सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी कानून को असंवैधानिक बताया, जारी रहेगी कॉलेजियम प्रणाली
नयी दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की दो दशक से अधिक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने के लिए राजग सरकार द्वारा लाये गये अधिनियम को आज असंवैधानिक घोषित कर दिया. न्यायमूर्ति जे एस खेहर, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति […]
नयी दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की दो दशक से अधिक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने के लिए राजग सरकार द्वारा लाये गये अधिनियम को आज असंवैधानिक घोषित कर दिया.
न्यायमूर्ति जे एस खेहर, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति ए के गोयल की सदस्यता वाली पांच सदस्यीय एक संवैधानिक पीठ ने एनजेएसी अधिनियम को रद्द करने का सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. इस पीठ ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर उच्चतम न्यायालय के 1993 और 1998 के फैसले को समीक्षा के लिए वृहद पीठ के पास भेजने की केंद्र सरकार की अपील भी खारिज कर दी.
हालांकि चार न्यायाधीशों ने संविधान में 99वें संशोधन को असंवैधानिक घोषित किया लेकिन न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने उनसे भिन्न राय व्यक्त की और इस संशोधन की वैधता बरकरार रखने के लिए अपने तर्क भी दिये.पीठ का निर्णय सुनाने वाले न्यायमूर्ति खेहर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति और एक उच्च न्यायालय से दूसरी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के स्थानांतरण की प्रणाली 99वंे संशोधन से पहले से ही संविधान में मौजूद रही है. पीठ ने कहा कि वह न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के लिए सुझाव प्राप्त करने की इच्छुक है और उसने मामले की सुनवाई तीन नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी.
न्यायमूर्ति खेहर ने कहा कि हम सभी न्यायाधीशों ने अपने अपने तर्क दर्ज कराए और आदेश पर संयुक्त रुप से हस्ताक्षर किए गए. इससे पहले पांच न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान में 99वें संशोधन और एनजेएसी अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 15 जुलाई को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) और अन्य ने इस अधिनियम को चुनौती देने के लिए याचिकाएं दायर करके कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं चयन संबंधी नया कानून असंवैधानिक है और इसका मकसद न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चोट पहुंचाना है.
हालांकि केंद्र ने नया अधिनियम लाने का बचाव करते हुए कहा कि न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली दो दशक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली कमियों रहित नहीं है और इसे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का समर्थन भी मिला.20 राज्य सरकारों ने भी इसका समर्थन किया था. उन्होंने एनजेएसी अधिनियम एवं संवैधानिक संशोधन का अनुमोदन किया था.
इस नये कानून के विवादास्पद प्रावधानों में से एक प्रावधान प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश और केंद्रीय कानून मंत्री की सदस्यता वाली एनजेएसी में दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को शामिल करना था. कानून के तहत प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने पर सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता की सदस्यता वाली समिति इन दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को नामांकित करेगी.इसके अलावा, इस अधिनियम में कहा गया था कि दो प्रतिष्ठित लोगों में एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछडा वर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य या महिला होगी