गुजरात हिंसा : भारत में जातीय आंदोलन का है पुराना इतिहास, अबतक गयी हैं दर्जनों जानें

जिस जातीय आंदोलन की आग में आज गुजरात जल रहा है और राजनीतिक दलों तक उसकी लपटें पहुंच रही हैं, उसके लिए हमारे राजनीतिक दल ही ब्लोअर का काम करते रहे हैं. सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हित में आरक्षण की रेवडी बिल्ली, बंदर व तराजू पर संतुलन बनाने की कोशिश करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 27, 2015 1:39 PM

जिस जातीय आंदोलन की आग में आज गुजरात जल रहा है और राजनीतिक दलों तक उसकी लपटें पहुंच रही हैं, उसके लिए हमारे राजनीतिक दल ही ब्लोअर का काम करते रहे हैं. सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हित में आरक्षण की रेवडी बिल्ली, बंदर व तराजू पर संतुलन बनाने की कोशिश करने वाले स्टाइल में बांटती रहे हैं. दरअसल, जातीय गोलबंदी राजनीतिक दलों की भूख मिटाने के लिए हमेशा एक उपयुक्त आहार साबित होती रही है. गुजरात में पाटीदार समुदाय के आंदोलन को लेकर भडकी हिंसा में अबतक कई करोडों रुपये की संपत्ति स्वाहा हो चुकी है, जबकि कम से कम आठ लोगों की मौत हो चुकी है. पाटीदार आंदोलन से पहले और भी कई जातीय आंदोलनों में कई बार लोगों की जानें गयी हैं. गुर्जर आंदोलन में भी लोगों की मौत हुई है.

जातीय आंदोलन आखिर क्यों?
जातीय आंदोलन आमतौर पर जातीय आरक्षण की मांग लेकर होते हैं. जातीय समूहों को लगता है कि इससे उनके समुदाय को नौकरियों व शिक्षा में लाभ होगा, जिससे उनका विकास हो सकेगा. दिलचस्प बात यह कि जिस जाति की जितनी आबादी उनका आंदोलन उतना ही मजबूत होता है. जिस राज्य में जो जाति समुदाय संख्या बल में मजबूत होती है, वहां आसानी से उनका आंदोलन धारदार हो जाता है और उसके माध्यम से सरकार पर दबाव बनाया जाता है. आरक्षण की मांग को लेकर जाट व गुर्जर समुदाय का भी समय-समय पर आंदोलन होता रहा है. हालांकि अदालतें बार-बार इस तरह की मांग पर आरक्षण दिये जाने के सरकार के फैसले को बदलती रही हैं. दरअसल, संविधान के अनुसार आरक्षण किसी भी हाल में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है, ऐसे में किसी भी जातीय समुदाय को जब इस तरह आरक्षण दिया जाता है तो उस पर अदालत को रोक लगाना पडता है.
जातीय आंदोलन व हिंसा का भारत में पुराना है इतिहास
हिंदुस्तान में जातीय आंदोलन व हिंसा का पुराना इतिहास है. 1990 के दशक में वीपी सिंह द्वारा मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू किये जाने के बाद इसके खिलाफ देश भर में हिंसा भडकी थी. उसके बाद देश में जातीय विभाजन भी बढा. विभिन्न जातीय समुदायों द्वारा की जाने वाली आरक्षण की मांग में अबतक सर्वाधिक लोगों की मौत गुर्जर आंदोलन में हुई है. एसटी दर्जे की मांग कर रहे गुर्जरों का आंदोलन राजस्थान में भयावह हो गया था. उस समय इस आंदोलन में 37 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 700 से अधिक लोग घायल हुए थे. 2007 में भी उनके आंदोलन में 26 लोग मारे गये थे. इससे पहले 23 मई 2001 को पीलूपुरा में गुर्जरों के आंदोलन में 16 लोगों की मौत हो गयी थी.
जाट आंदोलन और राजनीति
जाट समुदाय पश्चिम भारत में एक प्रभावी वोट बैंक है. जाट आरक्षण की मांग पर इस समुदाय के नेता चाहे वे किसी पार्टी में हों अपनी बात रखते हैं. अगले महीने 23 सितंबर को फिर जाट समुदाय के प्रतिनिधि अपने आरक्षण की मांग को लेकर दिल्ली में बैठक करने वाले हैं. मार्च में जाट समुदाय के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे, जिसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में आरक्षण की मांग पर विचार करने के लिए एक कमेटी बनायी गयी थी. भाजपा के अंदर ही वीरेंद्र सिंह, संजीव बलियान जैसे कद्दावर जाट नेता हैं. दरअसल, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय नौकरियों व संस्थानों में प्रवेश में जाट समुदाय को आरक्षण देने से इनकार कर दिया था. इसे अदालत ने तर्क संगत नहीं माना था. इसके बाद जाटों ने नये सिरे से आरक्षण की मांग उठायी.

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