इतिहासकारों ने वैदिक साहित्य के काल क्रम पर की बहस
नयी दिल्ली: पाठ्यक्रम में वैदिक शिक्षा को शामिल करने पर छिडी बहस के बीच विभिन्न विश्वविद्यालयों के संस्कृत भाषा के विद्वानों ने आज यहां रिगवेद की उत्पत्ति तथा आर्यो के देश में आगमन पर हुई चर्चा में हिस्सा लिया. विद्वानों ने रिगवेद के रचना काल की अवधि पर भी सवाल किए जिसके बारे में आमतौर […]
नयी दिल्ली: पाठ्यक्रम में वैदिक शिक्षा को शामिल करने पर छिडी बहस के बीच विभिन्न विश्वविद्यालयों के संस्कृत भाषा के विद्वानों ने आज यहां रिगवेद की उत्पत्ति तथा आर्यो के देश में आगमन पर हुई चर्चा में हिस्सा लिया. विद्वानों ने रिगवेद के रचना काल की अवधि पर भी सवाल किए जिसके बारे में आमतौर पर माना जाता है कि इसकी रचना 1500 ईसापूर्व की गयी थी जिससे इसका काल खंड हडप्पा सभ्यता के पतन के बाद आता है.
विद्वानों ने ‘वैदिक साहित्य का कालक्रम : एक पुनराकलन’ विषय पर हुई राष्ट्रीय परिचर्चा में अपने विचार पेश किए जिसका आयोजन यहां दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा किया गया था. विवि के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रमेश सी भारद्वाज ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘ रिगवेद की मूल तारीख पर लंबे समय से बहस होती रही है. मार्क्सवादियों ने तो सीधे सीधे कह दिया कि सिंधु घाटी सभ्यता रिगवेद काल से कहीं अधिक प्राचीन है. यह तथ्य कि आर्यो ने भारत के मैदानी इलाकों में आकर द्रविडों को दक्षिण की ओर धकेल दिया , यह भी सच नहीं है.”
उन्होंने कहा, ‘‘ सिंधु घाटी की सभ्यता से काफी समय पहले, भारत के मैदानी इलाकों की अपनी समृद्ध संस्कृति थी जिसे रिगवेद की विषय वस्तु से स्थापित किया जा सकता है. इतिहास में सुधार करते हुए काल क्रम को निर्धारित करने की जरुरत है.” विद्वानों ने इतिहासकारों और पुरातत्ववेताओं द्वारा अपनाए गए और पाठ्य पुस्तकों में पेश किए गए विचारों को मार्क्सवादी बताकर उन्हें खारिज भी किया. भारद्वाज ने कहा कि इस बात के सबूत हैं जो बताते हैं कि आर्यो ने कभी आक्रमण नहीं किया बल्कि वे मूल लोग थे और हडप्पा सभ्यता में विकसित हुए. दिल्ली विवि में इस तीन दिवसीय परिचर्चा का आयोजन मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उज्जैन के महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के सहयोग से किया गया.