कांग्रेस सांसद रशीद मसूद की सदस्यता खत्म
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के आलोक में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद सांसद के रुप में अयोग्य किए गए पहले नेता बन गये हैं. उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में उस प्रावधान को समाप्त कर दिया है, जो दोषी ठहराये गये सांसद या विधायक को उच्च अदालत में अपील […]
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के आलोक में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद सांसद के रुप में अयोग्य किए गए पहले नेता बन गये हैं. उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में उस प्रावधान को समाप्त कर दिया है, जो दोषी ठहराये गये सांसद या विधायक को उच्च अदालत में अपील लंबित होने के आधार पर अयोग्य करार दिये जाने से सुरक्षा प्रदान करता था. सूत्रों ने आज बताया कि मसूद को अयोग्य करार दिये जाने के बाद औपचारिक रुप से राज्यसभा में रिक्त पद की घोषणा की अधिसूचना उच्च सदन के महासचिव शमशेर के. शरीफ ने जारी की.
सूत्रों के मुताबिक अधिसूचना की प्रति आवश्यक कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग को भेज दी गयी है. विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में 1990 से 1991 तक स्वास्थ्य मंत्री रहे मसूद को देश भर के मेडिकल कालेजों में केंद्रीय पूल से त्रिपुरा को आवंटित एमबीबीएस सीटों पर अयोग्य उम्मीदवारों को धोखाधडी कर नामित करने का सितंबर में अदालत ने दोषी पाया है. लोकसभा सांसद लालू प्रसाद और जगदीश शर्मा को भी किसी भी समय औपचारिक रुप से अयोग्य करार दिया जाना तय है क्योंकि लोकसभा सचिवालय भी राज्यसभा सचिवालय की ही तरह फैसला करने को तैयार है. लालू और शर्मा दोनों ही चारा घोटाले में दोषी करार दिये गये हैं.
सितंबर में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने राज्यसभा सदस्य मसूद को भष्टाचार के एक मामले और अन्य कुछ अपराधों का दोषी पाया था. विशेष सीबीबाई न्यायाधीश जे पी एस मलिक ने मसूद को भ्रष्टाचार निरोधक कानून और भारतीय दंड की घारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधडी) और 468 (फर्जीवाडा) के तहत दोषी करार दिया है.
उच्चतम न्यायालय ने 10 जुलाई को अपने आदेश में जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 की उप धारा-4 को समाप्त कर दिया था, जिसके तहत किसी विधायक या सांसद को तब तक अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता, जब तक उच्च अदालत में उसकी अपील लंबित हो. दोषी ठहराये जाने के तीन महीने के भीतर उच्चतर अदालत में अपील होनी चाहिए. शीर्ष अदालत के उक्त आदेश को पलटने के लिए सरकार ने संसद के मानसून सत्र में एक विधेयक पेश किया लेकिन विपक्ष के साथ मतभेदों के चलते विधेयक पारित नहीं हो सका.
सांसदों और विधायकों को बचाने के लिए 24 सितंबर को विधेयक की ही तर्ज पर एक अध्यादेश को केंद्रीय मंत्री मंडल ने मंजूरी दी लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सार्वजनिक रुप से अध्यादेश की आलोचना किये जाने के परिप्रेक्ष्य में कैबिनेट ने 2 अक्तूबर को अध्यादेश और विधेयक वापस लेने का फैसला किया. राहुल ने अध्यादेश को ‘बकवास’ करार दिया था. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अध्यादेश पर सरकार के फैसले पर सवाल उठाये थे.
सांसद के अयोग्य करार दिये जाने के बाद अपनाये जाने वाले नियमों को लेकर स्पष्टता दर्शाते हुए एटार्नी जनरल जी ई वाहनवती ने हाल ही में लोकसभा सचिवालय से कहा कि रिक्त सीटों को लेकर अधिसूचना तत्काल जारी होनी चाहिए. वाहनवती ने आगाह किया कि अधिसूचना जारी करने में देरी उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवहेलना होगा.