कराची : पाकिस्तान की एक अदालत ने एक भारतीय वकील और सामाजिक कार्यकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पाकिस्तान में करीब एक दशक से फंसी मूक-बधिर भारतीय लड़की के संरक्षण की मांग की गयी थी. अदालत ने गीता के जबरन प्रत्यर्पण का आदेश जारी करने से मना कर दिया.
जिला और सत्र अदालत के न्यायाधीश अहमद सबा ने 23 वर्षीय गीता की बातें एक विशेषज्ञ के माध्यम से सुनी लेकिन उन्होंने मोमिनीन मलिक द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी. मलिक ने याचिका दायर कर 23 साल की गीता के प्रत्यर्पण की मांग की थी. गीता फिलहाल एधी फाउंडेशन के संरक्षण में है.
एधी के प्रवक्ता अनवर काजमी ने बताया कि दक्षिण कराची स्थित जिला और सत्र अदालत ने मलिक की याचिका खारिज कर दी है. भारत के हरियाणा के रहने वाले वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मलिक ने स्थानीय वकीलों की मदद से गीता का संरक्षण हासिल करने के लिए याचिका दायर की थी.
गीता पाकिस्तान रेंजर्स को समझौता एक्सप्रेस में अकेली मिली थी. वह भारत में शायद गलती से ट्रेन में चढ़ गयी थी और वाघा सीमा होते हुए लाहौर पहुंच गयी थी.जिओ न्यूज की खबर के अनुसार, गीता ने विशेषज्ञों की मदद से बताया कि वह वापस भारत जाना चाहती हैं. मलिक ने पाकिस्तानी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 552 (अपहृत महिला या लड़की का जबरन प्रत्यपर्ण) के तहत अदालत में याचिका दायर की थी.
न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और गवाही दर्ज करने के बाद यह कहा कि आवेदनकर्ता को प्रत्यक्ष रुप से ऐसा अनुरोध करने का अधिकार नहीं है. और इसके लिए बेहतर रास्ता कूटनीतिक होगा क्योंकि यह भारत-पाकिस्तान से जुडा हुआ है. अदालत ने उसके जबरन प्रत्यर्पण का आदेश जारी करने से इनकार कर दिये.