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मप्र हाई कोर्ट ने दिया दिग्विजय सिंह को करारा झटका

जबलपुर : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को करारा झटका देते हुए 1998 में उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में उनकी अपनी नोटशीट पर एक सब इंजीनियर नियुक्ति को अवैधानिक बताते हुए आज निरस्त कर दिया. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार से कहा है कि वह अतीत में अन्य विभागों में ऐसी नियुक्तियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 6, 2015 9:57 PM

जबलपुर : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को करारा झटका देते हुए 1998 में उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में उनकी अपनी नोटशीट पर एक सब इंजीनियर नियुक्ति को अवैधानिक बताते हुए आज निरस्त कर दिया. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार से कहा है कि वह अतीत में अन्य विभागों में ऐसी नियुक्तियों (1993-2003 के दौरान जब सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे) की भी पडताल करे.

मुख्य न्यायाधीश अजय मानिकराव खानविलकर एवं न्यायाधीश के के त्रिवेदी की युगलपीठ का यह आदेश उस समय आया है, जब सिंह की अगुआई में प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कथित संलिप्तता के लिए इस्तीफे की मांग को लेकर कांग्रेस अपना अभियान छेडा रखा है.

गौरतलब है कि नियमों को शिथिल कर आयोग्य व्यक्तियों को नियुक्तियां दिये जाने को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी. याचिका की आज सुनवाई करते हुए मुख्घ्य न्यायाधीश खानविलकर एवं न्यायाधीश त्रिवेदी की युगलपीठ ने लोक स्वास्थ यांत्रिकी (पीएचई) विभाग में वर्ष 1998 में सब इंजीनियर के पद पर पदस्थ किये गये अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति निरस्त करते हुए मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि दोषी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करे.

इसके अलावा युगलपीठ ने मुख्य सचिव को यह भी आदेश दिये हैं, राज्य शासन ने अतीत में विभिन्न विभागों में नियमों को शिथिल कर कितने व्यक्तियों को नियुक्तियां दी गयी इसकी जांच कराएं तथा जांच रिपोर्ट जनवरी 2016 तक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे. पूरे मामले पर उच्च न्यायालय निगरानी रखेगा.

रीवा निवासी मुनसुख लाल सराफ की तरफ से दायर की गई इस याचिका में कहा गया था कि वर्ष 1990 में मऊमंज नगर पालिका में अरुण कुमार तिवारी को दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के रुप में नियुक्त किया गया था. याचिका में इसे चुनौती दी गई थी और कहा गया था कि इसी दौरान वर्ष 1995 में उसकी सेवाएं स्थानीय शासन विभाग से लेकर पीएचई विभाग में विलय कर दी गई और उसे पीएचई में सब इंजीनियर बना दिया गया.

याचिकाकर्ता ने कहा कि उच्च न्यायालय ने ही वर्ष 1997 में उसकी नियुक्ति को अवैध मानते हुए निरस्त कर दिया था तथा याचिकाकर्ता को हर्जे के तौर पर एक हजार रुपये प्रदान देने के आदेश भी दिये थे. याचिका में कहा गया है कि इसके बावजूद राज्य शासन ने वर्ष 1998 में अरुण कुमार तिवारी को पीएचई विभाग में सब इंजीनियर के पद पर नियमों को शिथिल करते हुए नियुक्ति दे दी गई. इसे ही चुनौती देते हुए अब उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की गई है.

उप महाधिवक्ता समदर्शी तिवारी ने बताया कि याचिका पर गत मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने पाया कि राज्य मंत्रिमण्डल के अनुमोदन में सभी आपत्तियों को अनदेखा कर अनावेदक को नियुक्ति प्रदान की गई थी. इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की भूमिका भी अहम थी. आदेश के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री सिंह की नोटशीट की फोटो प्रतिलिपि भी संलग्न की गई है. युगलपीठ ने आज दिए फैसले में सब इंजीनियर अरुण कुमार तिवारी की नियुक्ति निरस्त करते हुए दोषियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करने के निर्देश मुख्य सचिव को दिए हैं.

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