14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राष्ट्रपति ने कहा, परिचर्चा के बजाय अखाड़े में बदल चुकी है संसद

नयी दिल्ली: स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्र को संबोधित किया. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सबसे पहले देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दी और कई अहम मुद्दों पर चर्चा की, उन्होंने सदन में जारी गतिरोध, बाग्लादेश के साथ हुए सीमा समझौतों के साथ- साथ आतंकी को पकड़ने में आम लोगों […]

नयी दिल्ली: स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्र को संबोधित किया. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सबसे पहले देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दी और कई अहम मुद्दों पर चर्चा की, उन्होंने सदन में जारी गतिरोध, बाग्लादेश के साथ हुए सीमा समझौतों के साथ- साथ आतंकी को पकड़ने में आम लोगों की बहादुरी का भी जिक्र किया. उन्होंने देश के विकास और धर्मनिरपेक्षता पर भी बल दिया. उन्होंने भारत के इतिहास और आने वाले भविष्य पर भी चर्चा की. पढ़िये राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संबोधन

मैं देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं देता हूं. मैं सभी सेना के नौजवान, खिलाड़ी, नोबल पुरस्कार विजेताओं को भी बधाई देता हूं जिन्होंने देश का सम्मान बढ़ाया है.मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों का विशेष अभिनंदन करता हूं. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी को बधाई देता हूं, जिन्होंने देश का नाम रौशन किया. हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसा संविधान प्राप्त हुआ है जिसने महानता की ओर भारत की यात्रा का आरंभ किया.

अच्छी से अच्छी विरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है. लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं, संसद परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है.डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के उस वक्तव्य का उल्लेख करना उपयुक्त होगा, जो उन्होंने संविधान सभा में अपने समापन व्याख्यान में दिया.

डॉ अंबेडकर ने कहा था "किसी संविधान का संचालन पूरी तरह संविधान की प्रकृति पर ही निर्भर नहीं होता. यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता तथा उसके दल गंभीर चिंतन करे. हमारे देश की उन्नति का आकलन हमारे मूल्यों की ताकत से होगा.

यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि कुछ गिरावट के बाद हमने 2014-15 में 7.3 प्रतिशत की विकास दर वापस प्राप्त कर ली. विकास का लाभ सबसे धनी लोगों के बैंक खातों में पहुंचे, उसे निर्धनतम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए.हम एक समावेशी लोकतंत्र तथा एक समावेशी अर्थव्यवस्था है.मनुष्य और प्रकृति के बीच पारस्परिक संबंधों को सुरक्षित रखना होगा. जो देश अपने अतीत के आदर्शवाद को भुला देता है वह अपने भविष्य से कुछ महत्त्वपूर्ण खो बैठता है.हम गुरु शिष्य परंपरा को तर्कसंगत गर्व के साथ याद करते है.

समाज, शिक्षक के गुणों तथा उसकी विद्वता को सम्मान तथा मान्यता देता है.क्या आज हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसा हो रहा है, विद्यार्थियों, शिक्षकों और अधिकारियों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए.हमारी नीति आतंकवाद को बिल्कुल भी सहन न करने की बनी रहेगी.हमारी सीमा में घुसपैठ तथा अशांति फैलाने के प्रयासों से कड़ाई से निबटा जाएगा.भारत, 130 करोड़ नागरिकों, 122 भाषाओं, 1,600 बोलियों तथा 7 धर्मों का देश है.हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त उर्वर भूमि पर भारत एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ हैःआधुनिक भारत का उदय एक ऐतिहासिक हर्षोल्लास का क्षण था.हमने अप्रचलित परंपराओं और कानूनों को समाप्त किया तथा शिक्षा और रोजगार के माध्यम से महिलाओं के लिए बदलाव सुनिश्चित किया. अच्छी से अच्छी विरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है.

लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं. संसद, परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है. यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता तथा उसके दल गंभीर चिंतन करें. सुधारात्मक उपाय अंदर से आने चाहिए. हमारे देश की उन्नति का आकलन हमारे मूल्यों की ताकत से होगा. यह आर्थिक प्रगति तथा देश के संसाधनों के समतापूर्ण वितरण से भी तय होगी. इससे पहले कि विकास का लाभ सबसे धनी लोगों के बैंक खातों में पहुंचे, उसे निर्धनतम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए. हम एक समावेशी लोकतंत्र तथा एक समावेशी अर्थव्यवस्था हैं; धन-दौलत की इस व्यवस्था में सभी के लिए जगह है.

हमारी नीतियों को निकट भविष्य में ‘भूख से मुक्ति’ की चुनौती का सामना करने में सक्षम होना चाहिए. मनुष्य और प्रकृति के बीच पारस्परिक संबंधों को सुरक्षित रखना होगा. उदारमना प्रकृति अपवित्र किए जाने पर आपदा बरपाने वाली विध्वंसक शक्ति में बदल सकती है. जो देश अपने अतीत के आदर्शवाद को भुला देता है वह अपने भविष्य से कुछ महत्त्वपूर्ण खो बैठता है.

गुरु किसी कुम्हार के मुलायम तथा दक्ष हाथों के ही समान शिष्य के भविष्य का निर्माण करता है. कानून का शासन परम पावन है परंतु समाज की रक्षा एक कानून से बड़ी शक्ति द्वारा भी होती है और वह है मानवता.शांति, मैत्री तथा सहयोग विभिन्न देशों और लोगों को आपस में जोड़ता है. यह प्रसन्नता की बात है कि बांग्लादेश के साथ लम्बे समय से लंबित सीमा विवाद का अंतत: समाधान कर दिया गया है.

हिंसा की भाषा तथा बुराई की राह के अलावा इन आतंकवादियों का न तो कोई धर्म है और न ही वे किसी विचारधारा को मानते हैं. हमारे पड़ोसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके भू-भाग का उपयोग भारत के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतें न कर पाएं.

हमारी सीमा में घुसपैठ तथा अशांति फैलाने के प्रयासों से कड़ाई से निबटा जाएगा.मैं उन शहीदों को श्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने भारत की रक्षा में अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया.मैं अपने सुरक्षा बलों के साहस और वीरता को नमन करता हूं जो हमारे देश तथा हमारी जनता की हिफाजत के लिए निरंतर चौकसी बनाए रखते हैं.

मैं, उन बहादुर नागरिकों की भी सराहना करता हूं जिन्होंने अपने जीवन की परवाह न कर बहादुरी के साथ एक दुर्दांत आतंकवादी को पकड़ा. भारत की शक्ति, प्रत्यक्ष विरोधाभासों को रचनात्मक सहमतियों के साथ मिलाने की अपनी अनोखी क्षमता में निहित है. हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त उर्वर भूमि पर, भारत एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ है.इसकी जड़ें गहरी हैं परंतु पत्तियां मुरझाने लगी हैं, अब नवीकरण का समय है. यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए तो क्या सात दशक बाद हमारे उत्तराधिकारी हमें सम्मान तथा प्रशंसा के साथ याद कर पाएंगे?भले ही उत्तर सहज न हो परंतु प्रश्न तो पूछना ही होगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें