टॉय डिजाइनिंग रचनात्मकता को दिलाये पहचान
बच्चे तो बच्चे, बड़े भी होते हैं इसके दीवाने. यह क्षेत्र है टॉय डिजाइनिंग का. इस क्षेत्र ने अपार संभावनाओं के द्वार खोले हैं. रचनात्मकता के धनी युवा इस ओर बेहिचक आगे बढ़कर कैरियर बना सकते हैं. खिलौनों के साथ अपना बचपन बितानेवाली सुहासनी पॉल ने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वह टॉय […]
बच्चे तो बच्चे, बड़े भी होते हैं इसके दीवाने. यह क्षेत्र है टॉय डिजाइनिंग का. इस क्षेत्र ने अपार संभावनाओं के द्वार खोले हैं. रचनात्मकता के धनी युवा इस ओर बेहिचक आगे बढ़कर कैरियर बना सकते हैं.
खिलौनों के साथ अपना बचपन बितानेवाली सुहासनी पॉल ने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वह टॉय डिजाइन स्टूडियो खोलेंगी. इस स्टूडियो से न जाने कितनों के बचपन में उन्होंने मुस्कुराहटें फैला दी हैं.
सुहासनी पॉल ने पिंक ऐलीफेंट नाम से भारत का पहला टॉय डिजाइनिंग स्टूडियो की स्थापना की है. उन्हें देश के वर्तमान प्रधानमंत्री से ‘फर्स्ट लेडी डिजाइनप्रेन्योर ऑफ इंडिया’ का अवॉर्ड भी मिला. उनके अनुसार टॉय डिजाइनिंग का क्षेत्र बहुत बड़ा है. इसमें संभावनाओं का वृहद आकाश है. खिलौनों और गेम्स का इस्तेमाल सिर्फ खेल ही नहीं, बल्कि कई चीजें सीखने के लिए होता है. आज बाजार में कई तरह के टॉय हैं. इनमें सेल्फ लर्निंग से लेकर प्लेइंग तक के कई प्रकार होते हैं. इन्हें बनानेवालों को टॉय डिजाइनर के रूप में जाना जाता है.
क्या है इनका काम
टॉय डिजाइनर का काम ड्रॉइंग, स्केचिंग या कांसेप्ट का कंप्यूटर मॉडल बनाना है. इसके बाद टॉय का प्रोटोटाइप बनाना इनके काम का आखिरी पड़ाव होता है. टॉय को बनाते समय बच्चों और दुकानदारों को जहन में रखना बहुत जरूरी है. टॉय डिजाइनर को साधारण गुड़िया से लेकर चलने–फिरने वाली डॉल तक सभी कुछ बनाना होता है. इसके अलावा उन्हें बोर्ड गेम्स, पजल्स, कंप्यूटर गेम्स, स्टफ्ड एनिमल्स, रिमोट कंट्रोल कार्स, इंफेंट टॉय्स आदि बनाने होते हैं. इन्हें बनाते समय मार्केट ट्रेंड से अवगत होना बहुत जरूरी है.
योग्यता है जरूरी
टॉय डिजाइनर बनने के लिए सबसे पहली जरूरत ‘दिल तो बच्चा है जी’ होने की है. अगर खास योग्यता पर गौर करें, तो इस क्षेत्र में किसी भी दिशा के लोग रुख कर सकते हैं.
अगर उम्मीदवार ग्रॉफिक डिजाइन, इंडस्ट्रियल डिजाइन या कार्टून क्षेत्र से ताल्लुख रखता है, तो उसे यहां पर काम करने में ज्यादा आसानी होगी. बेहतर काम करने के लिए कंप्यूटर की जानकारी होना आवश्यक हो गया है. उच्च स्तर के टॉय डिजाइन करने के लिए इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी की भी जरूरत पड़ती है. इसके अलावा आर्ट, ड्रॉइंग और स्केचिंग का शौक होना भी जरूरी है.
संभावनाओं का है संसार
सही रचनात्मकता, पैशन और मार्केट की सटीक जानकारी रखनेवालों के लिए यह एक आकर्षक क्षेत्र है. आज इनकी मांग देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बहुत ज्यादा है. टॉय डिजाइनर टॉय कंपनियों में काम कर सकते हैं. साथ ही वे स्वरोजगार की ओर भी कदम बढ़ाकर एंटरप्रेन्योर बन सकते हैं.
इन्हें मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में नौकरी मिल सकती है. एक टॉय डिजाइनर टॉय डिजाइनिंग पर अपनी किताब भी लिखकर इंस्ट्रक्टर के रूप में काम कर सकते हैं. ये इंटीरियर डिजाइनर के साथ भी काम कर सकते हैं. साथ ही डिजाइन कंसल्टेंट भी बन सकते हैं और फ्रीलांसर के रूप में इस क्षेत्र से संबंधित विदेशी क्लांट्स के प्रोजेक्ट भी संभाल सकते हैं.
कमाई भी है अच्छी
यहां रचनात्मकता, प्रतिभा और कल्पनाशक्ति की कीमत लगायी जाती है. शुरुआत 10 हजार से होकर कमाई हजारों और लाखों तक पहुंच सकती है.
संस्थान है कम पर खास
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइनिंग, अहमदाबाद
कोर्स : पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन टॉय मेकिंग
वेबसाइट : www.nid.edu
इंस्टीट्यूट ऑफ टॉय मेकिंग टेक्नोलॉजी, सॉल्ट लेक सिटी, कोलकाता
कोर्स : जॉब ट्रेनिंग
वेबसाइट : www.itmtindia.in
कोई भी काम पूरे दिल से किया जाये, तो मुझे नहीं लगता कि उसमें दिक्कत आती है, क्योंकि दिक्कतें भी काम का हिस्सा बन जाती हैं. इस क्षेत्र में काम करने के दौरान मैंने जाना कि मेरा खिलौना खरीदनेवाले सिर्फ बच्चे नहीं होते, बल्कि उसे अपनी दुकानों में बेचनेवाले दुकानदार और बच्चों के अभिभावक भी होंगे. इसलिए कोई भी खिलौना बनाते वक्त तीनों उपभोक्ता वर्ग को दिमाग में रखना बहुत जरूरी होता है.
इस क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के लिए सबसे पहले स्वतंत्र होना जरूरी है और आपके सामने जो भी आये, उसका सामना करना सीखें. ऐसा जरूरी नहीं कि आप जो करें उसके लिए आपको हमेशा प्रशंसा मिले. ऐसी परिस्थितियों के लिए हमेशा प्लान बी और सी तैयार रखें. अगर जरूरत पड़े तो प्लान डी भी तैयार रहे. अपने क्षेत्र में एंटरप्रेन्योर के रूप में बेहतर काम करने के लिए साइलेंट ऑब्जर्वर बनना बहुत जरूरी है.