नयी दिल्ली : राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को लेकर सरकार को लगे झटके के कुछ घंटों बाद महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आज के फैसले से दोबारा लागू होने वाली कॉलेजियम प्रणाली का संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है और ‘अपारदर्शी’ होने के कारण यह उचित नहीं है.
हालांकि रोहतगी ने मामले में समीक्षा की मांग के विकल्प को खारिज करते हुए कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह किसी भी तरह से समीक्षा का मामला है क्योंकि फैसला विस्तृत है और हजारों पन्नों में है.’ हालांकि महाधिवक्ता ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर सरकार और न्यायपालिका के बीच किसी तरह के टकराव से इनकार किया. उनका मानना था कि नियुक्तियां पूरी तरह पारदर्शी नहीं होंगी.
उन्होंने कहा, ‘‘एक अपारदर्शी प्रणाली में नियुक्तियां होती रहेंगी जहां सभी हितधारकों की आवाज नहीं होगी. कॉलेजियम प्रणाली का संविधान में उल्लेख ही नहीं है और मेरा मानना है कि प्रणाली सही नहीं है.’ रोहतगी ने पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा कॉलेजियम प्रणाली में सुझाव मांगते हुए मामले पर आगे सुनवाई तय करने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, ‘‘कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव होगा या नहीं यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है. लेकिन अगर इसमें सुधार की जरुरत है तो इसका मतलब है कि यह अपने आप में ही सही नहीं था.’ यह पूछे जाने पर कि क्या फैसला केंद्र के लिए एक झटका है, उन्होंने कहा कि कानून को ना केवल सत्तारुढ़ पार्टी से बल्कि संसद से भी मंजूरी मिली थी.
महाधिवक्ता ने कहा, ‘‘यह केंद्र सरकार का कानून नहीं था. इसका निर्माण संसद ने किया था जिसे सभी पार्टियों ने मंजूरी दी थी.’ उन्होंने कहा कि यह सरकार और संसद को तय करना है कि क्या वे ‘‘इस संशोधन की खामियों को दूर करने’ के बाद दूसरा संशोधन लाना चाहते हैं.