SC के फैसले पर टिप्पणी, जेटली के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा
नयी दिल्ली : जजों की नियुक्ति संबंधी मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली पर उत्तर प्रदेश में महोबा की एक अदालत ने कोर्ट की अवमानना और राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है. इसके साथ ही उन्हें 19 नवंबर को कोर्ट में पेश होने का भी आदेश […]
नयी दिल्ली : जजों की नियुक्ति संबंधी मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली पर उत्तर प्रदेश में महोबा की एक अदालत ने कोर्ट की अवमानना और राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है. इसके साथ ही उन्हें 19 नवंबर को कोर्ट में पेश होने का भी आदेश दिया है. अदालत ने जेटली के खिलाफ सम्मन भी जारी कर दिये हैं. सूत्रों के अनुसार कुलपहाड के सिविल जज (जूनियर डिवीजन) अंकित गोयल ने अखबारों में छपे अरुण जेटली के उस बयान को बेहद गम्भीर और आपत्तिजनक माना जिसमें उन्होंने जजों की नियुक्ति के संबंध में उच्चतम न्यायालय के दो दिन पहले आए आदेश पर सवाल खड़ा किया था.
मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत ने बयान को देश की संवैधानिक व्यवस्था पर हमला माना और भारतीय दंड संहिता की धारा 505 और 124 ए के तहत मामला पंजीकृत करने का आदेश दिया. जेटली को न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश भी दिया है. अदालत के आदेश से अपराध संख्या 328/15 पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है.
क्या कहा था अरुण जेटली ने
राष्ट्रीय न्यायिक जवाबदेही आयोग (एनजेएसी) कानून को उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त किये जाने पर कडी टिप्पणी करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि भारतीय लोकतंत्र में ‘ऐसे लोगों की निरंकुशता नहीं चल सकती जो चुने नहीं गए हों.’ जेटली ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को मजबूत बनाने के लिए किसी को संसदीय संप्रभुता को कमजोर करने की जरुरत नहीं है. एनजेएसी कानून, 2014 और 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार देकर निरस्त करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की ओर से बताए गए तर्कों को ‘त्रुटिपूर्ण तर्क’ करार देते हुए जेटली ने चेतावनी दी कि यदि ‘चुने गए लोगों को कमजोर किया गया’ तो लोकतंत्र खतरे में पड जाएगा.
‘दि एनजेएसी जजमेंट – ऐन ऑल्टरनेटिव व्यू ?’ शीर्षक से फेसबुक पर किये गये एक पोस्ट में जेटली ने कहा, ‘भारतीय लोकतंत्र में ऐसे लोगों की निरंकुशता नहीं चल सकती जो चुने हुए नहीं हो और यदि चुने गए लोगों को कमजोर किया गया तो लोकतंत्र खुद ही खतरे में पड जाएगा.’ पूर्व कानून मंत्री जेटली ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संसद की संप्रभुता के बारे में चिंतित होने के नाते उनका मानना है कि दोनों का सह-अस्तित्व हो सकता है और निश्चित तौर पर होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का एक अहम मूल ढांचा है. इसे मजबूत करने के लिए किसी को संसदीय संप्रभुता को कमजोर करने की जरुरत नहीं है. संसदीय संप्रभुता भी न सिर्फ एक जरुरी बुनियादी ढांचा है बल्कि लोकतंत्र की आत्मा भी है.’
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
राजग सरकार को उस वक्त करारा झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की बडी भूमिका का प्रावधान करने वाले कानून से उच्चतर न्यायपालिका की ‘स्वतंत्रता’ का उल्लंघन होगा. न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली 22 साल पुरानी कोलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाली एनजेएसी से जुडे कानून को उच्चतम न्यायालय ने ‘निष्प्रभावी’ कर दिया. न्यायालय ने कहा कि यह ‘शक्तियों के पृथक्करण’ की संकल्पना और संविधान के ‘बुनियादी ढांचे’ का उल्लंघन है.
इसपर जेटली ने कहा था कि फैसले में एक बुनियादी ढांचे – न्यायपालिका की स्वतंत्रता – की प्रधानता को बरकरार रखा गया है लेकिन संविधान के पांच अन्य बुनियादी ढांचों – संसदीय लोकतंत्र, एक निर्वाचित सरकार, मंत्री परिषद, एक निर्वाचित प्रधानमंत्री और निर्वाचित नेता प्रतिपक्ष – को संकुचित कर दिया गया है. जेटली ने कहा कि पांचों न्यायाधीशों की राय पढने के बाद उनके दिमाग में ‘कुछ मुद्दे’ उभरे हैं. उन्होंने कहा, ‘क्या निर्वाचित सरकारों द्वारा नियुक्ति किये जाने के बाद भी चुनाव आयोग और सीएजी जैसी संस्थाएं पर्याप्त विश्वसनीय नहीं हैं ?’
उन्होंने कहा कि बहुमत वाली राय के पीछे प्रमुख तर्क यह लगता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के बुनियादी ढांचे का एक आवश्यक तत्व है. उन्होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर यह मान्यता बिल्कुल सही है. लेकिन यह राय जाहिर करने पर बहुमत एक त्रुटिपूर्ण तर्क दे देता है.’ जेटली ने कहा, ‘फैसले ने इस तथ्य की अनदेखी कर दी है कि संविधान में कई अन्य पहलू भी हैं जिनसे बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ है. भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे का सबसे अहम पहलू संसदीय लोकतंत्र है. भारतीय संविधान का दूसरा सबसे अहम बुनियादी ढांचा निर्वाचित सरकार है जो संप्रभु की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है.’