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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सजा के लिए सबूतों की संख्या नहीं बल्कि गुणवत्ता जरूरी

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक मामले में सजा दिलाने के लिए सबूतों की संख्या नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता जरूरी है और यह एकमात्र चश्मदीद की गवाही पर भी आधारित हो सकती है. न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की खंडपीठ ने कहा कि गवाहों के सबूतों के […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक मामले में सजा दिलाने के लिए सबूतों की संख्या नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता जरूरी है और यह एकमात्र चश्मदीद की गवाही पर भी आधारित हो सकती है.

न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की खंडपीठ ने कहा कि गवाहों के सबूतों के आकलन के मामले में गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गुणवत्ता महत्वपूर्ण है क्योंकि साक्ष्य कानून के तहत तथ्य की पुष्टि या खंडन के लिए निश्चित संख्या में गवाहों से पूछताछ की आवश्यकता नहीं है.

न्यायालय ने कहा कि यह परंपरागत सिद्धांत है कि साक्ष्य की गणना नहीं बल्कि आकलन करना चाहिए। यह देखना जरूरी है कि क्या साक्ष्य में सच्चाई है और यह भरोसेमंद है या नहीं.

न्यायालय ने कहा कि साक्ष्य कानून की धारा 134 के प्रावधान के तहत सबूत की संख्या नहीं बल्कि गुणवत्ता ही साक्ष्य की पूर्णता का निर्धारण करती है. न्यायालय ने कहा कि प्रोबेट के मामलों में भी जहां कानून के तहत सत्यापन करने वाले कम से कम एक गवाह से पूछताछ की आवश्यकता होती है, यह कहा गया है कि ज्यादा गवाह पेश करने से अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है. इसलिए एक चश्मदीद की गवाही के आधार पर भी सजा दी जा सकती है यदि वह भरोसा पैदा करने वाली हो.

न्यायालय ने बिहार के एक निवासी की अपील पर यह व्यवस्था दी। अपीलकर्ता ने हत्या के जुर्म में उसे दोषी ठहराने और इसके लिए उम्र कैद की सजा देने के निर्णय को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी.शीर्ष अदालत ने अभियुक्त की अपील खारिज करते हुए कहा कि निचली अदालत और पटना उच्च न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं है.

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