GST पर संसद में संग्राम : जेटली के हमले पर कांग्रेस ने कहा, हम विरोध में नहीं
नयी दिल्ली : पिछले नौ साल से संसद में अटके पडे संविधान संशोधन विधेयक जीएसटी को आज नरेंद्र मोदी सरकार नेराज्यसभा में पेश कर दिया है. बिल पेश किये जाने के दौरान कांग्रेस सांसदों ने जबरदस्त विरोध जताया.वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी बिल को चर्चा के लिए राज्यसभा में पेश किया. पर, हंगामे के […]
नयी दिल्ली : पिछले नौ साल से संसद में अटके पडे संविधान संशोधन विधेयक जीएसटी को आज नरेंद्र मोदी सरकार नेराज्यसभा में पेश कर दिया है. बिल पेश किये जाने के दौरान कांग्रेस सांसदों ने जबरदस्त विरोध जताया.वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी बिल को चर्चा के लिए राज्यसभा में पेश किया. पर, हंगामे के कारण आज इस पर चर्चा शुरू नहीं हो सकी. करीब सवा दो बजे सदन की कार्यवाहीकल सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गयी. हालांकि मौजूदा गतिरोध के कारण एक बार फिर संसद में इसके अटके रह जाने की संभावना अधिक मजबूत हो गयी है.
अब इस अहम बिल पर भाजपा व कांग्रेस के बीच शब्दयुद्ध शुरू हो गया है. भाजपा सरकार ने जहां बिल को अटकाने के लिए कांग्रेस को जिम्मेवार बताया है, वहीं कांग्रेस ने कहा है कि वह बिल के विरोध में नहीं पर इसमें संशोधन के पक्ष में है.
उधर, भाजपा ने अपने सांसदों को इस बिल के मद्देनजर आज विह्प जारी कर दिया है और अगले तीन दिनों तक उनके विदेश जाने पर रोक लगा दी है. पार्टी ने अपने सांसदों को हर हाल में संसद में मौजूद रहने को कहा है.
संसद के मॉनसून सत्र के अब मात्र दो दिन बचे हैं. नरेंद्र मोदी सरकार को ललितगेट व व्यापमं के साथ इस मुद्दे पर भी कांग्रेस के तीखे हमले का सामना करना पड रहा है. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने इसके मौजूदा स्वरूप व प्रक्रिया पर आपत्ति जतायी. उल्लेखनीय है कि जीएसटी बिल को 2006 में पहली बार संसद में यूपीए – 1 सरकार के वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने ही पेश किया था. दुखद बात यह है कि जब एनडीए सरकार से बाहर रहती है, तो वह इस बिल का विरोध करती है और सरकार में आने पर समर्थन. उसी तरह यूपीए सरकार में रहने पर समर्थन करती है और बाहर आने पर विरोध करती है.
अरुण जेटली का कांग्रेस पर हमला
संसद के मौजूदा मानसून सत्र में जीएसटी विधेयक के अटकने की आशंका के मद्देनजर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आज संसद परिसर में पत्रकारों से कहा कि हम इस विधेयक को पारित करवाने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलायेंगे. उन्होंने कहा कि 2006 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने इसकी घोषणा की थी. पर, वह इस पर सहमति नहीं बनवा सकी. अरुण जेटली ने कहा कि हमने इसमें राज्य की चिंताओं को जोडा. जेटली के अनुसार, इस बिल के पारित होने से टैक्स कलेक्शन ज्यादा होगा. उन्होंने कहा कि यह सत्र इसलिए बर्बाद किया गया ताकि यह बिल पारित नहीं हो सके. जेटली ने कहा कि दो मुख्यमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री पर आरोप लगाना तो एक बहाना था, दरअसल उन्हें बिल रोकवाना था. जेटली ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर देश की राजनीति में अकेली पड गयी है. वह विकास को रोकना चाहती है.
कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार को दिया जवाब
वित्त मंत्री अरुण जेटली के करारे हमले के बाद कांग्रेस ने शाम में इस मुद्दे पर एक प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि वह जीएसटी बिल के विरोध में नहीं है, लेकिन इसमें संशोधन के पक्ष में जरूर है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जीएसटी बिल के मौजूदा स्वरूप पर आपत्ति जतायी. उन्होंने कहा कि जीएसटी आना चाहिए और उसका स्वरूप अधिक व्यापक व प्रभावशाली हो. उन्होंने कहा कि जीएसटी की दर 18 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जीएसटी से जुडे विवाद के निबटारे के लिए एक ट्रिब्यूनल बने, जिसका अध्यक्ष हाइकोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज को बनाया जाये. उन्होंने कहा कि हमारा सैद्धांतिक विरोध है.
लोकसभा में जीएसटी के पक्ष में गणित
जीएसटी बिल एक संविधान संशोधन बिल है. अत: इसको पारित करवाने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई सांसदों का समर्थन चाहिए. संविधान संशोधन बिल होने के कारण इसे संयुक्त सत्र में भी पारित नहीं कराया जा सकता. वहां सिर्फ सामान्य बिल ही पारित कराये जा सकते हैं. संसदीय नियम के अनुसार, संविधान संशोधन बिल को पारित कराने के लिए दोनों सदनों में न्यूनतम 50 प्रतिशत सांसद उपस्थित रहने चाहिए और उन उपस्थित सांसदों में उनका दो तिहाई समर्थन मिलना चाहिए.
लोकसभा का संसदीय गणित इस बिल को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार के पक्ष में है. 542 सदस्यीय लोकसभा में इस बिल को पारित करवाने के लिए 361 सांसदों की जरूरत पडेगी. एनडीए के पास वर्तमान में अपने ही 337 सांसद हैं. बाकी सांसदों की कमी इस मुद्दे पर बिल के समर्थन में खडे तृणमूल कांग्रेस के 34 सांसद, समाजवादी पार्टी के पांच सांसद पूरी कर देते हैं. इसके अलावा भी कई दल बिल के समर्थन में हैं.
राज्यसभा में गणित सरकार के खिलाफ, पर नियंत्रण में
राज्यसभा का गणित नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ है. वहां सरकार अल्पमत में है. 245 सदस्यीय राज्यसभा में पूर्ण सदन में इस बिल को पारित करवाने के लिए भाजपा सरकार को 164 सांसदों के समर्थन की जरूरत है. भाजपा के 48 सहित एनडीए के पास कुल 62 सांसद हैं. तृणमूल कांग्रेस के 12 सांसदों, समाजवादी पार्टी के 15 सांसदों का समर्थन जोड दिया जाये, तो यह संख्या 89 होती है. बिहार में नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश कुमार की गरमायी राजनीति के कारण अब जदयू का स्टैंड इस बिल को लेकर अस्पष्ट है. पहले वह खुले तौर पर इसके पक्ष में था. यानी इस बिल को पारित करवाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को या तो सीधे तौर पर सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले 70 सांसदों का समर्थन मिले या फिर वह 12 सदस्यों वाले अन्नाद्रमुक सहित अन्य क्षेत्रीय दलों को साध ले. या फिर दूसरा रास्ता यह हो सकता है कि भाजपा-कांग्रेस के बीच कोई गोपनीय समझौता या अघोषित सहमति बन जाये कि उसके बाहर रहते सरकार इस बिल को सदन में पारित करवा ले जाये. बहुत सारे राज्य जो विर्निमाण क्षेत्र में पीछे हैं, उन्हें समान कर वाले इस बिल के पास होने से लाभ होगा.