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…तो पाकिस्तान का नामोनिशान मिट गया होता

28 अगस्त, 1965 का दिन. ठीक आज से 50 वर्ष पूर्व . पाकिस्तानी सेना की रोज-रोज की फायरिंग और कि ये गये आक्रमण का भारतीय सेना ने जोरदार तरीके से जवाब दिया था. इसी दिन भारतीय सेना ने हाजी पीस दर्रा परकब्जा कर वहां तिरंगा लहराया था. भारतीय फौज बहादुरी से लड़ती हुई सियालकोट शहर […]

28 अगस्त, 1965 का दिन. ठीक आज से 50 वर्ष पूर्व . पाकिस्तानी सेना की रोज-रोज की फायरिंग और कि ये गये आक्रमण का भारतीय सेना ने जोरदार तरीके से जवाब दिया था. इसी दिन भारतीय सेना ने हाजी पीस दर्रा परकब्जा कर वहां तिरंगा लहराया था. भारतीय फौज बहादुरी से लड़ती हुई सियालकोट शहर से सिर्फ दो कि लोमीटर की दूरी तक पहुंच गयी थी. भारतीय सेना तब लाहौर जि ले में घुस गयी थी और बरकी पुलिस स्टेशन पर कब्जा कर लि या था. जि स तेजी और बहादुरी से भारतीय फौज आगे बढ़ रही थी, पाकि स्ता न की धरती पर कब्जा कर रही थी, अगर युद्ध वि राम की घोषणा नहीं होती, तो शायद पाकिस्ता न का नामोनिशान म ट गया होता.

ताशकंद समझौते के बाद भारत ने कब्जा की गयी पाकि स्ता न की जमीन को वापस कर दिया था. तत्का लीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सैनि कों का मनोबल बढ़ा ने के लि ए उनके बीच जाकर टैंक पर चढ़ गये थे. इस युद्ध के 50 साल बीत गये हैं, लेकि न पाकि स्ता न अभी भी सुधरा नहीं है. वह परमाणु बम की धमकी दी रहा है. पहले वाली हरकत कर रहा है. पाकि स्ता न शायद 1965 और 1971 के युद्ध में मि ली करारी हार को भूल गया है. वह इति हास से सबक ले. भारतीय फौज पर हम सभी को गर्व है.
1965 के युद्ध का स्वर्ण जयंती वर्ष आज से
28 अगस्त 1965 में हुए भारत- पाकि स्ता न युद्ध को शुक्रवार को 50 साल पूरे हो रहे हैं. इस युद्ध में शामिल कुछ जाबांज जवानों को आज भी उस युद्ध की स्मृतियां याद है़ राजधानी में रह रहे ऐसे ही सेना के अधि कारियों से प्रभात खबर के संवाददाता अजय दयाल ने वि शेष बातचीत की़ प्रस्तुतहै बातचीत के मुख्य अंश .
युद्ध को याद कर आज भी रोमांचि त हो जाता हूं.
बूटी मोड़ के हनुमान नगर निवासी कर्नल बीएन दुबे 1965 युद्ध में सेकेंड बिहार रेजीमेंट की ओर से कमांडो के स्पे शल टॉस्क फोर्स के प्ला टून कमांडर थे. वह इनफेंटरी यानी पैदल सेना में तंगधार सेक्टर में लड़े थे़ उन्होंने बताया कि नौसेरा सेक्टर में अपनी डि फेंस लाइन के आगे बढ़ कर हमलोगों ने युद्ध किया था. दुश्मन सामने से हम पर हमला कर रहे थे. हमलोग खड़ा पहाड़ के पीछे से कील ठोंक कर चढ़े और दुश्मन को घेर लि ये़ 26 दुश्मनों को मार गिराया. तीन को युद्ध बंदी बनाया गया था. मैने एक पठान को पीछे से पकड़ लिया. लेकिन उसने हाथ घुमा कर मुझे दबोच लि या. दोनों हाथ दब जाने के कारण मैं हथि यार नहीं चला पा रहा था. उसी समय सामने से मेरे कमांडो ने उसकी जांघ में एक गोली मारी, वह गिर गया, तो हमने उसे बैनेट(राइफल के आगे लगा चाकू ) से उसे मार गि राया. उस समय हमलोगों को 303 का राइफल दि या जाता था. राइफल की गोली खत्म होने पर हमलोग उसे लाठी की तरह प्रयोग करते थे.
युद्ध की घोषणा के बाद रेडि यो से हमें संदेश मि ला : कर्नल दुबे ने बताया कि 25 सितंबर 1962 को सेना में भरती हुए. उस समय उनकी शादी हो गयी थी. युद्ध की घोषणा हुई उस समय वह बेटी की सतइसा के लि ए छुट्टी पर आये हुए थे. युद्ध की घोषणा होते ही रेडि यो से हमें अपने-अपने कार्य स्थल पर पहुंचने के लि ए कहा गया. उसके बाद हम लोग छुट्टी से वापस अपने कार्य स्थल पर पहुंच गये और युद्ध में शामिल हुए. दो दि न और युद्ध होता तो पाकि स्ता न हमारे कब्जे में रहता, लेकि न सीज फायर की घोषणा हो गयी और ताशकंद समझौता के बाद कब्जा कि ये गये कई स्थानों को वापस करना पड़ा . अगस्त में युद्ध समाप्त होने के बाद एक महीना बाद घर में पत्र लि खने का मौका मि ला और करीब डेढ़ साल बाद वापस अपने घर बि हार के आरा, भोजपुर लौट पाये थे. वे 1971 के युद्ध में भी शामि ल हुए. 1978 में यूपीएससी पास करकर्नल बन गये.
बदोरी पर कब्जा कर लिया था
बरियातू निवासी सेवेंथ बि हारा बटालि यन के मेजर महेंद्र प्रसाद ने बताया कि 1965 का युद्ध हमारे लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण था. हमलोगों ने बदोरी और बदोरी हाइट्स, जो अब पाकि स्ता न में है, उस पर कब्जा कर लि या था. युद्ध केसमय वह कैप्टे न के रूप में शामिल हुए थे. युद्ध समाप्त होने के बाद मेजर बने. वर्ष 1973 में सिक्कि में पोस्टिंग हुई थी. उस समय सिक्कि में हमारे देश में स्वे च्छा से मि ल चुका था. 1977 में वे सीआरपीएफ में आइजी के पद पर आ गये और 2000 में सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त हुए.
हमारा बंकर ध्वस्त हो गया था
कोकर के हैदल अली रोड निवासी विशि ष्ट सेवा मेडल प्राप्त कर्नल एसके सि न्हा ने कहा कि थर्ड बिहार रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप 1963 में योगदान दिया था. 1965 के युद्ध के समय वे पाकिस्तान के पूर्वी इलाका की ओर मोरचा संभाले हुए थे. जब इसकी जानकारी पाकि स्ता न के सैनि कों को मि ली, तो हम लोगों पर हवाई हमले कि ये गये. इस हमले
में हमारा बंकर ध्वस्त हो गया. राशन व पानी नष्ट हो गया. कि सी प्रकार से गांव वालों की मदद से हमलोग को कुछ दिन का राशन-पानी गांव वालों की तरफ से मुहैया कराया गया. हमें पूरे इलाके में आक्रामक पेट्रोलिंग करने को कहा गया था. इस दौरान फील्ड मार्श ल माणि क शॉ हमारा मनोबल बढ़ाने आये थे. इस लड़ा ई में पाकि स्ता न परास्त हो गया था. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने जवानों का मनोबल बढ़ाते हुए जय जवान जय किसानका नारा दि या था.
बड़का भैया के नाम से पुकारते थे : कर्नल एके सि न्हा को फौज में लोग बड़का भैया के नाम से पुकारते थे. उन्होंने थरूर बिहार रेजीमेंट का नारा दि या था, जीतेंगे हम. यह नारा अाज भी कायम है. उन्होंने बताया कि पांच साल की उम्र से ही उन्होंने सेना में जाने की ठान ली थी. पिता भी पुलि स में थे. इसलि ए घर वालों ने सेना में जाने से कभी मना नहीं कि या. वर्त मान में उनका पुत्र सुदीप सि न्हा भी एयर फोर्स में है.

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