी 71 छात्रों को वापस ले लिया. पिछले दिनों प्रथम वर्ष के इन छात्रों को संस्थान ने परीक्षा में निर्धारित अंक न ला पाने के चलते अगले सत्र में दाख़िला देने से इंकार कर दिया था. काले गये छात्रों में ज़्यादातर पिछड़ी जातियों के थे. कार्रवाई 72 छात्रों पर की गई थी लेकिन कुछ दिन बाद एक छात्र को वापस ले लिया गया था क्योंकि उसके अंकों के निर्धारण में प्रशासन से ग़लती हो गई थी. इसके बाद 71 छात्र और उनके परिजनों ने आइआइटी के फ़ैसले के ख़िलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में भी गुहार लगाई थी. लेकिन हाईकोर्ट ने भी संस्थान के फ़ैसले को सही ठहराया था.
चारों तरफ़ से मायूस और अपने भविष्य को लेकर उदास और आशंकित इन छात्रों की दया याचिका को अचानक आइआइटी रुड़की की सीनेट ने तीसरी सुनवाई में स्वीकार कर लिया और छात्रों को एक और मौक़ा देने का फ़ैसला किया. लेकिन कुछ कड़ी शर्तों के साथ उन्हें फिर से दाखिला दिये जाने पर सहमति बनीं. इन शर्तों के तहत छात्रों को दस अगस्त तक फिर से प्रथम वर्ष में ही दाख़िला लेना होगा. सभी विषयों को पास करना होगा और औसत पांच सीजीपीए या इससे अधिक अंक हर हाल में लाने होंगे. इनके अलावा छात्रों की 75 फ़ीसदी अटेंडेस भी रहनी चाहिए. साल के आख़िर में छात्रों को बैक पेपर की सुविधा नहीं मिलेगी.