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हाईकोर्ट ने अनिवार्य मतदान पर रोक लगाई

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में मतदान को अनिवार्य बनाने वाले एक कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है.उच्च न्यायालय ने कहा कि मतदान का अधिकार अपने आप में मतदान से अलग रहने का अधिकार भी देता है और इसे मतदान के कर्तव्य में नहीं बदला जा सकता. अदालत […]

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में मतदान को अनिवार्य बनाने वाले एक कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है.उच्च न्यायालय ने कहा कि मतदान का अधिकार अपने आप में मतदान से अलग रहने का अधिकार भी देता है और इसे मतदान के कर्तव्य में नहीं बदला जा सकता. अदालत ने गुजरात स्थानीय प्रशासन (संशोधन) कानून 2009, जो राज्य में स्थानीय निकाय के चुनाव में मतदान को अनिवार्य बनाता है, को चुनौती देती एक याचिका पर यह रोक लगाई.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जयंत पटेल और न्यायमूर्ति एन वी अंजरिया की खंड पीठ ने इस कानून के खिलाफ वकील के आर कोशती द्वारा दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए अनिवार्य मतदान संबंधी कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगाई.
स्थानीय निकायों में सभी नागरिकों के लिए मतदान को अनिवार्य बनाने के विधेयक को लेकर राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहल की थी और राज्य विधानसभा ने 2009 में इसे पारित किया था और यह मौजूदा राज्यपाल ओ पी कोहली के दस्तख्त के बाद कानून बन गया था.इससे पूर्व राज्य सरकार ने इसी महीने इस कानून को अधिसूचित करते हुए कहा था कि जो लोग वोट नहीं डालेंगे, उन्हें एक सौ रुपए जुर्माना भरना होगा.
याचिकाकर्ता के वकील पी एस चंपानेरी ने आज अदालत में कहा कि वोट डालने का अधिकार एक नागरिक की अभिव्यक्ति है और वोट देना है या नहीं इसमें वोट देने के साथ ही वोट न देने का अधिकार भी समाहित है.उन्होंने कहा वोट देने के अधिकार को राज्य द्वारा दायित्व नहीं कहा जा सकता और इसलिए अनिवार्य मतदान का प्रावधान भारतीय संविधान के तहत किसी भी नागरिक को दिए गए बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है.
उन्होंने दलील दी कि राज्य विधायिका के पास मतदान के संबंध में कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह संविधान के दायरे में आता है और इस तरह के किसी भी कानून को सिर्फ संसद द्वारा बनाया या संशोधित किया जा सकता है.याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में मांग की है कि गुजरात सरकार और राज्य चुनाव आयोग को गुजरात स्थानीय प्रशासन (संशोधन) कानून, 2009 के प्रावधानों को लागू करने से रोका जाए.

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