आखिर पूर्व सैनिकों की मांग पर मौन क्यों है मोदी सरकार?
नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के दौरान कई ऐसे मुद्दे और वादे थे जिसके दम पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में सफल हुई. इसी कड़ी में वन रैंक वन पेंशन का भी वादा था. नरेंद्र मोदी ने उस वक्त यूपीए सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि इस पर […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
September 3, 2015 3:01 PM
नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के दौरान कई ऐसे मुद्दे और वादे थे जिसके दम पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में सफल हुई. इसी कड़ी में वन रैंक वन पेंशन का भी वादा था. नरेंद्र मोदी ने उस वक्त यूपीए सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि इस पर अबतक फैसला ले लिया जाना चाहिए.
नरेंद्र मोदी सरकार के 15 महीने पूरे हो गये. इन 15 महीनों में सरकार की छवि बनती और बिगड़ती रही. बिगड़ती छवि का एक कारण वो भी रहे जिन्हें लुभाकर लोकसभा में जीत हासिल की गयी थी. जंतर मंतर पर पूर्व सैनिक 80 दिनों से धरने पर बैठे हैं. भूख हड़ताल के कारण कई पूर्व सैनिकों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा और उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. आखिर ऐसा क्या हो गया कि जिस मुद्दे पर चुनाव लड़कर एनडीए सत्ता में पहुंची उसे 80 दिनों से जारी पूर्व सैनिकों का विरोध नजर नहीं आ रहा.
पूर्व सैनिकों की क्यों नहीं सुन रही सरकार?
वन रैंक वन पेंशन को लेकर केंद्र सरकार ने चुप्पी साधे रखी. उम्मीद थी कि 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री वन रैंक वन पेंशन की घोषणा करेंगे अगर घोषणा नहीं भी हुई तो इस पर अपने विचार जरूर सार्वजनिक करेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. कुछ दिनों के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुप्पी तोड़ी तो सरकार की समस्या सामने आयी. अरुण जेटली ने कहा मेरा काम एक गृहणी की तरह है जो अपने हर खर्च पर नजर रखती है और यह ध्यान रखती है कि उसके बजट में ही सारा खर्च हो और किसी से उधार मांगना ना पड़े.
उन्होंने वन रैंक वन पेंशन को लेकर की जा रही मांगो पर भी जेटली फार्मूला थोप दिया और कि मैं नहीं जानता कि वन रैंक वन पेंशन को लेकर लोगों के दिमाग में क्या है और किस फार्मूले के आधार पर लोग इसकी कल्पना कर रहे हैं लेकिन इसे लेकर मेरा जो फार्मूला है ऐसा ओआरओपी नहीं लागू कर सकते, जहां पेंशन हर महीने या हर साल संशोधित होती हो. वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर धऱने पर बैठे पूर्व सैनिक इस मांग को भी जोरशोर से उठा रहे है जो जेटली के फार्मूले के तहत नहीं आती. कुल मिलाकर वन रैंक वन पेंशन को लेकर सरकार की तरफ से अभी कई समस्याएं है इस पर खुलकर चर्चा नहीं हुई यह भी एक कारण है वन रैंक वन पेंशन के फैसले में सरकार द्वारा की जा रही देरी का.
सरकार पर बढ़ता दबाव
वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर सरकार पर चौतरफा दबाव बढ़ता जा रहा है. एक तरफ राजनीतिक पार्टियां और विपक्ष सरकार पर दबाव बना रहा है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद जंतर मंतर पर पहुंचे और पूर्व सैनिकों के पक्ष में नारे लगाये राहुल गांधी ने यहां से केंद्र सरकार पर हमला बोला कहा, केंद्र सरकार इनकी मांगो पर ध्यान दे औऱ एक तारीफ की घोषणा करे दे कि हम इस दिन वन रैंन वन पेंशन पर फैसला ले लेंगे. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की पितृ संस्था (राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ) भी अब केंद्र सरकार पर दबाव बना रही है. भाजपा-आरएसएस की तीन दिवसीय बैठक में सरकार और पार्टी से जुड़े कई मसलों पर चर्चा हुई. संघ ने इसे अपन एजेंडे में ऊपर रखा था और इस पर पहले ही चर्चा हुई, संघ ने साफ कर दिया कि वन रैंक-वन पेंशन पर फैसला लेने में देर नहीं होनी चाहिए. जरूरत पड़े तो इस मुद्दे पर आयोग भी बनाया जाना चाहिए. इसके अलावा भी कई पक्ष है जिस पर केंद्र सरकार का दबाव बन रहा है पूर्व सैनिकों की भूख हड़ताल और मेंडल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास जमा करने की रणनीति भी केंद्र सरकार को घुटने टेकने पर मजबूत कर सकती है.
पड़ रहा है सरकार की गुड गर्वनेंस वाली छवि पर असर
केंद्र सरकार की छवि गुड गर्वनेंस की बन रही थी. स्वच्छ भारत अभियान, जनधन योजना, गैस सब्सिडी जैसे कई फैसलों पर सरकार की छवि मजबूत थी लेकिन कई चुनावी वादों पर सरकार का यूर्टन उसकी छवि को खराब कर रहा है. भ्रष्टाचार और कालाधन के अलावा वन रैंक वन पेंशन पर सरकार की चुप्पी भी उसकी छवि पर बुरा असर डाल रही है. पिछले 15 महीनों में केंद्र सरकार पर विरोधियों ने कई सवाल खड़े किये व्यापम और ललितगेट कुछ ऐसे मुद्दे है जो पिछले 15 महीनों में केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया. अब वन रैंक वन पेंशन पर सरकार पूर्व सैनिकों के जंतर मंतर पर 80 दिनों से जारी धरने और भूखहड़ताल की अनदेखी कर रही है. अब कई समाजसेवी संस्थाएं के साथ- साथ बाइकर्स संगठन जैसे ग्रुप भी इनकी मांग का समर्थन कर रहे है.