25.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अपनी शर्तों पर राजनीति की!

– हरिवंश – चंद्रशेखर जी की स्थिति नाजुक है. यह सूचना ही आहत करनेवाली थी. कोलकाता पहुंचते ही उनकी मौत की मिली खबर ने जड़ बना दिया. संज्ञाशून्य. मुझे ही नहीं, मेरी तरह असंख्य लोग, जो उन्हें जानते थे, स्तब्ध और भाव शून्य हुए होंगे. यह फलसफा कि जो जन्मा है, मरेगा, ध्रुव सत्य है. […]

– हरिवंश –

चंद्रशेखर जी की स्थिति नाजुक है. यह सूचना ही आहत करनेवाली थी. कोलकाता पहुंचते ही उनकी मौत की मिली खबर ने जड़ बना दिया. संज्ञाशून्य. मुझे ही नहीं, मेरी तरह असंख्य लोग, जो उन्हें जानते थे, स्तब्ध और भाव शून्य हुए होंगे. यह फलसफा कि जो जन्मा है, मरेगा, ध्रुव सत्य है. फिर भी प्रियजनों का जाना, जन्म-मृत्यु दर्शन की व्याख्या से परे है. यह दुख अकथ्य है. शब्दों और भावों से परे.
पहली बार उनसे मिलना हुआ,’धर्मयुग’ में काम करते हुए, मुंबई में. वर्ष 1978. बिना मिले ही हमारी पीढ़ी को उनके साहस ने प्रभावित किया था. युवा तुर्क और प्रखर सांसद के रूप में तब वह मशहूर थे. गरीबी हटाओ, कांग्रेस संगठन- इंदिरा कांग्रेस संघर्ष, बैंकों के राष्ट्रीयकरण, अंतरात्मा के नाम पर राष्ट्रपति गिरि के चुनाव में उनकी वैचारिक भूमिका, साहस और सार्थक हस्तक्षेप ने उन्हें भारतीय राजनीति में विशिष्ट बना दिया था.
पर श्रीमती गांधी के प्रत्याशी को कांग्रेस कार्यसमिति में हरा कर भारी अंतर से चुनाव जीतना, इंदिरा जी-संजय गांधी के वर्चस्व व भय के बावजूद जेपी के साथ चाय पीने के लिए 60 इंदिरा कांग्रेसी सांसदों का उनके घर पर एकत्र होना, कांग्रेस में रहते तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ के ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ के मुखर विरोध और जेपी आंदोलन के समर्थन में उनका खड़ा होना, जेल जाना, हमारी पीढ़ी के लिए प्रेरक उदाहरण थे. तब उनकी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ के उनके संपादकीय, भारत के बड़े अखबारों के बैनर हेडलाइन होते थे.
उसी आभा ने औरों की तरह मुझे भी उनके पास खींचा. लगभग तीन दशक पहले. बंबई में उनके संपर्क में आया. तब से आज तक स्मृतियों का लंबा सिलसिला है.
मुंबई, हैदराबाद, दिल्‍ली, चेन्नई, कोलकाता, पटना, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, बनारस, डूमस (सूरत), लोनावाला (मुंबई), इंदौर, बलिया, इब्राहिमपी, जयप्रकाश नगर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक साथ रहने की यादें. उनके मानवीय पक्ष, संवेदना, रचनात्मक ऊर्जा, एकला चलो रे, बौद्धिक ऊंचाई, उदारता और इतिहास बोध का साक्षी.
विचारों की राजनीति के दौर के वह अंतिम राजनेता और अंतिम प्रधानमंत्री भी थे. ’91 के बाद उदारीकरण का दौर हुआ. और भारतीय राजनीति का ‘कॉरपोरेटाइजेशन’ भी. कॉरपोरेट हाउसों द्वारा प्रभावित व संचालित राजनीतिक दौर को ’91 के बाद देश देख रहा है.
राज चाहे नरसिंह राव का रहा या देवेगौड़ा का या गुजराल का या वाजपेयी का या मनमोहन सिंह का (ध्रुव वाम से ध्रुव दक्षिण) सबकी महत्वपूर्ण नीतिगत घोषणाएं, इस दौर में सीआइआइ, फिक्की और बिजनेस मंचों पर ही होती हैं. वह सैद्धांतिक रूप से सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की निर्णायक भूमिका में यकीन करते थे.
उनके आर्थिक सलाहकार रहे मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीति अपनायी, तो वह संसद में अकेले प्रखर स्वर थे. लोकसभा में 1991 में उनकी ऐतिहासिक उक्ति थी. करुणा और बाजार साथ-साथ नहीं चल सकते. बाजार, मुनाफा चाहता है. इस देश के गरीब मुनाफा कमाने के रॉ मैटेरियल बनेंगे, तो देश अशांत होगा.
प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने डब्लूटीओ (गैट) के खिलाफ देश भर की कार यात्रा की. इसके पहले कन्याकुमारी से दिल्‍ली की ऐतिहासिक पदयात्रा कर वह देश के बुनियादी सवालों को उठा चुके थे.
विचारोंवाली राजनीति की धारा के अंतिम राजनेता. जो कांग्रेस में बैंकों के राष्ट्रीयकरण व गरीबी हटाओ के वैचारिक संघर्ष से वाकिफ हैं, उन्हें पता है कि मुंबई कांग्रेस अधिवेशन में आर्थिक प्रस्ताव पर वह अकेले 11 घंटे बहस करते रहे.
दूसरी तरफ सारे दिग्गज थे. अंतत: इंदिरा जी ने पहल की और चंद्रशेखर का संशोधन मान लिया गया. पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमण और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के संस्मरणों से देश ने चंद्रशेखर के शासन कौशल और स्टेट्समैनशिप का रूप जाना. उनके मत्रि मधु लिमये ने भी ‘धोती, कुरता और चप्पलवाले प्रधानमंत्री’ का उल्लेख किया.
प्रधानमंत्री पद की शपथ के लिए उन्होंने रातोंरात सूट या शेरवानी नहीं बनवायी. वह जैसा पहले थे, वैसे ही वहां रहे. उनमें अद्भुत निर्णायक क्षमता थी. और निर्णय करते हुए वह देशहित पर गौर करते थे.
कुरसी हित पर नहीं. पंजाब में ऑपरेशन ब्लूस्टार के खिलाफ वह खड़े हुए, तब जानते थे कि बलिया में उन्हें हारना पड़ेगा. कांग्रेस राज और वीपी सिंह राज में ही अर्थनीति दिवालिया हो चुकी थी, पर न कांग्रेस में साहस था, न वीपी सिंह में कि सोना गिरवी रख विदेशी ऋण चुकाने का अलोकप्रिय फैसला करे और अंतरराष्ट्रीय बाजार में देश को दिवालिया होने से बचा ले.
प्रधानमंत्री के तौर पर अशांत असम में उन्होंने चुनाव करवाये. उल्फा के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति भी दी. साथ ही पहली बार उत्तर-पूर्व विकास परिषद की बैठक असम में करायी. पंजाब समस्या के हल की कोशिश की. पंजाब में चुनाव की घोषणा करायी.
बीच में ही त्यागपत्र दे दिया. नरसिंह राव ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि अयोध्या संकट हल होने के आसार पहली बार चंद्रशेखर के शासन में दिखायी देने लगे थे. विदेशी मीडिया ने लिखा चंद्रशेखर अल्पमत के बावजूद’इंफेक्टिव एंड डिसिसिव’ (असरदार और निर्णायक) प्रधानमंत्री थे.
अगर उन्हें बहुमत होता, तो अपनी दृष्टि, विजन और व्यक्तित्व के कारण श्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से वह होते. सत्ता गलियारों के जानकार मानते हैं कि देश के ताकतवर लोग, अयोध्या, असम, पंजाब समस्याओं के हल का श्रेय उन्हें नहीं देना चाहते थे, इसलिए समर्थन वापसी की पृष्ठभूमि तैयार की गयी.
1966-67 में ही नक्सल समस्या की चुनौतियों को उन्होंने पहचाना. और उनसे बात करने का सुझाव दिया. फांसी की सजा पाये नक्सल नेताओं की जीवन रक्षा के लिए पहल की. नेपाल में वह सबसे लोकप्रिय भारतीय नेता थे.
वैचारिक मतभेद और मानवीय रिश्‍ते, उनके लिए अलग-अलग चीजें थीं. जनता पार्टी शासन में इंदिरा जी से लोग घर खाली कराना चाहते थे. चंद्रशेखर इसके खिलाफ खड़े हुए. इंदिरा जी के खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं चाहते थे.
हर दल के बड़े नेताओं से उनके निजी रिश्‍ते थे. कोई मदद के लिए उनके पास जाये और लौट जाये, यह संभव नहीं था. वह कार्यकर्ताओं के बीच रहने-जीनेवाले पीढ़ी के अंतिम नेता थे.
वह आज जैसा नेता नहीं थे. एक विषय पर उनका बयान, जगह, समूह या भीड़ के अनुरूप नहीं बदलता था. बात के धनी. दोहरा चेहरा नहीं.
अगर किसी विवादस्पद व्यक्ति से उनका संपर्क था, तो वह भी खुला था. रात में ‘तस्करों से मिलने और दिन में पारदर्शी, स्वच्छ राजनीति पर प्रवचन देनेवाली पीढ़ी’ के वह नेता नहीं थे. संस्थाओं की मर्यादा बने, विकसित हो, वह इसके हिमायती थे.
इसलिए जब न्यायपालिका का रूप मुखर हुआ, तो नरसिंह राव जमाने में इसके खिलाफ बोलनेवाले वह अकेले थे. आठ बार बलिया से वह लोकसभा के लिए चुने गये, पर कभी गांव-गांव वोट मांगने नहीं गये. अपने चुनाव क्षेत्र में चुनावों में वह बहुत कम जाते थे. आश्वासन देकर वोट मांगना उनकी फितरत में नहीं था.
बौद्धिक प्रतिभा, प्रतिबद्धता और आत्मविश्‍वास ने उन्हें एक गरीब घर से दिल्‍ली की सर्वोच्च गद्दी पर पहुंचा दिया. वह राजनीति के विद्यार्थी थे. आर्थिक, सामाजिक विषयों पर धारदार तरीके से लिखते-बोलते थे. साहत्यि वह गहराई से पढ़ते थे. कविताएं पढ़ते, सुनते और उद्धृत करते थे. संस्थाओं को बनाने का उनमें जुनून था. क्षमता और संगठन कौशल भी. उनकी जेल डायरी अत्यंत मर्मस्पर्शी कृति है.
कांग्रेस कार्यसमिति की जिस बैठक में अंतिम बार द्वारिका प्रसाद मिश्र, (भारतीय राजनीति के चाणक्य) आये, उन्होंने युवा तुर्क चंद्रशेखर के बारे में सदस्यों को एक उक्ति सुनायी. जब इंदिरा जी की इच्छा के खिलाफ युवा तुर्क चंद्रशेखर कांग्रेस कार्यसमिति में चुन कर आ गये थे.
इंदिरा जी से चंद्रशेखर का मतभेद शुरू हो गया था. चंद्रशेखर का कहना था कि जिस गरीबी हटाओ से जीत कर हम (1971) आये हैं, उसे कैसे पूरा कर रहे हैं. यह बतायें?
इंदिरा जी के समर्थक युवा तुर्क चंद्रशेखर के खिलाफ गोलबंद हो रहे थे. उसी पृष्ठभूमि में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक थी. सदस्यों से पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कहा. चंद्रशेखर से बात करते हुए, कांग्रेस कार्यसमिति के आप सदस्य याद रखें,
‘चाह गयी, चिंता गयी, मनुआ बेपरवाह
जाको कछु न चाहिए, वह शाह-न-को शाह’
और पंडित मिश्र ने चंद्रशेखर को आगाह किया,
‘खुल खेलो संसार में, बांधि सके न कोय
घाट जकाती क्या करे, जो सिर बोझ न होय’
चंद्रशेखर जी, पंडित मिश्र की इन पंक्तियों को याद रखते थे. कभी कभार नितांत निजी क्षणों में सुनाते थे. अनेक बार, अनेक जगहों पर उनके साथ अकेले होने पर बहुत कुछ पूछता था.
वह बहुत स्नेह और आत्मीयता से सुनाते-बताते थे. वह साथ के हर व्यक्ति की एक-एक चीजों का ध्यान रखते थे. उन्होंने जीवन भर ध्यान रखा कि सिर पर कोई बोझ न हो, ताकि किसी अन्य की शर्त पर जीना-रहना पड़े. अपनी शर्तों पर जीयें और राजनीति की.
एक बार मुंबई एयरपोर्ट पर (09.12.1998) उन्होंने अपने जीवन का मर्म सुनाया. ‘धर्मयुग’ के संपादक रहे गणेश मंत्री की स्मृति में हमने एक कार्यक्रम में उन्हें सुबह न्योता था.
मैदाने इम्तहां से घबड़ा के हट न जाना
तकमील जिंदगी है, चोटों पे चोट खाना
अब अहले गुलिस्‍तां को शायद न हो शिकायत
मैंने बना लिया है, कांटों में आशियाना
स्वाभिमान की राजनीति करनेवाले वह ‘नेताओं के नेता’ थे. उनकी प्रेरक स्मृति को प्रणाम् !
दिनांक : 09-07-07

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें