नेताजी के रहस्य में चीन का एंगल भी है ?

कोलकाता: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के लापता होने के गहरे रहस्य के बारे में एक किताब में दावा किया गया है कि रुस से निकलने के बाद वह चीन चले गए थे. शोधकर्ता अनुज धर ने अपनी नई किताब ‘नो सीकेट्र्स’ में कहा है कि नेताजी के बड़े भाई और उनके निकट सहयोगी शरत चंद्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 18, 2013 6:16 PM

कोलकाता: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के लापता होने के गहरे रहस्य के बारे में एक किताब में दावा किया गया है कि रुस से निकलने के बाद वह चीन चले गए थे. शोधकर्ता अनुज धर ने अपनी नई किताब ‘नो सीकेट्र्स’ में कहा है कि नेताजी के बड़े भाई और उनके निकट सहयोगी शरत चंद्र बोस ने अपने अखबार ‘द नेशन’ में लेख लिखकर दावा किया था कि अक्तूबर 1949 में नेताजी रेड चाईना में थे.

अखबार की कतरन की एक प्रति किताब में छापी गई है जिसका अगले हफ्ते कोलकाता में विमोचन किया जाएगा.

किताब में कहा गया है, ‘‘यह कहने की जरुरत नहीं है कि शरत इसके बारे में जानकारी के बगैर इस तरह से नहीं छापते. कहानी में कहा गया है, ‘‘भारत सरकार के पास पुख्ता सूचना है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस माओ त्से तुंग के रेड चाइना में थे.’’ यह पूछने पर कि सुभाष भारत क्यों नहीं आ रहे थे तो शरत बोस ने जवाब दिया, ‘‘

मेरा मानना है कि उनके भारत लौटने का उचित वक्त नहीं आया था.’’’’ ‘‘यह सच है कि 1949 में इस तरह की अफवाहें भारत एवं अन्य जगहों पर थीं कि सुभाष बोस चीन में थे. इस पर सोवियत समर्थक बंबई के टेबलायड ‘द ब्लिट्ज’ ने एक सनसनीखेज खबर 26 मार्च 1949 को ‘‘ब्रिटिश रिपोर्ट बोस एलाइव इन रेड कन्टीनेंट’’ शीर्षक से छापी जिसका टेक्सट अमेरिकी दूतावास ने ‘‘घोस्ट ऑफ सुभाष चंद्र बोस’’ विषय से विदेश मंत्री को भेजा.

गुप्त रिकॉर्ड की सहायता से लिखी गई किताब में कहा गया है कि 1956 में बोस के सहयोगी मुथुरामालिंगम थेवर ने अखबारों से कहा था कि शरत बोस के निर्देश पर वह गुपचुप तरीके से चीन गए थे.

धर का कहना है, ‘‘मैं विश्वास नहीं कर सकता कि कई दावों के माध्यम से सुभाष की चीन में उपस्थिति के बारे में चीन का ध्यान आकर्षित नहीं किया गया. जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में चाइनीज एंड साइनोलॉजीकल स्टडीज सेंटर के प्रोफेसर प्रियदर्शी मुखर्जी का मानना है कि चीन के पास बोस के बारे में कुछ रिकॉर्ड है.’’ किताब में धार्मिक व्यक्ति ‘भगवानजी’ या ‘गुमनामी बाबा’ की गुमनाम जिंदगी को नेताजी से जोड़कर दिखाया गया है. गुमनामी बाबा का निधन फैजाबाद में 1985 में हो गया था.

‘नो सीकेट्र्स’ में भगवानजी के दावे का जिक्र है कि ‘वह माओ त्से तुंग से 1949 के बाद कई बार मिले और उन्होंने बीजिंग के गुप्त डिक्सिया चेंग :जमीन के अंदर परमाणु स्थान: का दौरा तब किया था जब दुनिया को इसके अस्तित्व के बारे में पता तक नहीं था.’’ इस वर्ष जनवरी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनउ पीठ ने कहा कि ‘‘पर्याप्त मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य’’ मौजूद हैं जिनसे प्रथमदृष्ट्या ‘भगवानजी’ की ‘‘पहचान के बारे में वैज्ञानिक जांच हो सकती है.’’ अंग्रेजों द्वारा नजरबंदी के दौरान 1941 में नेताजी भारत से निकल गए थे ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटा सकें. जापान के सहयोग से 1945 में उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया.

उन्हें अंतिम बार बैंकाक हवाई अड्डे पर 17 अगस्त 1945 को देखा गया और तब से उनके बारे में कोई पुष्ट सूचना नहीं है.

केंद्र सरकार द्वारा गठित मुखर्जी आयोग ने इस विचार को खारिज कर दिया था कि 18 अगस्त 1945 को ताईवान में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हुई थी. नेताजी के बड़े भाई और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जांच आयोग के सदस्य रहे सुरेश बोस ने 1972 में निधन से पहले कहा था कि उनके भाई अब तक जीवित हैं.

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