भारत में हाइड्रोकार्बन गैस हाइड्रेट का खनन, निकट होते हुए भी है दूर…

मुंबई : भारत उर्जा की अत्यधिक कमी से जूझ रहा है. प्राकृतिक दृष्टि से भी देश में तेल, गैस या यूरेनिम की प्रचूर उपलब्धता नहीं है. नतीजन, एक अरब 25 करोड लोगों की बढती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए तेल और गैस के आयात पर भारत को हर साल करीब 160 अरब अमेरिकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 18, 2015 12:31 PM

मुंबई : भारत उर्जा की अत्यधिक कमी से जूझ रहा है. प्राकृतिक दृष्टि से भी देश में तेल, गैस या यूरेनिम की प्रचूर उपलब्धता नहीं है. नतीजन, एक अरब 25 करोड लोगों की बढती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए तेल और गैस के आयात पर भारत को हर साल करीब 160 अरब अमेरिकी डालर का भारी खर्च वहन करना पडता है. जमा हुआ क्रिस्टलीय मीथेन जिसे ‘‘फायर आइस’ भी कहा जाता है वह इस कमी को बहुत हद तक पूरा कर सकता है. यह स्वच्छ इंधन होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत इसका स्रोत है जिससे उर्जा सुरक्षा में मदद मिलेगी. मौजूदा समय में भारत में तेल और गैस की 85 फीसदी से अधिक की मांग को आयात करके पूरा किया जाता है.

गोल्डमैन साक्स की 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘‘भारत में विश्व की जनसंख्या का पांचवां हिस्सा है लेकिन उर्जा का केवल 30 वां भाग.’ मौजूदा स्थिति के बारे में जाने माने उर्जा विशेषज्ञ और परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष रतन के सिन्हा कहते हैं ‘‘भारत हमेशा के लिए आयातित उर्जा पर निर्भर नहीं रह सकता. जल्द ही देश को विकल्प तलाशने होंगे जो देश को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सके.’ इसी बीच एक हाइड्रोकार्बन प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है जिसका तकनीकी चुनौतियों के वजह से अब तक इस्तेमाल नहीं हो सका है. इन तकनीकी दिक्कतों को अब भी दूर किया जाना है. यह हाइड्रोकार्बन गैस हाइड्रेट है जो प्राकृतिक गैस की ठोस अवस्था में होता है. यह समुद्र के तल में पाया जाता है.

अभी हाल में भारत-जापान द्वारा विश्वस्तरीय चिक्यू जहाज के माध्यम से किये गये खोज अभियान में एक बार फिर इस समृद्ध उर्जा की बहुत अधिक उपलब्धता के बारे में कहा गया है. छिपे हुए हाइड्रोकार्बन संसाधन का पता लगाने के लिए बंगाल की खाडी में 616 करोड रपये की लागत से 150 दिन तक चिक्यू के क्रूज ने खोज अभियान चलाया. देश के समुद्री क्षेत्र में गैस हाइड्रेट की प्रचूर मात्रा में उपलब्धता है. यह ‘‘मार्श गैस’ का ठोस रुप होता है. यह अत्यंत ज्वलनशील गैस जिसे मीथेन कहते हैं वह कुछ खास परिस्थितियों में जल के साथ ठोस अवस्था धारण कर लेता है और एक सफेद ‘‘आइसक्रीम’ बनाता है. अंडमान द्वीप समूह में कृष्णा-गोदावरी-महानदी बेसिन, सौराष्ट्र तट पर और केरल-कोंकण क्षेत्र में इसकी बहुतायत मात्रा में खोज की गयी है. अगर इसे बाहर निकाल लिया जाता है तो लंबे समय तक यह भारत को प्राकृतिक गैस उपलब्ध करा सकता है जिससे उर्जा की समस्या को दूर किया जा सकता है. यह बात काबिले गौर है कि मीथेन अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है इसलिए इसका खनन बहुत अधिक सावधानी से करना होगा और किसी तरह से रिसाव ना हो इसे सुनिश्चित करना होगा.

अभी हाल में भारत-जापान द्वारा विश्वस्तरीय चिक्यू जहाज के माध्यम से किये गये खोज अभियान में एक बार फिर इस समृद्ध उर्जा की बहुत अधिक उपलब्धता के बारे में कहा गया है. छिपे हुए हाइड्रोकार्बन संसाधन का पता लगाने के लिए बंगाल की खाडी में 616 करोड रपये की लागत से 150 दिन तक चिक्यू के क्रूज ने खोज अभियान चलाया. देश के समुद्री क्षेत्र में गैस हाइड्रेट की प्रचूर मात्रा में उपलब्धता है. यह ‘‘मार्श गैस’ का ठोस रुप होता है. यह अत्यंत ज्वलनशील गैस जिसे मीथेन कहते हैं वह कुछ खास परिस्थितियों में जल के साथ ठोस अवस्था धारण कर लेता है और एक सफेद ‘‘आइसक्रीम’ बनाता है. अंडमान द्वीप समूह में कृष्णा-गोदावरी-महानदी बेसिन, सौराष्ट्र तट पर और केरल-कोंकण क्षेत्र में इसकी बहुतायत मात्रा में खोज की गयी है. अगर इसे बाहर निकाल लिया जाता है तो लंबे समय तक यह भारत को प्राकृतिक गैस उपलब्ध करा सकता है जिससे उर्जा की समस्या को दूर किया जा सकता है. यह बात काबिले गौर है कि मीथेन अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है इसलिए इसका खनन बहुत अधिक सावधानी से करना होगा और किसी तरह से रिसाव ना हो इसे सुनिश्चित करना होगा.

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