सहिष्णुता, विविधता के बुनियादी मूल्यों को गंवाया नहीं जा सकता : राष्ट्रपति

नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गोमांस खाने की अफवाह के बाद दादरी में एक व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या किए जाने की पृष्ठभूमि में आज कहा कि भारतीय सभ्यता के विविधता, सहिष्णुता और अनेकता में एकता के बुनियादी मूल्यों को हमें निश्चित तौर पर अपने दिमाग में बनाए रखना चाहिए और इसे कभी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 7, 2015 6:58 PM
नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गोमांस खाने की अफवाह के बाद दादरी में एक व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या किए जाने की पृष्ठभूमि में आज कहा कि भारतीय सभ्यता के विविधता, सहिष्णुता और अनेकता में एकता के बुनियादी मूल्यों को हमें निश्चित तौर पर अपने दिमाग में बनाए रखना चाहिए और इसे कभी भी यूंही गंवाने नहीं दिया जा सकता.
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मेरा यह दृढ विश्वास है कि हम अपनी सभ्यता के बुनियादी मूल्यों को यूंही गंवाने की अनुमति नहीं दे सकते. ये बुनियादी मूल्य हैं विविधता, सहिष्णुता, सहनशीलता और अनेकता में एकता , जिसे वर्षो से हमारी सभ्यता ने संजो कर रखा और उसका जश्न मनाया .” उन्होंने कहा, ‘‘इन्हीं बुनियादी मूल्यों ने हमें सदियों तक एक साथ बांधे रखा. कई प्राचीन सभ्यताएं खत्म हो गईं. लेकिन यह सही है कि एक के बाद एक आक्रामण और लंबे विदेशी शासन के बावजूद भारतीय सभ्यता अगर बची तो अपने बुनियादी मूल्यों के कारण ही बची. हमें निश्चित तौर पर इसे ध्यान में रखना चाहिए.
अगर इन बुनियादी मूल्यों को हम अपने मन-मस्तिष्क में बनाए रखें तो हमारे लोकतंत्र को आगे बढने से कोई नहीं रोक सकता.” उनकी यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस खाने की अफवाह पर 50 साल के एक व्यक्ति की पीट-पीट कर की गई हत्या की पृष्ठभूमि में आई है. इस घटना के कारण देशभर में आक्रोश है.
राष्ट्रपति को यहां राष्ट्रपति भवन में एक कार्यक्रम के दौरान उन पर लिखी एक ‘कॉफी टेबल बुक’ सौंपी गई, जिसे ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादकीय निदेशक प्रभु चावला ने लिखा है और जिसका विमोचन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था. इस कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला और कई सांसद मौजूद थे.
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने पहले चुनाव , जब लोग हैरान थे कि कैसे 35 करोड लोगों को दायरे में रखते हुए सुचारु रुप से चुनाव हो सकते हैं, से लेकर पिछले चुनाव तक देश में कई महत्वपूर्ण घटनाएं करीब से होते देखी हैं. उन्होंने उन दिनों को याद किया जब वे ‘एक संकटकाल’ के दौरान राज्यसभा सदस्य के तौर पर संसद पहुंचे थे. उस समय कांग्रेस बैंकों के राष्ट्रीयकरण को लेकर एक बडे संकट का सामना कर रही थी और आखिरकार पार्टी में विभाजन हो गया.
मुखर्जी ने याद किया कि उनकी मां उनसे हर दिन दस किलोमीटर चलकर स्कूल जाने को कहती थी और इस चीज ने ‘कोई विकल्प नहीं होने पर’ कडी मेहनत करने का उनपर बडा प्रभाव डाला.उन्होंने प्रभु चावला के काम की सराहना की जिन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर किताब पर काम किया है. उन्होंने किताब को अपने दोस्तों और प्रिय जनों की तरफ से एक ‘उपहार’ बताया.
अंसारी ने कहा कि किताब एक प्रसिद्ध हस्ती को एक छोटा सा सम्मान है जिनके पास मुद्दों को समझने का व्यापक अनुभव और गहराई है. राजनाथ सिंह ने किताब की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुखर्जी के जीवन को किताब में पेश करना मुश्किल है क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो राजनीति में केवल सत्ता में रहने के लिए नहीं रहे और जिन्होंने कई मुद्दों पर संसद में आम सहमति बनाने के लिए सफलतापूर्वक प्रयास किए.

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