भारत में शहरी बच्चों के मुकाबले ग्रामीण बच्चों में टीकाकरण की दर बेहतर

वाशिंगटन : हाल में किये गये एक अध्ययन के मुताबिक भारत में शहरों की तुलना में गांवों में बच्चों का टीकाकरण कराने की दर बेहतर है जबकि पूर्ववर्ती अध्ययनों के परिणामों में इसके विपरीत बात कही गयी है. इसके साथ ही टीकाकरण की दर के मामले में मुसलमानों के बजाए हिंदू परिवारों के बच्चे बेहतर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 15, 2015 4:57 PM

वाशिंगटन : हाल में किये गये एक अध्ययन के मुताबिक भारत में शहरों की तुलना में गांवों में बच्चों का टीकाकरण कराने की दर बेहतर है जबकि पूर्ववर्ती अध्ययनों के परिणामों में इसके विपरीत बात कही गयी है. इसके साथ ही टीकाकरण की दर के मामले में मुसलमानों के बजाए हिंदू परिवारों के बच्चे बेहतर स्थिति में हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन (यू-एम) द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत में धार्मिक समुदायों के बीच टीकाकरण दर की तुलना की गयी है. इसे अपनी तरह की पहली रिपोर्ट बताया जा रहा है. यह रिपोर्ट अहम है क्योंकि इसके अनुसार ग्रामीण बच्चों की टीकाकरण दर बेहतर है जो कि पूर्व में इस संबंध में किये गये अध्ययनों के परिणामों के विपरीत तथ्य है.

विश्वविद्यालय ने एक विज्ञप्ति ने कहा कि यू-एम के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने अध्ययन में यह पाया है कि ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की तुलना में एक से तीन वर्ष की आयुवर्ग के शहरी बच्चों का टीकाकरण नहीं कराये जाने की संभावना 80 प्रतिशत है. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में हाल में महामारी विज्ञान विषय में डॉक्टरेट करने वाली और इस रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका निजिका श्रीवास्तव ने कहा, ‘शहरी इलाकों में कई झुग्गी बस्तियां हैं जहां स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सेवाएं नहीं पहुंच रही हैं.’ निजिका ने कहा कि ग्रामीण इलाके के लोगों के पास सरकारी अस्पतालों की टीकाकरण संबंधी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक अकसर सुगम पहुंच होती है.

उन्होंने कहा कि सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और जन स्वास्थ्य केंद्रों ने भी गांवों में टीकाकरण का संदेश पहुंचाने में अच्छा काम किया है. हालांकि भारत टीकों का एक अग्रणी उत्पादक एवं निर्यातक है, लेकिन यहां विश्व के करीब एक तिहाई ऐसे बच्चे रहते हैं जिनका टीकाकरण नहीं हुआ. विश्वविद्यालय ने एक बयान में कहा कि तीन वर्ष से कम आयु के केवल 57 प्रतिशत बच्चों का पूर्णत: टीकाकरण हुआ है. अध्ययन के वरिष्ठ लेखक एवं यू-एम में वैश्विक जन स्वास्थ्य के वरिष्ठ एसोसिएट डीन डा. मैथ्यू बाउलटन ने कहा, ‘यह अध्ययन उन सामाजिक कारकों की बेहतर समझ विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है जो बचपन में टीकाकरण को प्रभावित करते है.

यह अध्ययन जाति, धर्म, लिंग, निवास एवं गरीबी जैसे कारकों की यह निर्धारित करने में भूमिका को उजागर करता है कि भारत में बच्चे का जीवन रक्षक टीकाकरण कराया जाए या नहीं.’ अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि धर्म के आधार पर भी टीकाकरण दर में काफी भिन्नता है. हिंदू परिवारों की तुलना में मुस्लिम परिवारों के बच्चों में टीकाकरण की दर काफी कम है जबकि सिख परिवार इस मामले में बेहतर स्थिति में है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सिख बच्चों का 14 प्रतिशत बेहतर टीकाकरण और मुस्लिम बच्चों का 122 प्रतिशत टीकाकरण नहीं कराये जाने की संभावना है.

निजिका ने कहा कि पहले किये गये अध्ययनों में धर्म को हिंदू और गैर हिंदू के रूप में वर्गीकृत करके अध्ययन किया गया था और यह पहली बार है कि गैर हिंदू धर्मों को भी वर्गीकृत किया गया है. अध्ययन में 2008 के जिला स्तरीय घरेलू एवं सुविधा सर्वेक्षण संबंधी आंकडों में तीन वर्ष से कम आयु के करीब 1,08,000 बच्चों के टीकाकरण की दर को देखा गया है. 12 से 36 महीने के आयुवर्ग के बच्चों के लिए ‘प्रिडिक्टर्स ऑफ वैक्सीनेशन इन इंडिया’ के शीर्षक के तहत यह अध्ययन द अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन और वैक्सीन के एक विशेष सप्लीमेंट में छपा है. इस अध्ययन के अन्य यू-एम लेखकों में सेंटर फॉर स्टैटिस्टिकल कंसल्टेशन एंड रिसर्च के ब्रेंडा गिलेस्पी और गिसेले कोलेनिक तथा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल रिसर्च के जेम्स लेप्कोवस्की शामिल हैं.

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