जन्माष्टमी आज, देशभर में मनाया जा रहा है भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव
आस्था और श्रद्धा का त्योहार जन्माष्टमी 5 सितंबर को है. पूरे भारत वर्ष में हर जगह जन्माष्टमी की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने के लिए भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी […]
आस्था और श्रद्धा का त्योहार जन्माष्टमी 5 सितंबर को है. पूरे भारत वर्ष में हर जगह जन्माष्टमी की तैयारी जोर-शोर से चल रही है. पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने के लिए भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था. कृष्ण जन्म स्थान के अलावा द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता है. इस दिन मंदिरों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण को झूला-झूलाया जाता है.
जन्माष्टमी
जन्माष्टमी को पूरे भारत में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता है. कहीं रंगों की होली खेली जाती है तो कहीं फूलों की बारिश तो कहीं दही-हांडी फोड़ने को जोश होता है. इस मौके पर भगवान कृष्ण की कई मनमोहक छवियां देखने को मिलती है. कृष्ण रासलीलाओं का भी आयोजन होता है. भक्तजन उपवास का पालन करते हैं. जन्माष्टमी का मुख्य प्रसाद धनिया पंजीरी ही होती है. कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त व्रत रखते हैं और इसके बाद रात के 12 बजे कृष्ण जन्मोत्सव के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं.
मथुरा में जन्माष्टमी
मथुरा में जन्माष्टमी का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए बड़ी दूर-दूर से श्रद्धालु से यहां आते हैं. इस मौके पर ब्रज पूरी तरह से कृष्णमय हो जाता है. यहां मंदिरों को फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और झूला-झूलाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण के विग्रह पर घी, तेल, हल्दी, दही, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर लोग उसका एक दूसरे पर छिड़काव करते हैं. जन्माष्टमी के अवसर पर यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है.
महाराष्ट्र में दही-हांडी फोड़ने का चलन
महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के मौके पर दाही-हांडी फोड़ने का चलन है. इसे लेकर युवाओं में उत्साह देखते ही बनता है. इस मौके पर ‘हाथी घोड़ा पाल की जय कन्हैया लाल की’ की गूंज हर तरफ सुनाई देती है. बच्चे, युवा, महिला, बूढ़े सभी एक मैदान पर एकत्र होते हैं और फिर युवाओं के बीच दाही-हांडी फोड़ने की प्रतियागिता होती है. उभी अपनी-अपनी टीमों का उत्साहवर्धन करते हैं.
बहुत ही उंचाई पर एक दाही की एक छोटी सी मटकी को लटका दिया जाता है और लोगों पिरामिड बनाकर उस तक पहुंचते है और उसे फोड़ते है. जो जीतता है उन्हें इनाम दिया जाता है.
जन्माष्टमी पर उपवास की विधि
शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह व्रत आपकी मनाकामनाओं को पूर्ण करनेवाला है. घर के पूजागृह की साफ-सफाई की जाती है और उसे फूलों से सजाया जाता है और झाकियां सजाई जाती है. जन्माष्टमी के दिन सुबह उठकर पवित्र नदी यदि ऐसा संभव न हो तो घर में ही स्नान कर जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है.
गंगाजल या पंचामृत से नहलाकर माता देवकी और भगवान कृष्ण की मिट्टी, सोने, चांदी, पीतल और तांबे की मूर्ति को पालने में स्थापित किया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को नये-नये वस्त्र धारण करवाये जाते हैं. सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते है. पूजन में देवकी, वासुदेव, नंद, बलदेव और लक्ष्मी आदि के नामों का भी उच्चारण किया जाता है और उनकी मूर्तियां भी स्थापित की जाती हैं. शंख में जल भरकर फूल, गंध और कुश डालकर अर्घ्य दिया जाता है. पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है.
रात्रि के समय भागवद्गीता का पाट करना चाहिये और कृष्ण लीला का श्रवण करना चाहिये. जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण और कीर्तन भी किये जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का जल, दूध, दही, और शहद आदि से अभिषेक किया जाता है और इसके पश्चात था भगवान श्री कृष्ण का षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है.